राज्‍यों का झगड़ा, MP सीमा पर मजदूर नजरबंद

राज्‍यों में समन्‍वय नहीं, 5-5 हजार रुपए दे कर भी घर नहीं पहुंच पा रहे श्रमिक

Publish: May 05, 2020, 10:00 PM IST

Photo courtesy :  jhabualive
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गुजरात में काम करने आए श्रमिक काम बंद होने के सवा माह बाद भी 5-5 हजार रुपए दे कर झारखंड, उप्र जाने के लिए निकले हैं मगर उन्‍हें एमपी में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। झाबुआ कलेक्‍टर का कहना है कि भोपाल से फोन आने के बाद इन श्रमिकों को रोका गया है। जब तक इनके पास गृह राज्‍य में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी, इन्‍हें एमपी से होकर जाने नहीं दिया जाएगा। इस तरह मजूदर सीमा पर नजरबंद है। वे बॉर्डर पर रोके जाने से नाराज हैं। सेंधवा और पिटोल में प्रदर्शन के बाद श्रमिक पथराव भी कर चुके हैं। राज्‍यों के बीच समन्‍वय का यह अभाव श्रमिकों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। वे बच्‍चों और महिलाओं के साथ गर्मी में बसों में बैठे परेशान हो रहे हैं।

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मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की सीमा गुजरात से और बड़वानी की महाराष्ट्र की सीमा से लगी हुई है। इन दोनों ही राज्यों से बड़ी संख्या में मजदूर आ रहे हैं और यह मजदूर मध्य प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के भी हैं। प्रदेश के मजदूरों को तो स्क्रीनिंग के बाद राज्य के अनेक स्थानों पर भेजा जा रहा है, लेकिन अन्य राज्यों के मजदूरों को सीमा पर ही रोक दिया जा रहा है। इसके चलते झाबुआ और बड़वानी दोनों ही स्थानों पर तनाव की स्थिति है। इससे यहां वाहनों की लंबी कतारें भी लगी हैं। रविवार को महाराष्ट्र से आने वाले दूसरे राज्यों के मजदूरों को जब बड़वानी के सेंधवा में रोका गया तो मजदूरों ने चक्का जाम कर हंगामा शुरू कर दिया। इस दौरान पथराव भी किया गया। इसमें कई वाहन क्षतिग्रस्त हुए तो कई पुलिसकर्मियों को चोटें भी आईं।

सोमवार को एक बार फिर 10 बसों में सवार हो कर प्रवासी श्रमिक झारखंड के गिरिडीह जाने के लिए निकले मगर इन्‍हें पिटोल में रोक दिया गया है। उनके पास सूरत से जारी हुआ गुजरात सरकार का अनुमति पत्र था मगर झारखंड सरकार का अनुमति पत्र नहीं था। इसलिए उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। यात्रियों ने बताया कि गरीबी के बावजूद हर मजदूर ने अपने घर जाने के लिए 5-5 हजार रुपये देकर किराये की बस की है। मगर जब उन्‍हें आगे नहीं जाने दिया गया तो वे बिफर गए। शनिवार को इसी मामले में उप्र के मजदूरों ने कई घंटो तक हंगामा किया था। वे बसों से उतरकर जंगलों में चले गए थे। बाद में वे कई किमी चलने के बाद पुलिस गिरफ्त में आए। इस कारण अब पुलिस ने पिटोल बॉर्डर पर खड़ी बसों में से झारखंड के मजदूरों को नीचे उतरने से रोक दिया गया है। पुलिस ने बस में ही खाने के पैकेट भेजे। वहां तैनात पुलिस बल यात्रियों पर नजर रखे हुए है।

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झाबुआ से निलेश सिंह ने बताया कि पिटोल सीमा पर सीएसपी विजय डाबर व निरीक्षक दिनेश शर्मा के नेतृत्व में तीन पाली में अलग अलग 50-50 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। इन के पास न तो पीपीई साधन है और न ही मजदूरों के लिए व्‍यवस्‍था के संसाधन। प्रशासन सामाजिक संगठनो के साथ मिलकर श्रमिकों के लिए भोजन-पानी का प्रबंध कर रहे हैं।

मीडिया खबरों के अनुसार कलेक्‍टर प्रबल सिपाहा ने कहा है कि गुजरात से उत्तर प्रदेश की ओर जा रहे मजदूरों को रोकने का दूरभाष पर निर्देश मिला है। इसी आधार पर मजदूरों को यहां रोका गया है। एसडीएम डॉ अभय सिंह खराड़ी ने बताया कि झारखंड सरकार से मजदूरों को भेजने की सहमति मिलने के बाद ही उन्हें प्रदेश की सीमा में घुसने दिया जा सकता है। यदि सहमति नहीं मिलती है तो किसी भी तरह का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा।

 मेधा पाटकर 48 घण्टे की भूख हड़ताल पर

लॉकडाउन में श्रमिकों की अवहेलना पर सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने पहले 24 घण्टे की भूख हड़ताल की। इसे 5 मई की सुबह और 24 घण्टों के लिए बढ़ा दिया गया। मेधा ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों के साथ--साथ सभी मेहनतकश लोगों के लिए अपने घर वापस जाना या राहत और राशन पाना मुश्किल हो गया है। इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति औरराज्यों में समन्वय का अभाव है  राज्यों की सीमा रेखा  कभी बंद की जाती है, कभी खोली जाती है। हजारों  मजदूर  रोकथाम के बावजूद पैदल चल पड़े हैं। मुख्यमंत्रियों को लिखे पत्र में पाटकर ने मांग की है कि रेल और वाहन व्यवस्था तत्काल शुरू करें। श्रमिकों को पैदल चलने के लिए मजबूर न करें। उनको हर ठेकेदार या मालिक से मार्च महीने का पूरा वेतन दिलवाया जाए।  हर इंसान तक राहत और राशन पहुंचे भले ही उसके पास राशन और पर्ची हो या ना हो।