लता मंगेशकर को दिया गया था धीमा जहर, महीनों बिस्तर पर रहीं, सुर कोकिला से जुड़ा दर्दनाक किस्सा

लता मंगेशकर ने खुद हटाया था इस कहानी के पीछे से पर्दा, 33 साल की उम्र में ही किसी ने उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की थी, जहर देने वाले के बारे में पता चलने के बाद भी चुप रहीं लता ताई

Updated: Feb 06, 2022, 06:52 AM IST

Photo Courtesy: Deccan Chronicle
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मुंबई। सुर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर का 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लता ताई के निधन से देशभर में शोक का महौल है। स्वर कोकिला के बारे में कहा जाता है कि 33 साल की उम्र में ही उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। अपने जीवन के इस दर्दनाक किस्से से लता मंगेशकर ने खुद पर्दा हटाया था। 

लता ताई ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि, 'हमारी फैमिली इस बारे में बात नहीं करती, क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था। साल था 1963। मुझे इतनी कमजोरी महसूस होने लगी कि मैं बेड से भी बमुश्किल उठ पाती थीं। हालात ये हो गए कि मैं अपने दम पर चल फिर भी नहीं सकती थी।' लता जी के मुताबिक इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि उन्हें धीमा जहर दिया गया था। डॉक्टर्स का ट्रीटमेंट और उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें वापस ले आया। तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर वह गाना रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी।

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स्वर कोकिला के मुताबिक उनकी रिकवरी में मजरूह सुल्तानपुरी की अहम भूमिका थी। बातचीत के दौरान वे कहती हैं, 'मजरूह साहब हर शाम मेरे घर आते और कविताएं सुनाकर मेरा दिल बहलाया करते थे। वे दिन-रात व्यस्त रहते थे और उन्हें मुश्किल से सोने के लिए कुछ वक्त मिलता था, लेकिन मेरी बीमारी के दौरान वे हर दिन घर आते थे। यहां तक कि मेरे लिए डिनर में बना सिंपल खाना भी खाते थे और मुझे कंपनी देते थे। अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल वक्त से उबरने में सक्षम न हो पाती।'

जब लता जी से पूछा गया कि क्या कभी इस बात का पता चला कि उन्हें जहर किसने दिया था? तो उन्होंने जवाब दिया, 'जी हां, मुझे पता चल गया था, लेकिन हमने कोई एक्शन नहीं लिया क्योंकि हमारे पास उस इंसान के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। जब उनसे पूछा गया कि क्या यह सच है कि डॉक्टरों ने उन्हें कह दिया था कि वे फिर कभी नहीं गा पाएंगी? तो जवाब में उन्होंने कहा, 'यह बात गलत है। धीमे जहर के इर्द-गिर्द बुनी गई यह एक काल्पनिक कहानी है की डॉक्टर ने मुझे नहीं कहा था कि मैं कभी नहीं गा पाऊंगी। मुझे ठीक करने वाले हमारे फैमिली डॉक्टर आरपी कपूर ने तो मुझसे यह तक कहा था कि वे मुझे खड़ी करके रहेंगे। पिछले कुछ सालों में यह गलतफहमी हुई है। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी।'

इस दर्दनाक दौर से गायकी में वापस आने के बाद लता जी का पहला गाना 'कहीं दीप जले कहीं दिल' हेमंत कुमार ने कंपोज किया था। लता जी इस बारे में बताती हैं कि, 'हेमंत दा मेरे घर आए और मां की इजाजत लेकर मुझे रिकॉर्डिंग के लिए ले गए। उन्होंने मां से वादा किया कि किसी भी तरह के विपरीत लक्षण दिखने के बाद वे तुरंत मुझे घर वापस ले आएंगे। किस्मत से रिकॉर्डिंग अच्छे से हो गई। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी।' बता दें कि लता ताई के इस गाने ने फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था।

आज उनके स्वर ख़ामोश हो गए लेकिन सात दशक के अपने करियर में उन्होंने कई ऐसे गाने गाये हैं, जो आज भी लोगों के जेहन में हैं। इनमें 'अजीब दास्तां है ये' 'प्यार किया तो डरना क्या' और 'नीला आसमां सो गया' शामिल है। लता मंगेशकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने सुर कोकिला के निधन से देश में दो दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है।