इंदौर: स्वतंत्र भारत की आवाज कार्यक्रम का परमिशन कैंसिल, नामचीन हस्तियां होने वाली थी शामिल

इंदौर के जाल सभागृह में आयोजित होना था स्वतंत्र भारत की आवाज कार्यक्रम, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, इतिहासकार शम्स उल इस्लाम, अशोक पांडेय समेत कई वक्ताओं को होना था शामिल

Updated: Mar 26, 2022, 11:20 AM IST

इंदौर। मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित “स्वतंत्र भारत की आवाज” कार्यक्रम पर जिला प्रशासन ने रोक लगा दी है। इस कार्यक्रम के परमिशन कैंसिल होने के बाद प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, इतिहासकार शम्स उल इस्लाम, लेखक अशोक पांडेय समेत कई नामचीन हस्तियों को शामिल होना था।

शनिवार को तुकोगंज इलाके में स्थित जाल सभागृह में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम को एक दिन पहले सरकारी आदेश का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया। यह कार्यक्रम सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एहतेशाम हाशमी की लीगल एड फाउंडेशन ऑफ इंडिया और कांग्रेस प्रवक्ता अमीनुल सूरी की आजाद युवा फाउंडेशन के तत्वाधान में आयोजित किया गया था। 

सभागार चलाने वाले टेक्सटाइल डेवलपमेंट ट्रस्ट ने आयोजकों को पत्र भेजकर सूचित किया कि 25 मार्च को 'अपरिहार्य कारणों' का हवाला देते हुए इस कार्यक्रम की अनुमति रद्द कर दी गई। हालांकि अगले दिन यानी 26 मार्च के लिए फिर से अनुमति मांगी गई थी, लेकिन सरकारी आदेश का हवाला देते हुए सभागृह संचालकों ने उसे दूसरी बार फिर से रद्द कर दिया। 

कार्यक्रम में शामिल होने इंदौर पहुंचे विख्यात इतिहासकार शम्स उल इस्लाम ने बताया कि वे भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत दिवस पर वक्तव्य देने वाले थे। साथ ही हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाइयों की साझी विरासत को लेकर अपनी बात रखने वाले थे। वह कृष्णस्तुति में लिखा गया एक गीत सुनाने वाले थे जिससे उन्हें रोका जा रहा है। जबकि वो कई जगहों पर इसे सुना चुके हैं। शम्स उल इस्लाम ने कहा कि वो पूरे देश में घूम रहे हैं और कई जगहों पर यह गीत सुना चुके हैं। बता दें की शम्स उल इस्लाम द्वारा लिखी "हिंदू नेशनलिज्म" और "मुस्लिम अगेंस्ट पार्टीशन ऑफ इंडिया" किताब विश्वभर में पढ़ी जाती हैं।

आयोजनकर्ता एहतेशाम हाशमी ने इस बारे में बताया कि संवैधानिक मान्यताओं की हिफाजत को लेकर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। हाशमी ने हैरानी जताई कि प्रशासन ने बिना कोई ठोस वजह के कार्यक्रम पर रोक लगा दी है। हाशमी के मुताबिक उन्हें शर्त दिया गया कि शम्स उल इस्लाम को बुलाए बगैर वे कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। हाशमी ने पूछा है कि आखिर एक इतिहासकार की मौजूदगी से शासन-प्रशासन को क्या तकलीफ हो सकती है।