जाने नमो को : जैसा पिता वैसा पुत्र

– सुभाष गाताड़े- सूबा गुजरात के बाहर रहनेवाले अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे कि जनाब मोदी – मुन्तज़िर प्रधानमंत्री – एक ‘भावुक लेखक, कवि और संस्कृति के प्रेमी रहे हैं ‘ और किस तरह ‘अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच वह लेखन के लिए समय निकालते हैं वगैरा’ (www.narendramodi.in) प्रस्तुत पंक्ति का लेखक जनाब मोदी की […]

Publish: Jan 14, 2019, 07:30 PM IST

जाने नमो को :    जैसा ‘पिता’ वैसा ‘पुत्र’ ?
जाने नमो को : जैसा ‘पिता’ वैसा ‘पुत्र’ ?

- span style= color: #ff0000 font-size: large सुभाष गाताड़े- /span p style= text-align: justify strong सू /strong बा गुजरात के बाहर रहनेवाले अधिकतर लोग नहीं जानते होंगे कि जनाब मोदी - मुन्तज़िर प्रधानमंत्री - एक भावुक लेखक कवि और संस्कृति के प्रेमी रहे हैं और किस तरह अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच वह लेखन के लिए समय निकालते हैं वगैरा (www.narendramodi.in) /p p style= text-align: justify प्रस्तुत पंक्ति का लेखक जनाब मोदी की इस महारत के प्रति अनभिज्ञ था सिवाय उस शुरूआती प्रसंग के जबकि उनके नाम से कर्मयोग नामक किताब का प्रकाशन हुआ था जिसे चुपचाप वापस लिया गया था। मालूम हो कि उपरोक्त किताब में मोदी के व्याख्यानों का संकलन था जो उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को दिए थे। किताब में जिस तरह उन्होंने सफाई कर्मचारियों के जीवन के नारकीय अनुभव को आधयात्मिक अनुभव के तौर पर सम्बोधित किया था उससे दलितों का एक हिस्सा उनके प्रति बेहद क्षुब्ध हुआ था और इसी के चलते प्रस्तुत किताब की पांच हजार प्रतियां वापस ली गयी थीं। /p p style= text-align: justify पिछले दिनों जनाब मोदी की लेखन कुशलता से नए सिरे से साबिका पड़ा जब एक वेबसाइट पर मोदी एण्ड हिज मेन्टर्स अर्थात मोदी एवं उनके संरक्षक नाम से लेखमाला छपी जिसमें उन लोगों पर निबन्ध थे जिन्होंने मोदी के जीवन को कई तरीकों से प्रभावित किया था। उसमें पिछड़े समुदाय से सम्बधित बाबूभाई ओझा का जिक्र है तो पांच दशक तक संघ का स्तंभ रहे बचुभाई भगत का भी जिक्र है। और भी कई लोग हैं। पत्रकार आकार पटेल ने मोदी की गुजराती किताब ज्योतिपुंज से इन अनुवादों को प्रकाशित किया है। /p p style= text-align: justify किताब में एक उल्लेख देख कर थोड़ा मैं चकित रह गया जिसमें मोदी ने प्रोफेसर केशवराम काशीराम शास्त्री उर्फ केका शास्त्री के बारे में लिखा है जो लम्बे समय तक विश्व हिन्दू परिषद गुजरात के राज्य अध्यक्ष थे और प्रवीण तोगडिया और जयदीप पटेल के साथ मिल कर उस त्रिमूर्ति का हिस्सा थे जो परिषद का संचालन करते थे। मोदी जोर देकर कहते हैं कि वह उनके लिए पिता समान थे । मोदी लिखते हैं : /p p style= text-align: justify केका शास्त्री हमारी गौरवशाली विरासत का अध्याय हैं। वह हमारी संस्कृति और धर्म के विद्यार्थी रहे हैं और गीता के मूल्यों के पालक रहे हैं जिन्होंने आनेवाली तमाम पीढ़ियों को लाभान्वित किया। वह मेरे लिए पिता समान थे और हमारे बीच बेहद आत्मीय सम्बन्धा थे। वह एक विद्वान और वैज्ञानिक थे। (Read more at: http:\www.firstpost. comlogsmodis-mentors-kk-shastri-the-scholar-who-helped-save-the-gujarati-language-1433267. html?utm_source=ref_article) /p p style= text-align: justify विश्व हिन्दू परिषद के साथ उनके लम्बे सम्बन्ध की चर्चा करते हुए वह इस बात का भी उल्लेख करते हैं कि किस तरह उनके सौ साल पूरे करने पर सरकार ने उनका सम्मान किया था। /p p style= text-align: justify जब वह सौ साल के हुए तब दुर्भाग्यवश कुछ लोगों को यह बात पसन्द नहीं आयी। यह दुख की बात है कि अपने बीच से हम सोने को भी नहीं पहचानते हैं जैसे वह ताम्बा हो। जब मैं बोलने के लिए उठा तो मैंने कहा .. आप पूछते हो कि राज्य ऐसा क्यों कर रहा है ? क्यों सरकारी पैसा खर्च हो रहा है ? अरे इस आदमी ने गुजरात के लिए इतना कुछ दिया जिसे कभी लौटाया नहीं जा सकता। वह गुजरात का गौरव है मित्रों ! (सन्दर्भ : वही) /p p style= text-align: justify यह बात बताना समीचीन होगा कि ऊपर जिस व्याख्यान का उल्लेख किया गया है वह अहमदाबाद के एक सम्मेलन में दिया गया था। वर्ष 2004 की बात है जब भाजपा लोकसभा का चुनाव हारी थी उन्हीं दिनों गुजरात सरकार की तरफ से यह आयोजन हुआ था जिसमें संघ-भाजपा परिवार के तमाम अग्रणियों ने हिस्सेदारी की थी। /p p style= text-align: justify प्रश्न उठता है कि आखिर किस वजह से केका शास्त्री के अभिनन्दन समारोह पर लोगों को एतराज था। दरअसल उसका ताल्लुक 2002 के जनसंहार के उन दिनों से है जब केका शास्त्री ने इस संगठित हिंसाचार को लेकर अहम खुलासा किया था। /p p style= text-align: justify मूलत: एक साहित्यकार एवं गुजराती भाषा के विद्वान रहे केका शास्त्री ने गुजरात जनसंहार के पीछे स्वत:स्फूर्तता के तत्वों को खारिज किया था। वैसे जनाब केका शास्त्री का नाम पूरे देश ने उन्हीं दिनों जाना था। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में हुई आगजनी के बाद जब पूरे सूबे के पैमाने पर जिन दिनों हिंसाचार अपने चरम पर था उन्हीं दिनों रिडिफ डाट कॉम पर प्रकाशित उनके साक्षात्कार के जरिये पहली बार वे देश के सामने नमूदार हुए। इस साक्षात्कार के जरिये पहली बार देश के आमजनों को स्वत:स्फूर्तता के नाम पर प्रचारित हिंसा के पीछे छिपे उस सुनियोजित षडयंत्र का पता चला जिसको वहां सुप्रीम कोर्ट की भाषा में आधुनिक युग के नीरो अंजाम दे रहे थे। उसे अंजाम दिया ही जाना था ( It Had to be done VHP Leader Says of Riots Sheela Bhatt 12 March 2002 rediff.com~) शीर्षक से प्रकाशित उनके इस साक्षात्कार में गुजरात 2002 के जनसंहार में विश्व हिन्दू परिषद की भूमिका को खुलेआम स्वीकारा गया था। सभी जानते हैं कि इस जनसंहार में आधिकारिक तौर पर 2000 से ज्यादा लोग मारे गये थे जिनमें अल्पसंख्यकों की बहुतायत थी हजारों लोग अपने घरों से उजाड़ दिये गये थे और एक न्यायपूर्ण एवं शान्तिपूर्ण जिन्दगी जीने की लाखों लोगों की उम्मीदें हमेशा के लिए काफूर हो गयी थीं। वर्ष 2007 में सामने आए तहलका के स्टिंग आपरेशन के बहुत पहले - जिसमें संघ-विहिप के कई अग्रणी नेताओं की 2002 के हिंसाचार में प्रत्यक्ष सहभागिता को लेकर खुलासा हुआ था - हुआ यह साक्षात्कार काफी कुछ कह रहा था। /p p style= text-align: justify दरअसल शायद ही ऐसा साक्षात्कार किसी ने पढ़ा हो जो इतना खुलेआम निरपराधों के खिलाफ जारी हिंसा का महिमामण्डन कर रहा था और उसके पीछे उसके अपने लोगों का हाथ होने की बात कर रहा था। केका शास्त्री ने रिडिफ डाट काम के सम्वाददाता को बताया कि अहमदाबाद में मुसलमानों की मिल्कियत वाले प्रतिष्ठानों की सूची हम लोगों ने 28 फरवरी को बनायी थी। टेप किये गये इस साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सुबह हम लोग बैठे और सूची तैयार की। हम लोग पहले से तैयार नहीं थे। /p p style= text-align: justify जब सम्वाददाता ने उनको पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उनका जवाब था उसे किया जाना ही था उसे किया जाना ही था। हमें वह पसन्द नहीं था लेकिन हम लोग बेहद गुस्से में थे... । /p p style= text-align: justify जब सम्वाददाता ने उनसे यह पूछा कि उनके जैसा विध्दान एव साहित्यकार लोगों के जिन्दा जलाये जाने की घटना को किस तरह सही ठहरा सकता है तो उनका कहना था कि युवाओं ने ऐसे तमाम काम किये हैं जो हमें पसन्द नहीं थे। हम उनका समर्थन नहीं करते। लेकिन हम उनकी निन्दा नहीं करते क्योंकि वह हमारे बच्चे थे। उन्होंने जोड़ा हम यह नहीं मानते कि बच्चों ने कुछ गलत किया है क्योंकि यह सबकुछ एक गुस्से का इजहार था..हमें कुछ करना था। /p p style= text-align: justify जनसंहार के दौरान नज़र आयी पुलिस की निष्क्रियता को लेकर भी उनका साफ स्पष्टीकरण था उन्हें मौत का डर था। और उनमें से कुछ हिन्दू थे जिन्हें लगा कि भीड़ को वह सब करने देना चाहिये जो वह चाहती है। सम्वाददाता से बात करते हुए उन्होंने भविष्य का खाका भी रखा। उनका मानना था कि परिस्थितियां बिगड़ सकती हैं और इससे भी भीषण दंगे हो सकते हैं। /p p style= text-align: justify गौरतलब था कि जनाब केका शास्त्री की ओर से दंगे में उनके संगठन के शामिल होने के बारे में यह कोई पहली स्वीकृति नहीं थी। जनमशती के आयोजन के बाद टाईम्स आफ इण्डिया में सम्पादक के नाम पत्र कालम में लिखे अपने पत्र में पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज गुजरात के उपाधयक्ष और बड़ौदा में प्रोफेसर जे. एस. बन्दुकवाला ( जिनके अपने घर में हिन्दुत्व ब्रिगेड के आततायियों ने हमला किया था) ने इस बात की ताईद की थी। राज्य सरकार द्वारा आयोजित जनाब केका शास्त्री के इस नागरिक अभिनन्दन समारोह के औचित्य पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं कि /p p style= text-align: justify ये वही शख्स हैं जिन्होंने 4 मार्च 2002 को उन लोगों की तारीफ की थी जिन्होंने नरोदा पाटिया जनसंहार एवम गुलबर्ग सोसायटी कतलेआम को अंजाम दिया था। उनके अपने शब्द थे जो मीडिया में कई स्थानों पर यहां तक कि टाईम्स आफ इण्डिया में भी प्रकाशित हुए थे कि सम्मानित परिवारों के ये हमारे बच्चे हैं जिन्हें यह करने के लिये प्रशिक्षित किया गया है। जानने योग्य है कि उनके इस वक्तव्य का कभी खण्डन नहीं किया गया था। जैसी कि उम्मीद थी गुजरात सरकार ने हत्या एवं बलात्कार को उकसाने के लिये उनके खिलाफ कोई मुकदमा तक दायर नहीं किया। /p p style= text-align: justify यह बात अब इतिहास हो चुकी है कि तमाम मानवाधिकार संगठन ही नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के जरिये फटकार खाने का रेकार्ड बना चुकी नरेन्द्र मोदी की सरकार ने केका शास्त्री के खिलाफ अदनासा मुकदमा दर्ज करना भी मुनासिब नहीं समझा था यहां तक कि गुजरात के जनसंहार के लिये बने नानावटी-शाह आयोग के सामने भी केका शास्त्री को गवाही के लिये नहीं बुलाया गया था जो इस मामले में हिन्दुत्व ब्रि्रगेड के संगठनों द्वारा इस मामले में रची साजिश का खुलासा कर सकते हैं। /p p style= text-align: justify नि:स्सन्देह अगर संघ परिवारी संगठन सत्ता में नहीं होते तो केका शास्त्री कबके गिरफ्तार हुए होते। /p p style= text-align: justify अगर घृणा भरे वक्तव्यों लेकर संविधान के पन्ने पलटे तो यह दिखता है कि कई सारी धारायें हैं ( धारा 153 ए भारतीय दण्ड विधान धारा 295 ए भारतीय दण्ड विधान धारा 298 बी भारतीय दण्ड विधान तथा कई अन्य) जो विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ाने के खिलाफ या ऐसे शब्दों का प्रयोग कर दूसरे की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के खिलाफ अभियुक्त को तीन से सात साल तक बाशक्कत कैद की सज़ा सुनाती है। लेकिन केन्द्र में सरदार पटेल के संस्करण कहे जाने वाले शख्स के गृहमंत्री होने के बावजूद या राज्य में उनके करीबी मोदी के सत्ता सम्भालने के बावजूद यह नहीं हो सका। /p p style= text-align: justify ज्योतिपुंज का उपरोक्त लेख समाप्त करते हुए मोदी लिखते हैं /p p style= text-align: justify किसी दूसरे देश में शास्त्रीजी का सम्मान होता। दुनिया के टीवी चैनल डॉक्टर वैज्ञानिक गुजरात पहुंचते और उनके जीवन का रहस्य जानने की कोशिश करते। यहां हम ऐसा करने से क्यों चूकते हैं ? /p p style= text-align: justify अन्त में कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया ने जनाब मोदी को बहुत पहले ही अगला प्रधानमंत्री घोषित किया है। देखा जाए अगर बेटा 272 सीटों की बाधा वाकई दूर कर पाता है तो अपने पिता को भारत रत्न से किस तरह नवाज़ता है। /p