कहीं धूप कहीं छांव: कृषि मंत्री ले रहे करोड़पति किसान का इंटरव्यू, छोटे किसान लागत को मोहताज

डेढ़ सौ एकड़ में खेती करने वाले किसान का इंटरव्यू लेने पहुंचे कृषि मंत्री, अन्य किसानों के लिए बताया आदर्श, कड़वी हकीकत यह कि अन्य किसानों के पास न लागत के 1.40 करोड़ रुपए हैं न डेढ़ सौ एकड़ जमीन

Updated: Jan 29, 2022, 03:39 AM IST

हरदा। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल का एक इंटरव्यू खूब सुर्खियों में है। इस इंटरव्यू में कृषि मंत्री पत्रकार बनकर एक किसान से बात कर रहे हैं। कृषि मंत्री किसान से बातचीत इसलिए कर रहे हैं क्योंकि किसान ने करीब 8 करोड़ रुपए का टमाटर बेचा है। कृषि मंत्री के इस इंटरव्यू से प्रतीत होता है कि प्रदेश के किसान टमाटर की फसल उगाकर करोड़पति बन रहे हैं। हालांकि, यह विरले होता है। कड़वी सच्चाई यह है कि प्रदेश में किसान टमाटर की पैदावार सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं, जिसका जिक्र कृषि मंत्री ने अपने इंटरव्यू में नहीं किया।

दरअसल, कृषि मंत्री कमल पटेल अपने गृह जिला हरदा के ग्राम सिरकंबा निवासी मधु धाकड़ का इंटरव्यू लेने पहुंचे थे। मधु धाकड़ बड़े किसान हैं और करीब डेढ़ सौ एकड़ में खेती करते हैं। वह पिछले 14 वर्षों से खेती कर रहे हैं और इतने संपन्न हैं कि डेढ-दो करोड़ रुपए इन्वेस्ट कर सकते हैं। संपन्न होने के कारण उन्होंने गेहूं, सोयाबीन जैसे पारंपरिक फसलों को छोड़कर कुछ नया करने का जहमत उठाया। 

मधुसूदन ने 60 एकड़ में मिर्च, 70 एकड़ में टमाटर और 30 एकड़ में अदरक लगाया। सिर्फ टमाटर लगाने में हुए उन्हें 1 करोड़ 40 लाख रुपए लागत आया। नतीजा ये हुआ कि फसल होने के बाद वह करीब 8 करोड़ का टमाटर बेच पाए। यानी उन्हें साढ़े 6 से 7 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ। कृषि मंत्री का इंटरव्यू इस तरीके से चलाया गया जैसे मध्य प्रदेश में किसान टमाटर उगाकर करोडों रुपए कमा रहे हैं। हालांकि, यह एक किसान की बात है जो पहले से करोड़पति हैं। अन्य सभी किसानों की हालत वही है जो उन्हें आत्महत्या करने पर मजबूर करती है। 

कृषि मंत्री कमल पटेल जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं। खरगोन के ही किसान साधु वर्मा ने एनडीटीवी को बताया कि, 'इंपोर्ट ब्लॉक है, इसलिए हमें 20% कीमत भी नहीं मिल पा रही है। हम पहले टमाटर 600-700 प्रति कैरेट की दर से बेचते थे, लेकिन आज 80-90 प्रति कैरेट से ज्यादा कीमत नहीं मिल रही। इस वजह से हम 2 वर्षों से भारी नुकसान झेल रहे हैं।' 

आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में टमाटर उपजाने वाले किसान उत्पाद को सड़कों पर फेंकने के लिए मजबूर हैं। हाल ही में यहां रायपुरिया के किसानों ने टमाटर को दाम कम मिलने के कारण सड़कों और खेतों में फेंक दिया था। किसान कलीम शेख ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान कहा कि, 'उत्पादन तो खूब हुआ है, लेकिन यहां टमाटर 4 से 5 रुपये किलो बिक रहा है। कारण ये है कि उत्पाद बाहर नहीं जा रहा है। टमाटर की खेती हमारे लिए घाटे का सौदा है, खर्चा तक नहीं निकल पा रहा है।'

कृषि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि किसानों की दुर्दशा का मुख्य कारण भंडारण है। फलों और सब्जियों का एरिया और उत्पादन हर साल 6 से 8 फीसदी बढ़ रहा है, लेकिन उन्हें स्टोर करने के लिए प्रदेश में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता पहले जितनी ही है। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 10 लाख टन की क्षमता वाले कुल 163 कोल्ड स्टोरेज हैं। लेकिन यहां केवल फलों का उत्पादन 75 लाख टन से अधिक है।

प्रदेश के कुल 52 में से 31 जिले ऐसे हैं जहां एक भी कोल्ड स्टोरेज नहीं है। कोल्ड स्टोरेज के बिना फल-सब्जियां 8 से 10 दिन ही रह पाती है। ऐसे में अपवादों को छोड़कर ज्यादातर किसान लागत मूल्य पर भी फसल बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान विदिशा स्थित अपने खेतों में पहुंचे थे। यहां उन्हें टमाटर की फसल को देखकर अभूतपूर्व आनंद का अनुभव हुआ था। लेकिन सीएम इस दौरान टमाटर किसानों की बदहाली अनुभव नहीं कर सके। यदि मुख्यमंत्री ने किसानों की बदहाली को महसूस किया होता तो आज कोल्ड स्टोरेज निर्माण के लिए ठोस कदम उठाए जाते। 

बता दें कि वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने ऑपरेशन ग्रीन्स योजना के तहत कोल्ड स्टोरेज के लिए 50 फीसदी तक अनुदान का प्रावधान किया था, लेकिन मध्य प्रदेश से अब तक केंद्र को इसके लिए महज 15 प्रस्ताव ही भेजे गए हैं।