जैव विविधता संरक्षण के असरकारी प्रयास

international biodiversity day 2020 : हर साल 22 मई को विश्व जैव विविधता दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की इसबार की थीम है हमारा समाधान प्रकृति में।

Publish: May 23, 2020, 03:04 AM IST

Photo courtesy : newsnation
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जल, जंगल, जमीन और वायु हमारे जीवन की बुनियादी जरूरतें हैं। पूरा जीव-जगत जिसमें पाई जाने वाली वनस्पतियां, जीव जंतु और उनकी तरह तरह की प्रजातियां हमारी जैविक सम्पदा हैं, जिसकी समपन्नता उसकी विविधता में निहित है। मतलब जितने अधिक किसम के पेड़ पौधे, अनाज, जीवजंतु, जलस्त्रोत हमारी कुदरत के खजाने में होगें उतनी ही तंदुरुस्त होगी हमारी धरती और उस पर बसने वाले जीव जैवविविधता की सुरक्षा से ही सुखी जीवन संभव है।

जैवविविधता को अलग-अलग लोगों ने अपने-अपने नजरिये से समझा है। लेकिन आदिवासी समुदाय ने इसे सबसे बेहतर समझा है। वनों के पास रहने वाले आदिवासियों के लिए उनका घर, उनके खेत तरह-तरह के अनाज, रोजी-रोटी और दवा-दारू का जुगाड़, उसके तीज-त्योहार सभी कुछ हैं तो उनकी महिलाओं के लिए पेट भरने के लिए जंगल में मिलने वाली अनेकों भाजियाँ, कन्द और फल-फूल आदि हैं। जीवन की इस थाती को कोई बारा-मिजरा तो कोई बारानाजा तो कहीं इसे सटर-पटर को जैव विविधता के रूप में देखते हैं। वैज्ञानिक और अकादमिक समाज जैवविविधता का महत्व प्रकृति या पारिस्थितिकीय तन्त्र से जुड़ी सेवाओं में देखते हैं। जल चक्र, पोषक तत्वों का चक्र, कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों को सोखने और आक्सीजन देने की अमूल्य सेवाओं से समझते हैं। इस तरह वनकर्मी, व्यापारी, पर्यटक आदि अपने-अपने नजरिये से जैवविविधता को देखते समझते रहे हैं। जीवन के लिए इसके व्यापक महत्व के कारण 1993 से अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जा रहा है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में मध्यप्रदेश सरकार ने 11 अप्रैल 2005 में मध्यप्रदेश जैव-विविधता बोर्ड की स्थापना की। बहुत ही सीमित अमला होने के बावजूद भी बोर्ड ने जैव विविधता संरक्षण के लिए जन भागीदारी के माध्यम से महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। जिनमें से एक की चर्चा यहाँ करते हैं।

बीज बचाओ खेती बचाओ यात्रा

मध्यप्रदेश को गेहूँ, चना, धान, मक्का, जवार, बाजरा, अरहर, मूग, उड़द, मसूर, सोयाबीन, मोटे अनाज जैसे कोदो, कुटकी, सावा, कंगनी, डोडमा आदि का वरदान प्राप्त है। बाज़ार के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण खेती के तौर तरीकों में बदलाव के कारण हमारे बहुत से देशी अनाज अधिक लाभ देने वाली फसलों के द्वारा विस्थापित होते जा रहे हैं। हमारे अनेकों अनाज, फल, सब्जी-भाजी के पारंपरिक बीज विलुप्त होते जा रहे हैं। हमारी पारम्परिक प्रजातियाँ खाद्य संरक्षण और जलवायु परिवर्तन का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकतीं हैं। इस बात के महत्व को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने परम्परागत  प्रजातियों के अनाजों,फलों और सब्जियों के विलुप्त होते जा रहे बीजों को इकट्ठा करने, उनके दस्तावेज तैयार करने और इससे सम्बन्धित जागरूकता  विकसित करने के उद्देश्य से 2017 में खेती बचाओ, बीज बचाओ यात्रा का आयोजन किया। जिसका नेतृत्व सतना जिले के पिथोराबाद गाँव के किसान पदमश्री बाबूलाल दाहिया जी ने किया था। 56 दिवसीय इस यात्रा के माध्यम से प्रदेश के 39 जिलों में खेती बचाव, बीज बचाओ का संदेश गाँवों में दिया गया। यात्रा के दौरान 55 गाँवों में चौपालें आयोजित की गईं। इन चौपालो में किसानों, मजदूरों, ग्राम पंचायत के सदस्यों, सरकारी कर्मचारियों और खेतीबाड़ी से जुड़े सभी पक्षों के सदस्यों से अनौपचारिक बैठकों के जरिये खेती बाड़ी से सम्बन्धित ज्ञान और अनुभवों पर बहुत ही सार्थक चर्चा हुई। यात्रा में 2052 परम्परागत प्रजातियों के बीजों का संग्रह किया गया. इन सभी बीजों को पिथोराबाद जैव विविधता प्रबन्धन समिति दवारा सथापित बीज बैंक में संरक्षित किया गया.  दाहिया जी के मार्ग दर्शन में परसमनिया पठार के 20 से 25 गाँवों के किसानों ने इन दुर्लभ बीजों को फैलाने काम किया। इनमें से कुछ बीज मध्य प्रदेश जैव विविधता बोर्ड के प्रदर्शन केन्द्र भोपाल में भी उगाये गए और प्रसारित किये जा रहे हैं।

खुद की पहल से प्रेरित साथियों की पहचान और उनका इस पहल से  जुड़ना यात्रा की विशेष उपलब्धि रही है। मध्यप्रदेश जैव विविधता बोर्ड  इन बीज नायकों के सहयोग से संरक्षण का काम आगे बढ़ा रहा है। यह सुखद सूचना है कि सतना, झाबुआ सहित प्रदेश के पांच जिलों में देसी बीज बचाने की यह मुहिम परवान चढ़ी है और किसानों, खेतीहर श्रमिकों ने इन बीजों का संरक्षण कर प्रदेश की जैव विविधता को बचाए रखने का जतन किया है।