PMLA के तहत ED को जांच, गिरफ्तारी और संपत्ति जब्त करने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

कार्ति चिंदबरम, अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत कुल 242 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, ईडी का अधिकार रहेगा बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी मनमानी नहीं

Updated: Jul 27, 2022, 09:10 AM IST

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत गिरफ्तारी के ED के अधिकार को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि ED की गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने प्रिवेंशन ऑफ मनी साथ एक्ट (PMLA) के कई प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया। 

दरअसल, कार्ति चिंदबरम, अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत कुल 242 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने फैसले में ईडी के जांच, गिरफ्तारी और संपत्ति को अटैच करने के अधिकार को बरकरार रखा है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जांच के दौरान ED, SFIO, DRI अधिकारियों के सामने दर्ज बयान भी वैध सबूत है। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि कुमार की स्पेशल बेंच ने यह फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि ईडी अधिकारियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को हिरासत में लेने के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ED अफसर पुलिस अधिकारी नहीं हैं, इसलिए PMLA के तहत एक अपराध में दोहरी सजा हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि, गंभीर अपराध से निपटने के लिए कड़े कदम जरूरी हैं। मनी लॉन्ड्रिंग ने आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया है।।मनी लॉन्ड्रिंग आतंकवाद से कम जघन्य नहीं है। मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधि का देशों की संप्रभुता और अखंडता पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है। मनी लॉन्ड्रिंग  को दुनिया भर में अपराध का एक गंभीर रूप माना गया है। अंतरराष्ट्रीय निकायों ने भी कड़े कानून बनाने की सिफारिश की है। मनी-लॉन्ड्रिंग न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है बल्कि अन्य जघन्य अपराधों को भी बढ़ावा देता है।

बता दें कि हाल के दिनों में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे थे। विपक्षी दलों ने कई बार आरोप लगाया कि ईडी को केंद्र सरकार राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए हथियार के तौर पर दुरुपयोग कर रही है। राज्यों में निर्वाचित सरकार गिराने में भी ईडी की भूमिका संदिग्ध बताया गया। इन आरोपों के बावजूद सर्वोच्च अदालत ने जांच एजेंसी के सभी अधिकारों को बरकरार रखा है।