कोरोना इफेक्‍ट : भोपाल में 38 दिनों में 35 आत्‍महत्‍याएं

लॉकडाउन : 30 फीसदी तब बढ़ गए एंग्‍जाइटी और डिप्रेशन के मामले

Publish: May 02, 2020, 09:24 PM IST

लॉकडाउन के दौरान अपने अपने घरों में कैद लोग काम की चिंता और बेरोजगारी जैसे तमाम कारणों से तनाव में हैं। इस वजह से शहरों में अवसाद यानी डिप्रेशन के मामले 10 से 30 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। लेकिन इस जानकारी से अधिक परेशान कर देने वाली सूचना यह है कि भोपाल में 38 दिनों (मार्च 22 से 28 अप्रैल के बीच ) में 35 लोगों ने आत्‍महत्‍याएं कर ली हैं। यानी लगभग हर दिन एक आत्‍महत्‍या हुई! पुलिस सभी मामलों की विवेचना कर रही है। इन सभी आत्‍महत्‍याओं का कारण कुछ भी सामने आए मगर एक समानता जरूर है कि आत्‍महत्‍या करने वाले सभी लोग किसी न किसी मानसिक रोग से परेशान रहे हैं।

आत्‍महत्‍या के मामले में देश के पांच बड़े राज्‍यों में शुमार एमपी की राजधानी भोपाल में जीवन खत्‍म कर देनेवालों में सभी वर्ग के लोग शामिल हैं। और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। 23 और 24 अप्रैल को दो दिनों में 7 आत्‍महत्‍याएं दर्ज की गई हैं। लॉकडाउन के शुरूआती दिनों में जहां भोपाल में दो श्रमिकों ने आत्‍महत्‍या की वहीं 23 अप्रैल को बैरागढ़ में दिल दहला देने वाली घटना हुई, जहां एक मां ने अपनी 1 साल की बच्ची का गला दबाकर उसे मौत के घाट उतार दिया। बच्ची की मौत के बाद मां ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। महिला का पति सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। वह पुणे में कार्यरत है। महिला का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं था। उधर, गोविंदपुरा क्षेत्र में एक युवक ने नशे की लत से उबर न पाने के कारण आत्‍महत्‍या की।

लॉकडाउन से बढ़ रहा तनाव, अवसाद

हमसमवेत से बातचीत में मनोचिकित्‍सक डॉ. सत्‍यकांत त्रिवेदी ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से एंग्‍जायटी-डिप्रेशन बढ़ रहा है। शहर में एंग्‍जायटी-डिप्रेशन के केस 10 से 30 प्रतिशत बढ़ गए हैं। लॉकडाउन रहेगा, नहीं रहेगा, कब खत्‍म होगा, नौकरी और काम का क्‍या होगा ऐसी बहुत सारी आशंकाएं बढ़ गई हैं। कई लोग एकदम सीमा पर थे वे अब डिप्रेशन का शिकार हो गए हैं। लॉकडाउन चरित्र और व्‍यक्तित्‍व की परीक्षा है। घर में रहने से संबंधों में तकरार बढ़ रही है। होना यह था कि इस समय में अपने रिश्‍ते को अच्‍छा बनाते मगर रिश्‍ते बिगड़ रहे हैं। ओसीडी यानी obsesive compulsive disorder एक बीमारी है जिसमें व्‍यक्ति बार-बार हाथ धोता है। हाथ धोने के निर्देश के कारण भी यह बीमारी बढ़ रही है। इसके बचाव के लिए फिलहाल मास अवेयरनेस यानी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। बाद में हमें जगह-जगह काउंसिलिंग की व्‍यवस्‍था करनी होंगीं। हैरानी की बात यह है कि समाज में इन रोगों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव व कलंक का भाव ज्यादा है। सही समय पर पहचान लिया जाए और उपयुक्‍त उपचार हो जाए तो ऐसी बीमारियां दूर हो सकती हैं। संक्रामक रोगों की तरह इस तरह के रोगों के लिए भी बड़े स्‍तर पर जागरूकता शिविर लगने चाहिए। स्‍कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को शामिल करना चाहिए।

आत्‍महत्‍या के मामले में टॉप राज्‍यों में एमपी

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों में मध्य प्रदेश का नाम आत्महत्या करनेवाले प्रदेशों की सूची में चौथे नंबर पर है। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में कुल 11,775 आत्‍महत्‍याएं दर्ज हुईं। 2017 में देशभर में 1 लाख 29 हजार 887  लोगों ने आत्महत्या की थी। इसमें सर्वाधिक 17,646 लोग महाराष्ट्र के थे। चौथे नंबर पर एमपी था। यहां 11,770 लोगों ने आत्महत्याएं की।देशभर में 2016 में 1 लाख 31 हजार 008 आत्‍महत्‍याएं हुईं। 2016 में एमपी पांचवें नंबर पर था। तब यहां 10,442 लोगों ने आत्महत्याएं की थीं। लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि एमपी का साइड रेट देश से अधिक है। राष्‍ट्रीय स्‍तर पर यह दर प्रति एक लाख 10 है जबकि मप्र में यह दर प्रति लाख 13 है।