खंडहर बन चुके हॉस्टल में रह रहे हैं आदिवासी छात्र, मदद के लिए आगे आए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह

डर के साए में भविष्य गढ़ रहे हैं MP के आदिवासी छात्र, कभी भी गिर जाते हैं जर्जर हॉस्टल के दीवार और छज्जे, कई बाद गुहार लगाने के बावजूद नहीं हुई सुनवाई, मदद को आगे आए दिग्विजय सिंह- सांसद निधि से हॉस्टल मरम्मत करवाने का दिया आश्वासन

Updated: Feb 17, 2022, 05:37 PM IST

जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर के आधारताल स्थित आदिवासी छात्रावासों में छात्रों का रहना बेहद खतरनाक हो गया है। बीते हफ्ते ही यहां आदिम जाती कल्याण विभाग द्वारा संचालित एक होस्टल का छज्जा अचानक गिर गया। राहत की बात यह है कि उस दौरान वहां छात्र मौजूद नहीं थे, वरना कोई भी अनहोनी हो सकती थी। आज भी आदिवासी छात्र उसी होस्टल में डर के साए में अपने सुनहरे भविष्य के सपने गढ़ रहे हैं। 

इन होस्टलों में वो छात्र रहते हैं जो प्रदेश के सुदूर ग्रामीण व दुर्गम इलाकों से निकलकर कॉलेजों तक पहुंचे हैं। छात्र पिछले कई सालों से सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने के लिए पत्राचार कर रहे हैं। पिछले साल शासकीय इंजीनियर्स हॉस्टलों की जांच करने पहुंचे थे। तब उन्होंने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा था कि ये भवन बेहद जर्जर हैं और कभी भी गिर सकते हैं। लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। 

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सोमवार को होस्टल और छज्जों के दीवार गिरने के बाद आनंदनगर कॉलोनी में स्थित छात्रावास के छात्र धरने पर बैठ गए थे। छात्र विभागीय अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और हॉस्टल मरम्मत करने की मांग कर रहे थे। लेकिन आदिवासी छात्रों की मांग सरकार के कानों तक नहीं पहुंच सकी। अंत में मजबूर होकर छात्र दोबारा खंडहर बन चुके हॉस्टलों में वापस लौट गए। 

ट्राइबल एक्टिविस्ट सुनील कुमार ने ट्विटर के माध्यम से छात्रों की दुर्दशा बयां की है। आदिवासी बच्चों की मदद के लिए अब विपक्षी दल कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह आगे आए हैं। दिग्विजय सिंह ने छात्रावास की मरम्मत में आने वाले खर्च का एस्टीमेट मांगा है और कहा है कि वो अपने सांसद निधि से मरम्मत करवाएंगे। 

सिंह के इस कदम पर खुशी जाहिर करते हुए सुनील कुमार ने आदिवासी छात्रों की ओर से उन्हें धन्यवाद ज्ञापित किया है। सुनील ने कहा कि राज्य की शिवराज सरकार से तो आदिवासी समाज को अब कोई उम्मीद ही नहीं रही, वे आदिवासियों के हक के रुपए निजी ब्रांडिंग में खर्च कर देते हैं। सुनील ने बताया कि यहां आदिवासी छात्रों के 4 हॉस्टल हैं जिनमें तीन बेहद जर्जर हैं। ये भवन करीब 50 साल पहले कांग्रेस शासनकाल में बनाए गए थे। उन्होंने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले 17 वर्षों में बीजेपी की सरकारें पुराने भवनों की मरम्मत तक नहीं करा पाई है। 

जबलपुर अनुसूचित जाति/जनजाति छात्र संगठन के अध्यक्ष शुभम चौधरी ने कहा कि हम यहां जान जोखिम में डालकर पढ़ रहे हैं ताकि देश के विकास में अपना योगदान दें सकें। उन्होंने सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, 'इस देश के मूलनिवासियों के साथ सरकार इतना भेदभाव क्यों करती है? दलित-आदिवासियों की पीढ़ी पहली बार कॉलेजों के चारदीवारी के भीतर दाखिल हुई है। ये चाहते कि पिछड़ों का कोई बच्चा पढ़कर अफसर न बने। सरकार आदिवासियों को सिर्फ जल, जंगल और जमीन तक सीमित रखना चाहती है। लेकिन हमें अब दुनिया की कोई भी ताकत कागज, कलम, किताब से वंचित नहीं कर सकती।'

बता दें कि मध्य प्रदेश की राजनीति इन दिनों दलित-आदिवासी समाज के उत्थान पर केंद्रित है। राज्य सरकार दलित और आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। बिरसा मुंडा जयंती पर आदिवासी गौरव दिवस से लेकर टंट्या भील बलिदान दिवस तक के समरोह कराने में सरकार ने करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए। हालांकि, इन समारोहों से आदिवासियों के जीवन में कोई तब्दीली नहीं आती क्योंकि जो पैसे आदिवासियों के कल्याण में खर्च होने थे उन पैसों को बड़े-बड़े सरकारी समारोहों और प्रचार प्रसार में खर्च कर दिए जाते हैं।