दफ़्तर दरबारी: कहानी एमपी में चाइल्ड बजट बनाने की

बताते हैं कि एमपी के सीनियर आईएएस ने दबाव में चाइल्‍ड बजट तैयार किया है.. 9 मार्च को बजट पेश होने के बाद परंपरा से हटकर अफसरों ने मीडिया से बजट पर चर्चा की.. वे अपने विभाग को मिले बजट पर बाग बाग नजर आए लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों की प्रतिक्रिया जानने को नहीं मिली..

Updated: Mar 12, 2022, 06:06 AM IST

कहते हैं, सरकार नेता चलाते हैं मगर सभी जानते भी हैं कि कई नेताओं को अफसरशाही चलाती है। अफसर भी ऐसे नेताओं से खुश रहते हैं जो ज्‍यादा टोका-टाकी न करें। कई अफसर नेताओं की हां में हां मिलाकर अपने बुरे वक्‍त को भी ‘गोल्‍डन पीरियड’ बना लेते हैं तो कभी-कभी नेताओं को इनकार करना अफसरों को भारी पड़ जाता है। मध्‍य प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में इनदिनों ऐसे ही मामले की गूंज है। असल में मामला बच्‍चों से जुड़ा है।

मध्‍यप्रदेश यदि बीमारू राज्‍य का कलंक झेलता है तो इसका कारण लचर स्‍वास्‍थ्य सेवाओं के साथ साथ कुपोषण, बाल और मातृ मृत्‍यु दर भी है। इन मामलों में देश में अव्‍वल मध्‍य प्रदेश में सरकार ने इस बार नवाचार करते हुए विधानसभा में चाइल्ड बजट पेश किया है। इस बजट के प्रावधानों को तैयार करने का जिम्‍मा महिला एवं बाल विकास विभाग के मुखिया अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव अशोक शाह को दिया गया था। महिला एवं बाल विकास विभाग इसलिए क्‍योंकि बच्‍चों को कुपोषण से बचाने और महिलाओं की सेहत में सुधार के लिए आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन का जिम्‍मा इसी विभाग के पास है।

विधानसभा में वित्‍तमंत्री जगदीश देवड़ा ने पहली बार चाइल्‍ड बजट पेश करते हुए बताया कि बच्‍चों के कल्‍याण के लिए राज्‍य सरकार एक वर्ष में 57 हजार 803 करोड़ रुपये बच्‍चों पर खर्च करेगी। इस बजट में 17 विभागों में बच्चों के लिए संचालित योजनाओं को शामिल किया गया है। इसमें सबसे ज्यादा 26,748 करोड़ रुपये का बजट स्कूल शिक्षा विभाग में है। जबकि महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं में 54 करोड़ 49 लाख 94 हजार 90 रुपये का प्रविधान किया गया है।

सरकार इसे उपलब्धि मान कर पीठ थपथपा रही है मगर अंदरखाने में तो कुछ ओर ही चर्चा है। बताते हैं कि एसीएस अशोक शाह इस चाइल्‍ड बजट को पेश करने के मूड में नहीं थे। बाद में मुख्‍यमंत्री सचिवालय से योजना आयोग से आए दबाव के चलते वे राजी हुए। मगर एक सवाल हवाओं में तैर रहा है कि क्‍या बजट बना देने भर से मध्‍य प्रदेश में बच्‍चों का कुपोषण रूक जाएगा? क्‍या बाल मृत्‍यु की स्थिति सुधर जाएगी?

सरकार ने बजट बनाने में चतुराई दिखाई है। अबतक अलग-अलग विभागों के तहत बच्‍चों के लिए नियोजित बजट को एक साथ रखकर चाइल्‍ड बजट कह दिया गया है। यानि अलग से कुछ नहीं है। चतुराई यह है कि जो बजट हर बार अलग अलग मदों में तय होता था उसे सजाकर एक साथ चाइल्ड बजट कर दिया गया है। एक जगह रखा इसलिए कि संदेश जाए कि सरकार बच्‍चों के लिए चिंतित है। मगर मैदान में अजब हाल हैं। संभवत: अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव अशोक शाह इसलिए ही तैयार नहीं थे कि अलग से बजट घोषित करने से अव्‍यवस्‍थाएं तो सुधरने वाली हैं नहीं। जब आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्‍चों और गर्भवती माताओं को तोलने वाली वजन मशीन ही नहीं हैं तो कैसे उनके कुपोषण का आकलन होगा? जब कुपोषित बच्‍चों के उपचार के लिए जिलों में बनाए गए एनआरसी यानी पोषण पुनर्वास केंद्रों में कुपोषित बच्‍चे पहुंच ही नहीं रहे हैं तो कैसे बाल मृत्यु रूक जाएगी?

9 मार्च को बजट पेश होने के बाद परंपरा से हटकर कई आईएएस अफसरों ने मीडिया से बजट पर चर्चा की। वे अपने विभाग को मिले बजट पर बाग बाग नजर आए। इन वरिष्‍ठ आईएएस अफसरों ने दिल खोल कर सरकार की तारीफ की लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के अफसरों की प्रतिक्रिया जानने को नहीं मिली। खबर है कि बजट बढ़ा जरूर है मगर इसमें से अधिकांश राशि कर्मचारियों के बढ़ने वाले वेतन, भत्‍तों व लाड़लियों पर खर्च होगी तो कुपोषित बच्‍चों के खाते में क्‍या आएगा?

दूसरी तरफ, भ्रष्‍टाचार पर लगाम कसने की कोशिश में सरकार रिटायर हुए अफसरों पर कार्रवाई की तैयारी में हैं। खबर है कि मध्य प्रदेश के दो आईएएस अधिकारी अंजू सिंह बघेल और एमएस भिलाला का रिटायरमेंटकाल परेशानी में घिरने वाला है। अनियमितता के मामलों में की गई विभागीय जांच में दोनों दोषी पाए गए हैं और उनके विरुद्ध कार्रवाई प्रस्तावित है। दोनों अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, इसलिए पेंशन रोकने या उनसे वसूली करने का निर्णय करने से पहले केंद्र सरकार की स्‍वीकृति अनिवार्य है। इसलिए मध्‍य प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से कार्रवाई की अनुमति मांगी है।

चर्चा है कि इन दो पूर्व आईएएस पर कार्रवाई कर प्रदेश सरकार भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सख्‍ती का संदेश देना चाहती हैं। यूं भी मुख्‍यमंत्री खुद मंच से कई बार कह चुके हैं कि वे भ्रष्‍टाचारियों को छोड़ेंगे नहीं। मगर सवाल तो यह है कि सरकार समर्थ पर कार्रवाई का साहस कब दिखाएगी? ये दो अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, इसलिए उनपर कार्रवाई कर दी जाएगी मगर उन 63 आईएएस अधिकारियों का क्‍या जिनके विरुद्ध लोकायुक्त संगठन और राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में शिकायतें लंबित हैं? इन समर्थ अफसरों पर कार्रवाई का मामला क्‍यों अटका हुआ है?

रिटायरमेंट के बाद इन दो अधिकारियों के दिन ही नहीं बिगड़े हैं बल्कि सबसे खतरनाक अफसर माने जाने वाले आईएएस राधेश्‍याम जुलानिया के साथ भी ऐसा ही हुआ है। अपनी सेवा के अंतिम समय में एकांत और उपेक्षा का दंश झेल चुके आईएएस जुलानिया को पिछले सप्‍ताह कोर्ट से भी निराशा ही हाथ लगी है। राजधानी के पत्रकार रवींद्र जैन के खिलाफ लगाए गए मानहानि के मामले में दिल्‍ली की अदालत ने प्रकरण खारिज कर दिया है। आर्थिक अनियिमितता की खबर छापने से नाराज जुलानिया ने कोर्ट की शरण ली थी लेकिन बताते हैं कि बार बार की तारीखों के बाद भी वे खुद हाजिर नहीं हुए और कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया।

मध्‍य प्रदेश की राजनीति और प्रशासन को जानने वालों को मालूम है कि आईएएस जुलानिया का क्‍या जलवा रहा है। झाबुआ में एसडीएम से लेकर जल संसाधन विभाग के मुखिया रहने तक उन्‍होंने ऐसा माहौल तैयार किया था कि मातहत उनके सामने जाने से डरते थे। कई खूबियों वाले आईएएस जुलानिया कानून के भी बड़े जानकार हैं। ऐसे निपुण विधिवेत्‍ता कि उनकी सलाहों ने कई अधिकारियों को संकट से उबारा है। मगर इस बार चूक हो गई जिसके कारण उन्‍हें अपनी ही मास्‍टरी वाले क्षेत्र में विफलता हाथ लगी है।

इधर पन्ना कलेक्टर संजय कुमार मिश्र का एक कार्य भी इनदिनों सुर्खियां बटोर रहा है। कलेक्‍टर मिश्र जिले के बरखेड़ा माध्यमिक शासकीय स्कूल का निरीक्षण करने पहुंचे थे। इसी दौरान बच्चों का लंच टाइम हुआ। जिस टेबल में बच्चों को खाना दिया जा रहा था वह गंदी थी। कलेक्टर ने जब ये देखा तो खुद ही टेबल को गीले कपड़े से पोंछकर धूल साफ करने लगे। शिक्षक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी फटकार और कार्रवाई के डर से घबरा गए थे। वे तब तक दिल थामे रहे जब तक कलेक्‍टर स्‍कूल से चले नहीं गए।

जाते जाते कलेक्‍टर इतना जरूर कह गए कि सफाई हम सब की जिम्‍मेदारी है। मैं किसी को डांटकर काम करा लेता तो शायद लोग इस उद्देश्‍य को बेहतर तरीके से नहीं समझ पाते। इसीलिए मैंने खुद सफाई की और सभी को आगे से ध्यान रखने को कहा। मतलब, कलेक्‍टर ने अफसरी के अंदाज से नहीं थोड़ा मानवीय होकर जिम्‍मेदारों को सबक दिया है।