पेगासस खरीद में शामिल था भारत का शीर्ष नेतृत्व, इजराइली रिपोर्टर ने पेगासस सौदे को लेकर किए कई खुलासे

इजराइली रिपोर्टर रोनेन बर्गमेन ने द वायर को बताया है कि भारत ने इजराइल से पेगासस का जो लाइसेंस खरीदा है, उसके तहत एक समय पर पचास फोन को टार्गेट किया जा सकता है

Updated: Feb 02, 2022, 06:52 AM IST

Photo Courtesy: Kidnan.com
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नई दिल्ली। इजराइल सरकार से रक्षा सौदे की आड़ में भारत सरकार द्वारा पेगासस खरीद के मामले में इजराइली रिर्पोटर रोनेन बर्गमेन ने कई खुलासे किए हैं। न्यू यॉर्क टाइम्स के लिए पेगासस की रिपोर्ट पर काम करने वाले रोनेन ने द वायर को एक इंटरव्यू दिया है। जिसमें रिपोर्टर ने पेगासस खरीद के मामले में विस्तार से बात की है। रिपोर्टर ने दावा किया है कि पेगासस की खरीद में भारत का शीर्ष नेतृत्व शामिल था। इसके साथ ही भारत सरकार ने इजराइली सरकार से पेगासस की जो डील की थी, उसके लाइसेंस के तहत एक समय पर 50 फोन को टारगेट किया जा सकता है।

इजराइली रिर्पोटर ने द वायर को दिए साक्षात्कार में बताया है कि इजराइल और भारत की सरकार के बीच हुई इस पेगासस डील में दोनों देशों की टॉप लीडरशिप शामिल थी। रिर्पोटर ने बताया कि इस डील के लिए भारत की टॉप लीडरशिप ने काफी ज़ोर आजमाइश की थी। हालांकि डील में शामिल होने वाले लोगों का नाम ज़ाहिर करने से रोनेन बर्गमेन ने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अपने सूत्रों की गोपनीयता को सुरक्षित रखने की वजह से वह डील में शामिल रहने वाले नामों का खुलासा नहीं कर सकते। 

इजराइली रिर्पोटर ने द वायर को भारत सरकार द्वारा पेगासस के इस्तेमाल के लिए खरीदे गए लाइसेंस के ऊपर भी चर्चा की। रिपोर्टर ने बताया कि भारत सरकार के पास पेगासस का जो लाइसेंस है, उसके तहत एक समय पर 50 फोन को टारगेट किया जा सकता है। 

द वायर ने रिपोर्टर से 2017 में भारत और इजराइल की सरकार के बीच हुए दो बिलियन डॉलर के रक्षा सौदे में पेगासस स्पाइवेयर का सौदे की रकम के बारे में भी पूछा। इसके जवाब में रिपोर्टर ने कहा कि यह रकम दो बिलियन डॉलर के मुकाबले में काफी कम थी, लेकिन यह सौदा करोड़ों में हुआ था।

रोनेन ने बताया कि इजराइल के शीर्ष अधिकारियों द्वारा ही किसी खुफिया एजेंसी को पेगासस मुहैया कराया जाता है। इजराइल के रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी ही पेगासस के लाइसेंस पर हस्ताक्षर करते हैं, और इसके लिए उन्हें विदेश मंत्रालय की अनुमति लेनी होती है। इस सौदे में अमूमन इजराइल के प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की संलिप्तता होती है। रोनेन ने बताया कि इस सौदे में एक वन पेज एंड यूजर एग्रीमेंट होता है। जिसमें पेगासस खरीदने वाले ग्राहक को यह बताना होता है कि वह इसका उपयोग केवल आतंकवादियों और आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ ही करेगा। 

रोनेन से जब द वायर ने यह पूछा कि क्या पत्रकारों, राजनेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया जाना इजराइल के साथ हुए एंड यूजर एग्रीमेंट का उल्लंघन करता है? इसके जवाब में रिपोर्टर ने कहा कि इस संबंध में इजराइल के रक्षा मंत्रालय से कई मर्तबा सवाल पूछे जा चुके हैं। लेकिन इस बारे में अब तक इजराइल के रक्षा मंत्रालय और डिफेंस एक्सपोर्ट कंट्रोल एजेंसी की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया है।

रिपोर्टर ने इसे सऊदी अरब के उदाहरण से समझाया। रोनेन ने बताया कि जमाल खशोगी की नृशंस हत्या के बाद इजराइल ने सऊदी अरब के पेगासस के लाइसेंस पर रोक लगा दी थी। लेकिन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के इजरायल के प्रधानमंत्री से बात करने के तत्काल बाद ही इस पेगासस को एक बार फिर से बहाल कर दिया गया।

भारत सरकार के डील पर बात करते हुए रिपोर्टर ने बताया कि जितना उन्हें पता है इस डील के तहत भारत सरकार एक साथ दस से लेकर अधिकतम 50 फोन को टारगेट कर सकती है। अगर इस कोटे की सीमा को पार किया जाए तो ऑपरेटर को मॉनिटर किए जा रहे दूसरे फोन की मॉनिटरिंग रोकनी पड़ेगी।

दरअसल हाल ही में न्यू यॉर्क टाइम्स में एक खबर प्रकाशित हुई थी। जिसमें भारत को लेकर यह दावा किया गया है कि मोदी सरकार ने 2017 में इजराइल के साथ हुए रक्षा समझौते की आड़ में पेगासस की खरीद की थी। जिसका असर भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर भी पड़ा। रिपोर्ट में बताया गया है कि करीब पंद्रह हजार करोड़ के हुए रक्षा सौदे के बाद इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेतन्याहू भारत के दौरे पर आए थे। जिसे भारत में एक ऐतिहासिक दौरे की तरह की पेश किया गया।

इसके कुछ ही समय बाद जून 2019 में भारत सरकार ने यूएन के आर्थिक और सामाजिक परिषद में इजराइल के समर्थन और फिलिस्तीन के विरोध में वोट किया। भारत सरकार ने मानवाधिकार संगठन में फिलिस्तीन को ऑब्जर्वर का दर्जा देने के खिलाफ में वोट किया। इन घटनाक्रमों को अब भारत सरकार और इजराइल के बीच हुए इस पेगासस समझौते से जोड़कर देखा जा रहा है।

पेगासस का खुलासा पिछले साल अगस्त महीने में हुआ था। जिसमें भारत सरकार पर देश के राजनेताओं, पत्रकारों, न्यायिक व प्रशासनिक अधिकारियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के आरोप लगे थे। भारत सरकार पर यह आरोप लगे थे कि उसने अपने विरोधियों पर निगरानी रखने के लिए इजराइल से इस स्पाइवेयर को खरीदा था। टारगेट किए गए लोगों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा, सीबीआई के पूर्व महानिदेशक आलोक वर्मा के नाम प्रमुख तौर पर शामिल थे। इतना ही नहीं मोदी सरकार में दो मंत्री प्रह्लाद पटेल और अश्विनी वैष्णव के भी इस जासूसी के टारगेट का हिस्सा होने का दावा किया गया था।