MP हाईकोर्ट का अजीबोगरीब आदेश, पत्नी को पीटने वाले पति को घर जमाई बनने की दी सजा

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने घरेलू हिंसा के एक मामले में सुनवाई करते हुए आरोपी पति को एक महीने घर जमाई बनकर ससुराल में रहने का आदेश दिया, साथ ही ससुराल वालों को कहा कि दामाद की अच्छे से खातिरदारी करें

Updated: Feb 27, 2022, 09:34 AM IST

ग्वालियर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने महिला अपराध मामले में एक अजीबोगरीब आदेश दिया है। हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने घरेलू हिंसा के मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी को घर जमाई बनकर रहने की सजा दी है। न्यायालय ने पीड़िता के घरवालों को यह भी कहा है कि एक महीने अपने दामाद की अच्छे से खातिरदारी करें। 

रिपोर्ट्स के मुताबिक मुरैना निवासी गणेश रजक की पत्नी गीता रजक ने अपने दो साल के बच्चे की कस्टडी के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी। गीता ने ससुराल वालों पर आरोप लगाया था कि उन्होंने उसके बेटे को जबरण घर में रखकर उसे घर से निकाल दिया। गीता ने अपने पति के खिलाफ मारपीट करने और ससुराल वालों पर दुर्व्यवहार करने का भी आरोप लगाया था।

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मामले की सुनवाई के दौरान गणेश रजक ने कोर्ट में सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह पत्नी के साथ रहना चाहता है और गीता खुद ही उसे छोड़कर मायके चली गई। मामले की सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने पति को निर्देश दिया कि वह अपने बेटे को लेकर पत्नी के पास जाए और एक महीने तक घर जमाई बनकर ससुराल में रहे। एक महीने बाद इस मामले की अगली सुनवाई करेंगे। हाई कोर्ट का आदेश सुनकर पति ने इसका पालन करने की शपथ ली।

हाईकोर्ट ने गीता के परिजनों को भी दामाद के साथ बेहतर बर्ताव करने की हिदायत दी। हाई कोर्ट ने कहा कि दामाद की अच्छे से खातिरदारी करो, बेटी का घर टूटने से बच जाएगा। बाप-बेटे बिछुड़ने से बच जाएंगे, नहीं तो बेटी, दामाद और 2 साल के बच्चे का जीवन खराब हो जाएगा। हाई कोर्ट का निर्देश सुनने के बाद गीता के माता-पिता ने अपने दामाद गणेश को सम्मान के साथ घर में रखने का भरोसा दिलाया। माता-पिता ने कहा कि हम भी यही चाहते हैं कि बेटी-दामाद एक साथ रहने लग जाएं।

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बता दें कि बीते साल मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक विवादित आदेश में छेड़छाड़ के आरोपी को जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि वह पीड़िता से राखी बंधवाए। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में 9 महिला वकीलों ने चुनौती दी थी और कहा था कि यह फैसला कानून के सिद्धांत के खिलाफ है। हाईकोर्ट के इस फैसले को अटॉर्नी जनरल ने भी ड्रामा करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच ने तब इस फैसले को खारिज कर दिया था।