स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा के बिना नर्मदा को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता, नर्मदा संरक्षण न्यास के कार्यक्रम में बोलीं मेधा पाटकर

मेधा पाटकर ने कार्यक्रम में बोलते हुए गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए, मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध के कारण नुकसान झेलने वाली लाखों की आबादी का मसला भी उठाया, इसके साथ ही उन्होंने घाटी पर होने वाले रेत उत्खनन को लेकर भी टिप्पणी की, मेधा पाटकर ने कहा कि जब तक नर्मदा घाटी के किनारे रहने वाले लोगों को नहीं बचाया जाएगा, तब तक नर्मदा को नहीं बचाया जा सकता

Updated: Mar 06, 2022, 02:24 PM IST

भोपाल। रविवार को राजधानी भोपाल में नर्मदा संरक्षण न्यास का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें न्यास के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष अमृता राय सहित तमाम पर्यावरणविदों ने नर्मदा के संरक्षण और घाटी के निवासियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने पर मंथन किया। पर्यावरण एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने नर्मदा संरक्षण पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक नर्मदा घाटी के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा नहीं की जाएगी, तब तक नर्मदा का संरक्षण नहीं किया जा सकेगा। 

मेधा पाटकर ने कहा कि आज नर्मदा के जल जीव विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं। जिसका सीधा असर मछुआरों पर हुआ है। मेधा पाटकर ने कहा कि गुजरात और मध्य प्रदेश की सरकार की नीतियों के कारण गांव के गांव डूब गए, लेकिन विस्थापितों के पुनर्वास के लिए कुछ नहीं किया गाया। सिर्फ नर्मदा के ज़रिए अपने खजाने भरने की आड़ में घाटी किनारे रहने वाले लोगों का जीवन खतरे में डाला गया।

मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध पर भी अपनी राय व्यक्त की। मेधा पाटकर ने कहा कि पर्यावरण पर असर तब पड़ता है जब आप नदी को जोड़ते और तोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि नर्मदा को अविरल बहने देना ही पर्यावरण का संरक्षण से जुड़ा है। मेधा पाटकर ने कहा कि पहले कई लोग हमारा विरोध करते रहे, लेकिन केदारनाथ हादसे के बाद मेरे विरोध में लिखने बोलने वाले लोग साथ आ गये।

पाटकर ने कहा कि बांध की वजह से होने वाले नुकसान का अंदाज़ा लगाना बेहद ज़रुरी है। आज सिर्फ भूजल ही नहीं मानव का इतिहास भी नर्मदा के नीचे भरा है। पाटकर ने कहा कि जैसे पानी जंगल को बचाता है वह मिट्टी को भी बचाता है। पानी से ही अन्न सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।

 मेधा पाटकर ने जल ग्रहण क्षेत्र को बचाने की अपील करते हुए कहा कि आज राजनीतिक दलों ने जल ग्रहण क्षेत्र को धन अर्जित करने का ज़रिया बना लिया गया है। नर्मदा किनारे पेड़ लगाने के दावे किये गये लेकिन यह सभी दावे ढकोसले साबित हुए, न तो नर्मदा को बचाने के लिए कोई प्रयास किया गया और न ही पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकारों ने कोई कदम उठाए। पाटकर ने कहा कि आज भी बड़ी आबादी विकास के नाम पर बुरे अंजाम भुगत रही है। 

मेधा पाटकर ने कहा कि जब तक घाटी किनारे रहने वाले लोगों के हितों की रक्षा नहीं की गयी, तब तक नर्मदा घाटी को नहीं बचाया जा सकेगा। मेधा पाटकर ने गुजरत और मध्य प्रदेश की सरकारों की भी जमकर आलोचना की। मेधा पाटकर ने कहा कि दोनों राज्यों की नीतियों की वजह से गांव के गांव डूब गये। लेकिन विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिये कोई कदम नहीं उठाया गया। मेधा पाटकर ने कहा कि कई जल जीव विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गये। मछुआरों को गंभीर परिणाम भुगतना पड़ा है, किसान और आदिवासी भुगत रहे हैं। मेधा पाटकर ने नर्मदा किनारे रेत के अवैध खनन पर भी चिंता जाहिर करते हुए इस रोकने की अपील की। 

अमृता राय ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसा कहा जाता रहा है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस मान्यता का अर्थ यही है हम नर्मदा को उसके मूल रूप में ही रहने दें, उसे तनिक भर भी दूषित न होने दें। इसलिये जब मैंने 3100 किलोमीटर की यात्रा की तब मैंने नर्मदा जी की पूजा तो कि लेकिन नर्मदा जी को मैंने छुआ नहीं। अमृता राय ने कहा कि नर्मदा की खुशहाली हमारे आचरण से ही आयेगी। आस्था और अस्तित्व के साथ हमें अपने आचरण पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा।

अमृता राय ने कहा कि आज हमें यह सोचने की ज़रूरत है कि आज हमारी आस्थाएं स्वकेंद्रित हो चुकी हैं, लेकिन हम सामूहिक चेतना को हम नर्मदा जी के प्रति आस्था को जोड़ नहीं पाते। प्रकृति को बचाने की ज़िम्मेदारी सामूहिक है। हवा पानी और आकाश हमारी सामाजिक और सामूहिक है। उन्होंने धार्मिक ग्रंथों का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारी मान्याताओं में भी प्रकृति को संरक्षित करने की बात कही गयी है। प्रकृति का ऋण हम तभी चुका सकते हैं, जब हम उससे जितना लें उसे उतना ही वापस लौटा दें। 

उन्होंने कहा कि मनुष्य का अस्तित्व पानी पर निर्भर है, जिसमें नदी की सबसे बड़ी भूमिका है। जब तक हमें नर्मदा जी की ज़रुरत थी तब हमने अपनी आस्था के लिये नर्मदा जी का भरपूर उपयोग किया। लेकिन जब आज नर्मदा जी पर खतरा मंडराया है तब हमने अपनी आस्था को आत्मकेंद्रित कर लिया है। इसीलिये हमें नर्मदा जी के अस्तित्व को बचाने के लिये हमें आपने आचरण को सामूहिक करने की ज़रूरत है। हम तमाम संसाधन खरीद सकते हैं, लेकिन हम नदी, पानी और आसमान को नहीं खरीद सकते। यह तीनों प्रकृति को वह तत्व हैं, जिन्हें बचाने की ज़िम्मेदारी सामूहिक है। एक स्वस्थ नदी वही है जो अविरल और प्रदूषण रहित है। कैचमेंट एरिया का सुरक्षित रहना और जल का पर्याप्त बहाव होना बेहद ज़रूरी है। एनजीटी के मुताबिक नदी के सौ मीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन नहीं होना चाहिये, लेकिन नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से ही कंस्ट्रक्शन हैं। जंगल के कटने से नर्मदा नदी के बहाव पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। विकास की आड़ में प्रकृति से खिलवाड़ हो रहा है। 

प्रकृति से खिलवाड़ होने देने का लें संकल्प: दिग्विजय सिंह 

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कार्यक्रम में विचार रखने के लिये सभी का धन्यवाद दिया। उन्होंने अपने संबोधन में मेधा पाटकर और अमृता राय द्वारा कही गयीं बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नर्मदा जी को संरक्षित करने के लिये सही विचारधारा और आचरण की ज़रुरत है। हम जितना प्रकृति से लेते हैं हमें उतना ही प्रकृति को लौटाना चाहिये।

उन्होंने कहा कि नर्मदा जी को बचाने के लिये हम लगातार चर्चा करते रहेंगे हम जगह लोगों तक यह बात हम पहुँचायेंगे और यह बतायेंगे कि बड़े बड़े बांध बनाने की ज़रूरत नहीं है।छोटे बांध भी बनाये जा सकते हैं। दिग्विजय सिंह ने कहा कि हमने इस मंथन में जागरुकता के प्रसार का संकल्प लिया।