रूस और यूक्रेन के बीच क्या है विवाद की जड़, क्यों यूक्रेन को NATO से अलग रखना चाहता है रूस, समझिए 

रूस ने गुरुवार को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया, रूस की सेना यूक्रेन के शहरों में घुस रही है.. पूरी दुनिया रूस के इस कदम का विरोध कर रही है लेकिन रूस ने इसे जायज़ करार दिया है और कहा है कि कोई दूसरा देश बीचबचाव की कोशिश करेगा तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.. जानिए कि आखिर क्या वजहें हैं जो दोनों देशों के बीच इस युद्ध के

Updated: Feb 24, 2022, 05:20 PM IST

Photo Courtesy: DW
Photo Courtesy: DW

रूस ने गुरुवार को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया है। रूसी सेना यूक्रेन में ताबड़तोड़ बमबारी कर रही है। उसने यूक्रेन के शहरों में कब्जा करना भी शुरू कर दिया है। उधर पूरी दुनिया रूस को तत्काल अपने कदम पीछे खींचने के लिए कह रही है। अमेरिका ने तो रूस को खुलेआम धमकी दी है। लेकिन रूस मानने को तैयार नहीं है। पश्चिमी देशों को इस बात की चिंता है कि युद्ध की आग पूरे यूरोप में फैल सकती है। आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर इस झगड़े की जड़ क्या है?

दरअसल, इस झगड़े की वजह NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) को माना जा रहा है। यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है और अमेरिका समेत अन्य देश इसका समर्थन करते हैं। जबकि रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो से दूर रहे। रूस चाहता है कि यूक्रेन अथवा सोवियत संघ के विघटन के बाद बने अन्य देशों को कभी नाटो में शामिल होने की मंजूरी न दी जाए। लेकिन अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

पिछली सदी के 90 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद नाटो का विस्तार पूर्व की ओर हुआ था और इसमें वे देश भी शामिल हुए जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। रूस ने हमेशा इसे खतरे के रूप में देखा है। यूक्रेन वर्तमान में इसका हिस्सा तो नहीं है लेकिन यूक्रेन द्वारा नाटो देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास और अमेरिकी एंटी-टैंक मिसाइल्स जैसे हथियारों के हासिल करने से रूस सतर्क हो गया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को डर है कि नाटो रूस पर मिसाइल हमले के लिए यूक्रेन को लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है।

दरअसल, नाटो एक सैन्य गठबंधन है। दो दर्जन से अधिक देशों के इस संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है, जिसके तहत सदस्य देश बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे। नाटो से संबंधित किसी भी देश के साथ यदि बाहरी कोई देश लड़ता है तो करार के मुताबिक नाटो के सदस्य मिलकर इसके खिलाफ सैन्य ऑपरेशन करेंगे। वर्तमान में यूक्रेन नाटो का सदस्य नहीं है इसलिए अमेरिका या अन्य किसी देश ने यूक्रेन की ओर से रूस पर हमला नहीं किया है। दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से मना कर दिया था और यही कारण है कि 1949 में नाटो की स्थापना की गई।

 NATO ने इसके पहले जब जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने की बात कही थी तब रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया था और उसके दो प्रांतों पर कब्जा कर लिया था। साल 2010 में यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने NATO में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। नवंबर 2013 में यानुकोविच यूरोपियन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से भी पीछे हट गए। यूक्रेन में इसका भारी विरोध हुआ और प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ गए। विरोध इतना बढ़ गया कि यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा।

यूक्रेन में यूरोपियन यूनियन के समर्थकों की सत्ता आई और परिणामस्वरूप रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के क्रीमिया पर हमला कर दिया। हालांकि, पुतिन उन्हें रूसी सैनिक मानने से इनकार करते रहे। मार्च 2014 में क्रीमिया में जनमत संग्रह कराया गया और क्रीमिया को रूस में शामिल कर दिया गया। 2019 में यूक्रेन में वोलोदिमिर जेलेन्सकी की सत्ता आई और उन्होंने NATO में शामिल होने की कोशिशें तेज कर दी। रूस ने फिर विरोध किया। वजह वही कि कहीं यूक्रेन नाटो का सदस्य बना तो नाटो के सैनिक और हथियारों की रूसी सीमा पर तैनाती हो जाएगी।

रूस के बाद यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यूक्रेन के पास काला सागर के पास अहम पोत हैं और इसकी सीमा चार नाटो देशों से मिलती है। यूरोप की जरूरत का एक तिहाई नेचुरल गैस रूस ही सप्लाई करता है और एक प्रमुख पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरता है। ऐसे में यूक्रेन पर कब्जे से पाइपलाइन की सुरक्षा मजबूत होगी। इस विवाद की एक वजह आर्थिक भी है। क्योंकि रूस यूनियन का खर्च अपनी दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी यानी यूक्रेन के बिना नहीं उठा सकता है। कुछ लोग यह राय भी रखते हैं कि रूस चाहता है कि सोवियत संघ के सभी देशों पर उसका कब्जा फिर स्थापित हो जाए।