कोरोना मृतकों के परिजनों ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाया

अस्पताल पर कोरोना मरीजों को नकली वेंटिलेंटर पर रखने का आरोप लग चुका है।

Publish: May 29, 2020, 07:04 AM IST

Photo: Swaraj Express
Photo: Swaraj Express

अहमदाबाद सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस इलाज के दौरान दम तोड़ने वाले कई मरीजों के रिश्तेदारों ने आरोप लगाया है कि डॉक्टरों और नर्सों की लापरवाही और उदासीनता की वजह से उनके परिजनों की जान गई है। ये आरोप ऐसे समय में सामने आए हैं जब गुजरात उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस संकट के बीच इस अस्पताल के कामकाज के तरीकों की आलोचना की है। वहीं इस अस्पताल में धमन 1 नाम के नकली वेंटिलेटरों के लगे होने का मामला भी सामने आया है। राज्य की बीजेपी सरकार इन वेंटलेटरों को मेक इन इंडिया के तहत बनाए गए वेंटिलेटर बताया है। वहीं कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इन नकली वेंटिलेटरों की वजह से अहमदाबाद सिविल अस्पताल में कोरोना मरीजों की जान जा रही है।

Clickगुजरात सीएम का झूठ Corona मरीजों की जान पर भारी!

अहमदाबाद में स्थित इस अस्पताल को एशिया का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल माना जाता है। यहां सैंकड़ों डॉक्टर और नर्स काम करते हैं। लेकिन पूरे गुजरात में कोरोना वायरस से जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें से आधे मृतकों का इस अस्पताल में इलाज चल रहा था। अस्पताल के डॉक्टर भी नकली वेंटिलेटरों की शिकायत कर चुके हैं।

एक व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि डॉक्टरों ने उसकी 81 वर्षीय दादी को जिंदा रखने के लिए उन्हें पाइप को हाथ से दबाकर हवा भरते रहने को कहा था। बुजुर्ग की इसके कुछ देर बाद ही 27 मई को मौत हो गई। हार्दिक वलेरा ने दावा किया कि डॉक्टरों ने उनकी दादी की कोविड-19 जांच करने की जहमत भी नहीं उठाई।

उन्होंने कहा, ‘‘ हमारा घर दानी लिम्डा क्षेत्र में स्थित है जो कि निषिद्ध क्षेत्र में आता है। हम 26 मई रात में दादी को सिविल अस्पताल ले कर गए थे क्योंकि उन्हे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘ बुजुर्ग को पहले अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर रखा गया लेकिन बाद में मध्यरात्रि में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। लेकिन लगातार मेरे आग्रह के बाद भी डॉक्टरों ने कोविड -19 जांच के लिए उनका नमूना नहीं लिया।’’

वलेरा के अनुसार बुजुर्ग को जब तीसरी मंजिल के किसी अन्य वार्ड में 27 मई की सुबह में भेजा जा रहा था तो ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने उन्हें एक थैला पकड़ाया और हाथ से तब तक हवा भरते रहने को कहा जब तक कि उन्हें वार्ड पर पहुंचने पर वेंटिलेटर पर ना रख दिया जाए।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘ जब मैंने कहा कि यह काम किसी पेशेवर का है और अस्पताल के ही किसी व्यक्ति को करना चाहिए तो किसी ने भी ध्यान नहीं दिया। कुछ ने तो इसके लिए मेरा मजाक भी उड़ाया। इस दौरान मैंने देखा कि हवा शुद्ध करने वाला फिल्टर फट गया है और मैने इसके बारे में बताया, लेकिन किसी ने भी मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। अंततः जब हम तीसरी मंजिल के वार्ड पर पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और बचाने की कोई कोशिश भी नहीं की।’’

वहीं वलेरा के आरोप के बारे में जब अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर एम एम प्रभाकर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं है कि ऐसा कुछ अस्पताल में हुआ है।

एक अन्य घटना में भी कोरोना वायरस मरीज के एक रिश्तेदार ने एक वीडियो जारी किया है कि सिविल अस्पताल के कोविड-19 डॉक्टरों ने उनकी मां को वेंटिलेटर पर रखने से पहले उन्हें जानकारी नहीं दी थी। इस महिला की मौत 24 मई को हो गई।

Clickअहमदाबाद सिविल अस्पताल कालकोठरी से भी बुरा

इस वीडियो में एक व्यक्ति को एक डॉक्टर से बात करते हुए सुना जा सकता है, ‘‘ मुझे जानकारी क्यों नहीं दी गई कि मेरी मां को वेंटिलेटर पर रखा जाएगा। आपने उन्हें जब जबरन पाइप लगाया तो खून बहना शुरू हो गया और बाद में उनकी मौत हो गई। नियम के अनुसार आपको मुझे बताना चाहिए था कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखा जाएगा।’’

इस घटना पर टिप्पणी करते हुए प्रभाकर ने कहा कि महिला कोविड-19 से संक्रमित थी और कुछ दिन पहले उनकी मौत हो गई। प्रभाकर ने कहा कि तय नियमों और दिशानिर्देश के अनुसार एक मरीज का जीवन बचाने के लिए डॉक्टर को हर संभव उपाय करने का अधिकार है।