Mani Ratnam: फिल्मी दुनिया के 'मणि' रत्नम

पद्ममश्री से नवाज़े जा चुके फिल्म डायरेक्टर मणि रत्नम २ जून को ६४ साल के हो गए। उनके सफर पर एक नज़र

Publish: Jun 03, 2020, 04:30 AM IST

courtesy : pinkvilla
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तमिल भाषा और हिंदी फिल्मों के चोटी के निर्देशकों में से एक मणिरत्नम आज अपना 65 वां जन्मदिन मना रहा हैं। हालांकि मणिरत्नम की पृष्ठभूमि फिल्मी दुनिया की रही लेकिन उन्होंने खुद को स्थापित करने के लिए काफी संघर्ष किया। मणिरत्नम के पिता रत्नम अय्यर और उनके चाचा फिल्म निर्माता थे और उनके पिता ' वीनस पिक्चर ' जैसे प्रोडक्शन हाउस से भी जुड़े थे। बावजूद इसके मणिरत्नम का फिल्मी दुनिया में कदम रखने का कोई इरादा नहीं था। उन्हें फिल्में आकर्षित नहीं करती थीं। लिहाज़ा मणिरत्नम ने मैनेजमेंट की ओर रुख किया। मणिरत्नम ने एक कम्पनी में कंसल्टेंट के तौर पर नौकरी शुरू कर दी। एक बार उनके दोस्त रवि शंकर 'पल्लवी अनु पल्लवी' का निर्माण कर रहे थे और उन्होंने मणिरत्नम को फिल्म की पटकथा लिखने का आग्रह किया। बस फिर क्या था मणिरत्नम की गाड़ी चल पड़ी और वह निर्देशन की दुनिया में कूद पड़े।

फिल्मों के निर्देशन में मणिरत्नम ने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है। मणिरत्नम आज भी लीक से हटकर फिल्मों का निर्देशन करने के लिए जाने जाते हैं। मणिरत्नम को तमिल सिनेमा में ख्याति 1986 में रिलीज़ हुई फिल्म ' माउंगा रंगम ' से मिली। 1987 में उन्होंने सुपरस्टार कमल हासन के साथ 'नायकन' बनाई। इस फिल्म ने उस समय सफलताओं के झंडे गाड़ दिए। 2005 में टाईम पत्रिका ने 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची जारी की थी। जिसमें गुरु दत्त की 'प्यासा' और सत्यजीत रे की 'द अप्पू ट्रायलॉजी' शामिल थी। सूची में इन दो फिल्मों के साथ मणिरत्नम की 'नायकन' भी जगह बनाने वाली भारत की मात्र तीसरी फिल्म बनी।

लीक से हटकर फिल्में बनाने के लिए मशहूर हैं मणिरत्नम

मणिरत्नम को दक्षिण और हिंदी सिनेमा जगत दोनों ही जगह लीक से हटकर फिल्म बानाने वाले निर्देशक के तौर पर जाना जाता है। मणिरत्नम पारम्परिक फिल्मों में विश्वास नहीं रखते। कला और व्यावसायिक फिल्मों का अद्भुत मिश्रण मणिरत्नम के फिल्मों में होता है। बॉलीवुड में मणिरत्नम ने रोजा, बॉम्बे, दिल से, युवा, गुरु, गीतांजलि, साथिया जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन किया है। हालांकि रोजा और बॉम्बे का निर्माण तमिल भाषा में किया गया था जिसे बाद में हिंदी में डब किया गया।

मणिरत्नम की फिल्मों में अक्सर पारम्परिक फिल्मों की लीक से हटकर कुछ नया करने का जज़्बा दिखा। उनकी फिल्मों में संदेश की बजाय एक अधूरापन होता है और यही उनकी यूएसपी है। उदाहरण के तौर पर उनकी पहली हिंदी फिल्म 'दिल से' को ले लीजिए। मणिरत्नम ने दिल से की कहानी अंत में अधूरी छोड़ दी है। मणिरत्नम को फिल्म में यह दिखाने से मतलब नहीं है कि दिल्ली के इंडिया गेट पर 26 जनवरी को आखिर क्या हुआ? इसकी जगह पर कैसे प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के आतंकवादी होने के बावजूद उसके साथ जान दे दी, मणिरत्नम आपको उतना ही दिखाने चाहते हैं जितना की वो चाहें। वो न तो पारम्परिक फिल्मों में विश्वास रखते हैं और न ही पारम्परिक दर्शकों में। उन्हें फिल्मों को अंत तक पहुंचाना या संदेश देने के बनिस्बत यथास्थिति का वर्णन और चित्रण ही ज़्यादा भाता है। इस बात की तस्दीक मणिरत्नम खुद एक अखबार को दिए इंटरव्यू में करते हैं। मणिरत्नम कहते हैं - ‘मैं संदेश देने के लिए फिल्में नहीं बनाता। फिल्में अपना अनुभव या किसी खास मुद्दे पर समाज के एक बड़े तबके के साथ अपनी चिंताएं साझा करने का जरिया हैं। शुरुआती पटकथा में कोई राजनीतिक विचारधारा रहती भी है तो फिल्म के आगे बढ़ने के साथ-साथ वह खुद खत्म हो जाती है। फिल्म में उतना ही बच जाता है जितना कहानी की मांग के हिसाब से स्वाभाविक लगता है।’

आखिरी बार 'रावण' का निर्देशन किया

मणिरत्नम ने न सिर्फ हिंदी सिनेमा जगत में ख्याति हासिल की है बल्कि उनकी प्रसिद्धि विश्वभर में एक सफल और नायाब निर्देशक के तौर पर व्याप्त है। भारत में सम्मानित होने के साथ-साथ विदेशों से भी अनगिनत अवॉर्ड और सम्मान मणिरत्नम की झोली में है। 2010 में रिलीज़ हुई अभिषेक - ऐश्वर्या स्टारर 'रावण' आखिरी हिंदी फिल्म थी जिसे मणिरत्नम ने निर्देशित किया था। इसके बाद मणिरत्नम 2017 में आई फिल्म  ‘ओके जानू' के निर्माता भी थे। हालांकि मणिरत्नम अब भी तमिल फिल्मों का निर्देशन कर रहे हैं। लेकिन हिन्दी दर्शकों को भी उनकी आनेवाली फिल्मों का इंतजार रहता है।