थाली बजा दी अब हिफाजत पर ध्‍यान देे दें

जरा सोचिए, जब 130 करोड़ भारतीय घंटा-थाली बजाकर और घंटा-थाली ही क्यों शंख, ताली वगैैरह बजाकर भी, ‘‘कोरोना गो-कोरोना गो’’ का जाप करेंगे, तो कोरोना शर्म से पानी-पानी नहीं हो जाएगा? फिलहाल, थैंक्यू से ही काम चलाएं, हिफाजत के सामान भी धीरे-धीरे पहुंच ही जाएंगे।

Publish: Mar 23, 2020, 07:27 PM IST

leaders of india
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- राजेंद्र शर्मा

लीजिए, इन सेकुलर वालों को इसमें भी आपत्ति हो गयी। कह रहे हैं कि घंटा-थाली बजाने से कोरोना कैसे रुकेगा? वैसे जनता कर्फ्यू मोदी जी का है, सो खोट तो इन्हें उसमें भी नजर आ रहे हैं। और कुछ नहीं मिला तो यही कह रहे हैं कि एक दिन के लॉकडॉउन से क्या होगा? पंजाब के एक बड़े से वैज्ञानिक जी ने तो बाकायदा हिसाब लगाकर बता दिया है कि लगातार एक हफ्ते के लॉकडॉउन से कम में कोरोना मानने वाला नहीं है। इन्हें कोई कैसे समझाए कि ये कश्मीर का मामला थोड़े ही है कि मोदी जी महीनों का लॉकडॉउन कर देंगे। ये पूरे इंडिया की बात है।

पूरे इंडिया में लॉकडॉउन हो गया, तो मोदी जी के राज के बारे में दुनिया क्या सोचेगी/ कहेगी? यही ना कि छप्पन इंच की छाती वाले, एक जरा से वाइरस से डर गए और दरवाजे बंद कर के घर में घुस गए? अठारह घंटे का भी लॉकडॉउन कहां, सिर्फ जनता कर्फ्यू  है और वह भी इतवार के दिन। हां! पब्लिक की डिमांड पर सरकार रेल, बस, टैक्सी वगैरह सब बंद कराके, पब्लिक की इच्छा जरूर पूरी कर रही है। जनता की सुनने वाली सरकार हो तो ऐसी! रही अठारह घंटे में वाइरस के नहीं मरने की बात, तो इसी की क्या गारंटी है कि अठारह घंटे में वाइरस नहीं मरेगा? अपनी उम्र पूरी होने से न सही, इंसानी शिकार न मिलने से भूख से भी तो वाइरस मर सकता है।

और सिर्फ भूख से ही क्यों? हमें तो लगता है कि कोरोना वाइरस तो शर्म से ही मर जाएगा? जरा सोचिए, जब 130 करोड़ भारतीय घंटा-थाली बजाकर और घंटा-थाली ही क्यों शंख, ताली वगैैरह बजाकर भी, ‘‘कोरोना गो-कोरोना गो’’ का जाप करेंगे, तो कोरोना शर्म से पानी-पानी नहीं हो जाएगा? यह गांधी का देश है। कम से कम बाहर वालों के मामले में हम पूरी तरह से अहिंसा के पुजारी हैं। हम कोई चीनी नहीं हैं जो टैस्ट-अस्पताल-दवा जैसे हथियारों से लडक़र, हिंसा से कारोना को भगाएंगे। हम कोरोना को ‘‘कोरोना गो-कोरोना गो’’ के  उच्चार से हराएंगे। आखिर हम पहले भी ऐसा कर चुके हैं। हम भारतीयों ने ‘‘साइमन गो बैक’’ के सामूहिक उच्चार से अंगरेजी राज के टैम में साइमन कमीशन को वापस भिजवाया था या नहीं? और ‘‘अंगरेजो भारत छोड़ो’’ की पुकारों से अंगरेजों से भारत छुड़वाया था या नहीं? फिर, हमारे अहिंसक सत्याग्रह के आगे कोरोना किस खेत की मूली है।

और कोरोना अगर शर्म से नहीं भी डूबा, तब भी उसका बच पाना मुश्किल है। जरा सोचिए, 130 करोड़ कंठ, 260 करोड़ हाथ और 130 करोड़ घंटा-थाली-शंख-ताली और सब की ध्वनि एक साथ। वह भी पूरे पांच या दस मिनट तक। कोरोना शर्म से नहीं भी गढ़ा तो इस शोर से उसके कान के पर्दे जरूर फट जाएंगे। आवाज के सदमे से कोरोना खुद ही मर जाएगा, हमारी अहिंसकता पर कोई दाग भी नहीं आएगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी जी की थाली-घंटा पीटने की अपील के पीछे, बहुत ही घनघोर टाइप का विज्ञान है। परंपरा और विज्ञान का योग यानी वाइरस के लिए दोगुना घातक। जरा सोचिए, अगर कोरोना का वाइरस इतना छुई-मुई है कि जरा सा साबुन लगने से मर जाता है, तो इतने सारे ध्वनि उत्पादकों से निकलती ध्वनि तरेंगे उसका क्या हाल करेंगी? दुनिया इसे हल्के में न ले, ये कोरोना के अल्ट्रासोनिक/सुपरसोनिक टाइप उपचार का मामला है। वैसे तो इस उपचार की खोज मोदी जी के मंत्रिमंडलीय सहयोगी, अठावले जी ने की थी। लेकिन उनका उपचार लोकल था, उसे प्राचीन भारतीय गौरव के साथ जोडक़र, मोदी जी ने सारी दुनिया को योगा और नमस्कार के बाद, एक बार फिर रास्ता दिखाया है।

कोरोना अगर इसके बाद भी नहीं माना तो, यह इटली की तर्ज पर डाक्टरों वगैरह के लिए थैंक्यू यानी आगे का बीमा तो है ही। और कुछ काम नहीं करेगा, तब भी वे तो काम करेंगे ही। हां! कश्मीर-वश्मीर के डाक्टरों-नर्सों वगैरह की मास्क वगैरह की मांगों को, अभी इंतजार करना पड़ेगा। फिलहाल, थैंक्यू से ही काम चलाएं, हिफाजत के सामान भी धीरे-धीरे पहुंच ही जाएंगे।