कृषि क्षेत्र को 3,000 करोड़ के नुकसान की आशंका

मध्य प्रदेश में लॉक डाउन ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था के लिए लकवा साबित हो रहा है, फिर भी राहत की कोई आहट नहीं है।

Publish: Apr 29, 2020, 11:46 PM IST

पूरे विश्व में कोरोना महामारी का फैलाव हुआ तो सुरक्षा, बचाव, प्रबंधन और आर्थिक अवरोध पर  योजना बनाकर काम शुरू किया गया। किन्तु मध्य प्रदेश में सुनियोजित राजनैतिक लाभ के लिए भाजपा द्वारा पूरे प्रदेश की जनता को महामारी और अर्थव्यवस्था को बर्बादी की तरफ ढ़केल दिया गया। जिसका सबसे बड़ा असर कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नजर आया है और गौर करें तो इसके पीछे प्रबंधन का अभाव और स्वार्थ की सोच प्रत्यक्ष साबित हो रही है।

मध्य प्रदेश को मोटे तौर पर देखा जाये तो क्षेत्रफल के मामले में देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। इसका भौगोलिक क्षेत्र 308 लाख हेक्टेयर है जिसमें से आधे हिस्से पर खेती होती है। इसमें से 154.22 लाख हेक्टेयर और 86.25 लाख हेक्टेयर पर साल में दो फसलें होती हैं। जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 9% है ।

जनसंख्या के मामले में यह राज्य छठे स्थान (7.2 करोड की आबादी) पर है, इनमें से 72 फीसदी लोग गांवों में रहते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश में जीविकोपार्जन के लिए कुल कामकाजी लोगों के 69.8 फीसदी और ग्रामीण इलाकों में कुल कामकाजी लोगों के 85.6 फीसदी लोग कृषि पर आश्रित पाए गए हैं।

    अर्थव्यवस्था की प्रकृति कृषि आधारित होने की वजह से कृषि और संबंधित क्षेत्रों जैसे फसल उत्पादन, फल, फूल, सब्जी की खेती के साथ पशुपालन और मछली पालन की भूमिका काफी अहम है। ये राज्य की अर्थव्यवस्था के प्रमुख घटक हैं और दो कारणों से इनका महत्व काफी बढ जाता है। पहला, यह क्षेत्र राज्य के जीडीपी में करीबी एक तिहाई का योगदान देता है और दूसरा, राज्य के प्राथमिक सेक्टर में इसकी हिस्सेदारी 90 फीसदी है।

अप्रत्यक्ष गतिविधियों में कृषि से जुडी सेवा की आपूर्ति उपलब्ध कराना शामिल है, जैसे- कृषि प्रसंस्करण के लिए कच्चा माल, कृषि कार्य से जुडी मशीनों और औजारों की मरम्मत और रखरखाव, मार्केटिंग, भंडारण और गोदाम, बीज उत्पादन और भी कई चीजें शामिल हैं। इसके साथ ही कृषि और इससे जुडे सेक्टर सडक निर्माण, बांध, छोटी सिंचाई परियोजना, कुटीर और लघु उद्योग के जरिए सहायक आधारभूत संरचना को जोडकर पूंजी निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं, जो राज्य के आर्थिक विकास के लिए जरूरी है।

किन्तु पिछले एक माह में घटे राजनैतिक घटनाक्रम ने महामारी और नेतृत्वविहीन प्रदेश को आर्थिक स्तर पर पिछड़ा कर दिया है। मध्य प्रदेश में रबी और जायद की फसल महत्वपूर्ण रही है क्योंकि पिछले बर्षो में खरीफ की फसलो को सूखा और अतिबर्षा के कारण नुकसान हुआ है। इस बर्ष अच्छी बर्षा के कारण रबी फसल का उत्पादन 30 से 40% बढ़ा है। वहीं दूसरी तरफ सब्जी किसानों ने जायद की फसल के लिए बड़े स्तर पर बुआई की थी किन्तु लॉकडाउन में किसानों के लिए व्यवस्था बनाने की जगह शिवराज सिंह सरकार वनमैन आर्मी की तरह अपना परफॉरमेंस दिखाने में लगे रहे। सरकार ने व्यापारियो को लाभ देने के मकसद से किसानों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। जिसके परिणामस्वरूप किसानों के साथ खुली लूट हो रही है।

मध्य प्रदेश में उद्यानकी फसलें जैसे संतरा, केला, अंगूर, पपीता, तरबूज. टमाटर मिर्ची  और अन्य सब्जियों के किसानों को  सैकड़ों करोड़ का नुकसान हुआ है। प्रदेश दूध उत्पदान में अहम भूमिका रखता है, लेकिन दूध से बने समस्त उत्पाद की बिक्री पर कोरोना संकट का असर और पुलिस की सख्ती ने किसानों को बैकफुट पर ला दिया है। इसी तरह का हाल प्याज उत्पादक किसानों का भी है, जिन्हें आज बाजार में 5 से 7 रु किलो में प्याज बेचना पढ़ रहा है। केला 1 से 3 रु किलो में बिक रहा है। पपीता और अंगूर के खरीददार नहीं हैं। तरबूज ककड़ी और टमाटर जैसी चीजें भी 4 रु किलो से ज्यादा में नहीं बिक पा रही हैं। जबकि लागत 10-15 रु किलो की रही है। इस हालत में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राज्य के किसान कितने बड़े आर्थिक नुकसान की चपेट में हैं। एक अनुमान के मुताबिक करीब 1500-2000 करोड़ का नुकसान हो सकता है। किन्तु सरकार की तरफ से किसानों के लिए कोई राहत की आहट नहीं है |

मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार हमेशा से सिर्फ गेंहू की खेती करनेवालों की हिमायती रही है। ऐसे करीब 15 लाख किसानों को भाजपा अपना वोट बैंक बनाने के लिए सहयोग करती रही है बाकी 52 फसलों के किसानों को शिवराज सरकार ने कभी विशेष सहयोग नहीं किया है। और गेंहू में भी बड़ी राजनीति की गई है। मुझे ख्याल है की पहले मध्य प्रदेश में बड़ी बड़ी कम्पनियां आती थीं जो मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध गेंहू की खरीदी करती थीं। किन्तु पूर्व में शिवराज सरकार द्वारा उनके ऊपर एक्स्ट्रा टैक्स लगा दिया गया। जिससे वो कंपनियां प्रदेश से बाहर हो गई। किसानों से यह बात छुपाई गई और सिर्फ बोनस की बात को आगे रखकर एक बड़े बाजार को ख़त्म कर दिया गया।

इस वर्ष मध्य प्रदेश में  70-80 लाख हेक्टयर में गेंहू की बुआई हुई। जिसका अनुमानित उत्पादन 280 लाख टन से ज्यादा है। किन्तु शिवराज सरकार द्वारा 100 लाख टन की ही खरीदी की योजना है। कमलनाथ सरकार ने खरीदी की जो योजना बनाई थी, नई सरकार ने उसे बदल दिया है। लॉकडाउन में प्रदेश की मंडिया बंद हैं और प्राइवेट खरीदी करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियां नहीं आ रही हैं।  ऐसे समय में शिवराज सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी बढ़ाना था मगर व्यापारी को लाभ देने और लॉकडाउन में व्यापारियों द्वारा चोरी-छुपे की गई बड़ी मात्रा में खरीदी को प्रमाणित करने के लिए सौदा पत्रक के माध्यम से खरीदी की अनुमति दी गई है। यह मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी लूट साबित हो रही है|

हाल ही में सरकार की एक बैठक में बताया गया कि प्रदेश की मंडियों में की गई खरीदी में से 81% खरीदी इस बार सौदा पत्रक के माध्यम से की गई है। मध्य प्रदेश में अभी तक 2 लाख 14 हजार मी.टन गेहूं खरीदा जा चुका है जिसका मतलब 1 लाख 73 हजार टन गेंहू सीधे व्यापारियों ने गाँव से ख़रीदा है। ये खरीदी आगे भी जारी रहने की संभावना है। व्यापारी किसानों से 1500 से 1700  प्रति क्विंटल भाव पर गेहूं ख़रीद रहे हैं। जबकि भाजपा के चुनावी घोषणापत्र और कई सभाओं में शिवराज सिंह ने 2100 में गेहूं खरीदी का आश्वासन दिया गया था। मगर महामारी की आड़ में किसानों को लूटा जा रहा है। इस बार प्रमुख सचिव, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण शिव शेखर शुक्ला ने बताया कि प्रदेश में गेहूं उपार्जन कार्य के अंतर्गत अभी तक 2 लाख किसानों से 7.80 लाख मी.टन गेहूं समर्थन मूल्य पर उपार्जित किया गया है। मगर प्रश्न यह है कि वर्तमान परिदृश्य में खरीदी को सही करना है तो प्रतिदन 4 लाख टन से ज्यादा खरीदी की व्यवस्था होनी चाहिए। मगर शिवराज सरकार जान बूझकर खरीदी को धीमा कर रही है ताकि व्यापारी ज्यादा से ज्यादा किसानों से सौदा पत्रक के माध्यम से खरीदी कर सकें।

अगर समस्त फसलों के नुकसान को देखें तो करीब 3000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होता दिख रहा है। लेकिन शिवराज सरकार द्वारा किसानों को राहत राशि देने की बजाय लूटने के नए नए प्लान  बन रहे हैं। यही नहीं, किसानों को पुरानी सरकार पर एफआईआर करने के लिए उकसाया जा रहा है। ताकि अपनी नाकामी छुपाई जा सके। और किसानों को मूर्ख बनाया जा सके। शिवराज सरकार यहीं नहीं रुक रही, बल्कि प्रदेश में किसान हत्या और पुलिस द्वारा अन्नदाता का शोषण भी शुरू हो गया है।