ओलावृष्टि के बाद किसानों ने पूछा कब होगी आय दोगुनी

2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का झूठा वादा करने वालों ने खेती की लागत दोगुनी कर दिए लेकिन राहत राशि में वही चार साल पुरानी का आश्वासन दे रहे हैं

Updated: Jan 14, 2022, 04:04 AM IST

मुझे याद है साल 2018 की 10 फरवरी से 13 फरवरी तक 4 दिनों में मध्यप्रदेश के विभन्न हिस्सों में भारी बारिश और ओलावृष्टि हुई थी जिसमें उन क्षेत्रों में रबी सीजन की फसलें तबाह हो गईं थी। 13 फरवरी को हमारे सिवनी जिला के बहुत बड़े क्षेत्र में ओलावृष्टि हुई थी जिसमें 184 गांवों के किसानों की फसलें चौपट हो गई थी। ज्ञात हो कि प्राकृतिक आपदा से फसलों के नष्ट होने पर मध्यप्रदेश सरकार राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 के अनुसार पीड़ित किसानों को राहत राशि वितरित करती है। तो 2018 के प्रावधान के अनुसार मध्यप्रदेश सरकार ने आज 2022 से 4 साल पहले ओलावृष्टि से नष्ट हुई फसलों के लिए पीड़ित किसानों को 30 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर की राहत राशि का वितरण किया था। 

अब चार साल बाद पुनः मध्यप्रदेश में विगत 7 जनवरी से 11 जनवरी को पांचों दिनों किसानों के लिए आसमानी आफत की बरसात हुई है। अतिवृष्टि और ओलावृष्टि से मध्यप्रदेश के विभन्न हिस्सों में फसलें तबाह हो गईं हैं। लेकिन भाजपा के विधायक, सांसद और अन्य नेता जो खेतों का दौरा कर रहे हैं गांवों में जाकर किसानों को राहत राशि के लिए आश्वासन तो दे रहे हैं लेकिन आज भी वह 30 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर राहत राशि का ही आश्वासन दे रहे हैं। जबकि यह सरासर गलत है क्योंकि 2018 से अब तक इन चार सालों में खेती में लागत महंगाई की वजह से डेढ़ गुनी से दोगुनी तक बढ़ी है। 2018 में 68-70 रुपया डीजल का दाम था लेकिन जब किसान को रबी सीजन की खेती में ट्रैक्टर चलाना तब 110 रुपया प्रति लीटर डीजल के दाम थे तब किसान ने खेत की जुताई, रोटर्वेटर, बोनी और सिंचाई किया है।

इस साल 267 रुपए की यूरिया किसान ने 400 से 500 रुपए और 1200 कि DAP 1800 से 2000 रुपए में ख़रीदा है। साथ ही किसान को मंहगी खाद के साथ अन्य तत्वों के प्रोडक्ट भी बिना जरूरत के खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा है। चार साल पहले मजदूरी दर 150 रुपया थी जो आज बढ़कर 300 से 400 रुपया प्रतिदिन है। किसान ने 3500 रुपए से 10 हजार रुपए क्विंटल का बोनी के लिए बीज ख़रीदा है। किसान ने इस सीजन के लिए पूर्ण लागत और पूरी मेहनत अब तक अपनी फसल में लगा दिया था।

इन चार सालों में जमीन का किराया में लगभग 2 गुना का इजाफा हुआ है। देखा जाए तो इस साल रबी सीजन में किसान को 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर लागत आई है। किसान की 1 लाख रुपया प्रति हेक्टेयर क़ीमत की फसल देखते देखते ओलावृष्टि में तबाह हो गई है तो सवाल यह बनता है कि क्या अब पीड़ित किसानों को 50 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर की राहत राशि नहीं मिलना चाहिए..?

व्यवहारिक तौर पर सरकार को चाहिए कि किसान की जितनी लागत फसल में लगी और वह तबाह हुई उतनी राशि उसे राहत राशि के रूप में मिलना चाहिए। 
अधिकांश किसान महंगाई के इस दौर में अपनी लागत कर्ज लेकर लगाते हैं, अब इस फसल तबाही के दौर में उनकी फसल नहीं आएगी तो वो इस सीजन में कर्ज चुकता नहीं कर पाएंगे तो ब्याज से और भी कर्ज का भार चढ़ेगा तो ऐसे में किसान के पास आगे चलकर 2 ही ऑप्शन बचेंगे या तो  जमीन बेंचेगा या फांसी के फंदे में झूलेगा।

सत्ता पक्ष के नेता, विधायक, संसद जो फोटो खिंचवाने के लिए खेत खेत घूम रहे हैं क्या उन्हें किसानों की इस पीड़ादायक विपदापूर्ण समय में 50 हजार रुपया प्रति हेक्टेयर की राहत राशि दिलाने का आश्वासन देने में सक्षम नहीं हैं..? 2022 में किसानों की आय दोगुनी का वादा करने वाली सरकार ने खेती की लागत तो दोगुनी कर दी लेकिन राहत की राशि वही चार साल पुरानी गिनी जा रही है।