भारत-चीन संबंधों के पेच (भाग-1) : टकराव क्यों और कितना गंभीर

आशंका है कि इस बार का तनाव शायद उस तरह खत्म ना हो जैसा अतीत में चीनी घुसपैठ की घटनाओं के समय हुआ था    

Publish: Jun 01, 2020, 12:18 AM IST

Photo courtesy : special news coverage
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भारत और चीन के संबंधों में बढ़ते तनाव की झलक एक बार फिर से दोनों देशों के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर देखने को मिल रही है। वहां चीनी फौज की एक बार फिर से घुसपैठ हुई है। खबरों के मुताबिक चीनी सेना लद्दाख क्षेत्र में भारतीय सीमा में लगभग तीन किलोमीटर तक घुस आई है और वहां अपना डेरा डाल दिया है। जाहिर है, दोनों तरफ से फौजियों का आमना-सामना वहां है। विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि इस बार के हालात गुजरे वर्षों में पैदा होने वाली स्थितियों से अलग हैं। यानी मामला सिर्फ किसी स्थानीय फौजी टुकड़ी की गलतफहमी का नहीं है, जिसकी वजह से अ-चिह्नित नियंत्रण रेखा को पहले फौजी टुकड़ियां पार कर जाती थीं। बल्कि इस बार एक साथ अनेक जगहों पर घुसपैठ हुई। फिर पूर्वी क्षेत्र में सिक्किम से लगी सीमा पर भी घुसपैठ और दोनों तरफ के जवानों में मारपीट की घटना हुई। इससे संकेत यह ग्रहण किया गया है कि चीन की कार्रवाई ऊपरी निर्देशन और समन्वय के साथ की गई है।

इस घटना के सिलसिले में भारत में चर्चा का बिंदु सिर्फ यह है कि चीन आखिर ऐसा क्यों कर रहा है? इसको लेकर अनेक अटकलें लगाई गई हैं। मसलन, यह कि कोरोना वायरस के संक्रमण से बने हालात के बीच चीन की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है और भारत से तनाव बढ़ा कर चीन अपनी आर्थिक मुश्किलों से लोगों का ध्यान हटाना चाहता है। दूसरी अटकल यह है कि कोरोना संकट के कारण चीन से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भागने वाली हैं। भारत उनको लुभा कर अपने यहां लाने की गंभीरता से कोशिश कर रहा है। इससे चीन नाराज है। तीसरी अटकल यह है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और वहां की सेना (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) में राष्ट्रपति शी जिन पिंग के प्रति विरोध बढ़ गया है। शी भारत से फौजी टकराव खड़ा करके राष्ट्रवादी भावनाएं उभारना चाहते हैं, ताकि खुद को मिल रही चुनौतियों को वो दबा सकें। चौथी अटकल ठीक इसके उलट है। वो यह कि शी भारत से दोस्ती चाहते हैं और इसका इजहार उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वुहान और मल्लपुरम में अपनी अनौपचारिक शिखर बैठकों में किया। इससे भारत के साथ टकराव में अपना फायदा देखने वाली पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में नाराजगी है। इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थानीय कमांडर समस्या खड़ी करके शी की दोस्ती योजना को नाकाम करना चाहते हैं। इस चर्चा का कुल सार यह है कि जो भी हालात बने हैं, उसके तमाम कारण चीन में हैं, ऐसा भारत के अनेक विश्लेषकों का मानना है। भारतीय मीडिया पर यही विश्लेषक छाये रहते हैं, अतः यही राय एक तरह से आम सहमत राय के रूप स्वीकार कर ली जाती है।

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जबकि वुहान और मल्लपुरम “भावना” के बावजूद अगर हालात इस मुकाम पर पहुंचे हैं, तो ऐसा क्यों हुआ इस प्रश्न को गुजरे वर्षों में भारत की बदली नीतियों, प्राथमिकताओं और कुछ कदमों पर गौर किए बिना नहीं समझा जा सकता। यह गौरतलब है कि भारत की विदेश नीति में अमेरिका के प्रति झुकाव बढ़ने की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में ही हो गई थी, जिसे मनमोहन सिंह सरकार ने और आगे बढ़ाया। भारत- अमेरिका परमाणु करार डॉ. सिंह के दौर में भारत की विदेश नीति संबंधी बदलती प्राथमिकताओं की एक प्रमुख मिसाल है। मगर डॉ. सिंह सरकार की विदेश नीति में रिक (रूस- भारत- चीन) और ब्रिक्स (ब्राजील- रूस- भारत- चीन- दक्षिण अफ्रीका) जैसे नए उभरे मंच भी प्राथमिकता में ऊपर थे। इसलिए उस दौर में वैदेशिक मामलों में एक संतुलन बना रहता था। इसीलिए चीन से संबंधों में दुविधा बरकरार रहने के बावजूद तब हालात वैसे नहीं बिगड़े, जैसे नरेंद्र मोदी के शासनकाल में बिगड़ते गए हैं।

मोदी सरकार की पिछले छह साल की विदेश नीति में जो बात सबसे जाहिर है, वो अमेरिकी धुरी के साथ जुड़ने की उसकी चाहत और उसके किए गए दूरगामी फैसले हैं। इस दौर में भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका- जापान- ऑस्ट्रेलिया की त्रिपक्षीय धुरी का हिस्सा बना, जिसके बाद अब धुरी को चतुर्पक्षीय कहा जाने लगा है। जानकारों में इस पर कोई मतभेद नहीं है कि इस धुरी का मकसद चीन के उदय को नियंत्रित करना रहा है। भारत इस धुरी के साथ सैनिक अभ्यास और खुफिया सूचनाएं साझा करने की तरफ बढ़ा है। भारत और अमेरिका के बीच हुए The Communications Compatibility and Security Agreement (COMCASA) का इस संदर्भ में खास उल्लेख किया जा सकता है। इस बीच चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना को लेकर भी बीते वर्षों में भारत और देशों में गुजरे वर्षों में तनाव बढ़ा है। खास कर भारत की आपत्ति (जो वाजिब ही है) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में इस परियोजना के तहत हो रहे निर्माण कार्यों को लेकर है। चीन- पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर के नाम से चर्चित इस पहल के तहत चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है। भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है, क्योंकि इस इलाके में चीन बिना भारत की सहमति के निवेश कर रहा है।

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इन वजहों से पहले से ही टकराव और संदेह का शिकार रहे भारत- चीन रिश्तों में तनाव और बढ़ रहा था। इसी बीच पिछले वर्ष भारत ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित धारा 370 को रद्द किया और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। इसके बाद भारत ने अपना एक नया नक्शा जारी किया, जिसमें अक्साई चिन समेत उन तमाम इलाकों को दिखाया गया, जिन पर चीन दावा जताता रहा है। उसके बाद से चीन दो बार कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ले जा चुका है। अनेक अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक मानते हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब बने हालात के पीछे इस घटनाक्रम की खास भूमिका है। इसीलिए ये आशंका जाहिर की गई है कि इस बार का तनाव शायद उस तरह खत्म ना हो, जैसा अतीत में चीनी घुसपैठ की घटनाओं के समय हुआ था।