Lockdown 4.0: संग्रहालयों का शहर भोपाल

Corona guideline : लॉकडाउन खत्‍म होते ही फिर गुलजार होंगे संग्रहालय

Publish: May 19, 2020, 07:12 AM IST

tribal museum bhopal
tribal museum bhopal

“देश के कोने-कोने में बिखरी पड़ी हैं कहानियां, कुछ पत्थरों में गड़ी हुई तो कुछ पीछे छूटी निशानियां” ये पंक्तिया पूरी तहर फिट बैठती हैं संग्रहालयों पर जो किसी स्थान की पूरी कहानी बयां कर देते हैं। जब भी आप किसी स्थान की यात्रा पर जाते हैं, तो उस स्थान के बारे में हर वो खूबी जानना चाहते हैं जिसके लिए वो फेमस है। फिर चाहे वो आज की बात हो, या बीते हुए कल की। उस शहर या प्रदेश से जुड़ी हर बात हम अपने जहन में बैठा लेना चाहतें हैं, और उनकी यादों को अपने साथ ले जाना चाहते हैं...ऐसी ही यादों और गौरव करने वाले क्षणों को हमसे रूबरु करवाते हैं म्यूजियम। 18 मई का दिन दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के रूप में मनाया जाता है। जहां इस दिन हर स्थान पर कई आयोजन होते थे पर कोरोना लॉकडाउन ने इन स्थानों पर होने वाले आय़ोजनो पर भी रोक लगाई हुई है। आज हर संग्रहालय सूना है ना वहां जनता है और ना आयोजन।

देश के दिल मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मौजूद हैं कई संग्रहालय। जिनमें सदियों पुरानी संस्कृति और सभ्यता की कहानी दिखाई देती है। यहां कई जाने-माने संग्रहालय हैं, जैसे मानव संग्रहालय, जनजातीय संग्रहालय, स्टेट म्यूजियम, सप्रे संग्रहालय, दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय जो देश के साथ मध्यप्रदेश की झांकी हमारे सामने पेश करते हैं।

ट्राइबल म्यूजियम में होते हैं जनजातीय संग्रहालय संस्कृति के दर्शन

सबसे पहले बात करते हैं जनजातीय संग्रहालय की, राजधानी भोपाल की श्यामला हिल्स पर स्थित ट्राइबल म्यूजियम अपने आप में देश का एक अनूठा संग्रहालय है। इसने मध्य प्रदेश को  एक मुकम्मल पहचान दिलवाने का गौरव दिलाया है। मध्य प्रदेश के जन-जातीय जीवन की सांस्कृतिक विरासत के दर्शन यहां होते हैं। यहां जन-जातीय जीवन के विभिन्न आयाम देखने को मिलते हैं। मध्य प्रदेश की प्रमुख आदिवासी जनजातियां जैसे गोंड, भील, कोरकू, बैगा, कौल, भारिया, सहारिया, भिलाला, पटालिया, बरेला और राथिया के जन-जातीय जीवन उनके जीवन मूल्यों, रीति-रिवाजो और सौन्दर्य के साथ ही उनसे जुडी मान्यताओं के दर्शन यहां बखूबी होते हैं। यहां मध्यप्रदेश के साथ आस-पास के अन्य पड़ोसी राज्यों के जनजातीय जीवन के हर रंग को बखूबी दिखाया गया है।

इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय देश का संस्कृति का आइना

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल की एक पहचान के रूप में जाना जाता है। श्यामला हिल्स पर भोपाल ताल के सामने करीब 200 एकड़ के क्षेत्र में स्थित है। इस संग्रहालय की स्थापना का उद्देश्य लोगों को मानव जाति के इतिहास के जानकारी देना है । मानव संग्रहालय में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के दर्शन बखूबी हो जाते हैं। यहां प्राचीन भारत की कला और स्थासपत्य कला को भी दर्शाया गया है। संग्रहालय में भारत के प्रागैतिहासिक काल के बारे में कई चट्टानों पर की गई खुदाई और पेंटिग्सं के माध्यम से जानकारी दी है। इनडोर संग्रहालय की वीथि संकुल के नाम से जाना जाता है जहां 13 गैलरियां है । यहां मानव विज्ञान से जुड़े कई बॉयोलॉजिकल और सांस्कृतिक तथ्यों को दर्शाया गया है। इस संग्रहालय में 32 पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय भी मौजूद हैं । इस म्यूजियम में वन-प्रान्तों, पर्वतीय, समुद्र-तटीय और दूसरे क्षेत्रों के मूल निवासियों द्वारा बनाए गए घर हैं, जिनमें उनकी संस्कृति को नजदीक से देखा जा है। इसमें देश की विविध मौलिक समाजों की जीवन पद्धतियों के दर्शन आसानी से हो जाते हैं। जिनमें प्रमुख आदिवासी प्रजातियों में टोडा, बाराली, बाडो, कछरी, कोटा, सोवरा, गदेव, कुटियाक, अगरिया, राजवद, करवी, भील की झोपड़ियाँ, बस्तर का रथ, मारिया लोगों का घोटुल, 110 फीट लकड़ी की बनी लकड़ी की नाव, शैलचित्र शामिल हैं।

इतिहास का झरोखा है राज्य संग्रहालय

राज्य संग्रहालय भी भोपाल के श्यामला हिल्स पर स्थित है। इस संग्रहालय में मध्य प्रदेश के इतिहास से सम्बन्धित कई दस्तावेजों और ऐतिहासिक मूल्य की वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है। सबसे पहले राज्य संग्रहालय भोपाल की स्थापना वर्ष 1909 में नवाब सुल्तानजहां बेगम ने की थी। पूर्व में किसका नाम एडवर्ड संग्रहालय था। इसके बाद इस संग्रहालय को अजायबघर के जाना जाता था। राज्य संग्रहालय का यह नया स्वरूप में 2 नवंबर 2005 में आया। इस विशाल भवन में अलग-अलग विषयों पर बनीं 17 विथिकाएं हैं। इन दीर्घाओं में थीम दीर्घा, प्रागैतिहासिक एवं जीवाश्म, उत्खनित सामग्री, धातु प्रतिमा, अभिलेख, प्रतिमा, रॉयल कलेक्शन, टेक्सटाइल्स, स्वाधीनता संग्राम, डाक टिकिट-ऑटोग्राफ, पाण्डुलिपियों, लघुरंग चित्रों, मुद्राओं, अस्त्र-शस्त्र, बाघ-गुफा, मध्यकालीन दस्तावेज, दुर्लभ वाद्य-यंत्र आदि को सुव्यवस्थित ढंग से प्रदर्शित किया गया है।

दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय में हैं दुर्लभ हस्तिलिखित ग्रंथ

दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय में कालजयी साहित्यकारों की मूल हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के साथ ही उनके दैनिक जीवनोपयोगी वस्तुएं, फोटोग्राफ और आडिओ रिकॉर्डिंग को बड़ी ही खूबसूरती से सहेजकर रखा गया है , जो आज अत्यंत दुर्लभ हैं। कुछ दुर्लभ हस्तलिखित ग्रन्थ और पुस्तकें भी संग्रहालय की धरोहर हैं। जिन्हे देखने साहित्य प्रेमी अक्सर यहा पहुंचते हैं। संग्रहालय की अध्‍यक्ष ममता तिवारी ने बताया कि संग्रहालय ने रंगकर्मी कर रहे अमैच्‍योर थिएटर आर्टिस्‍ट के लिए न्‍यूनतम दर पर हॉल उपलब्‍ध करवाया है ताकि वे अपने रंगकर्म का अभ्‍यास कर सकें। संग्रहालय वर्ष भर विविध आयोजन करता है। लॉकडाउन में ये गतिविधियां बंद है लेकिन लॉकडाउन खत्‍म होते ही संग्रहालय अपने पूरे रंग में रूबरू होगा।

माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय

किसी ने क्या खूब कहा है कि ‘यदि संग्रहालय किसी शहर की खिड़की है तो यकीन मानिए भोपाल का सप्रे संग्रहालय ऐसा दरवाजा है जिससे होकर आप 150 वर्ष की भारतीय पत्रकारिता का सफर इसी तरह के कई रोचक किस्सों के बीच झूलते हुए कर सकते हैं”  ये लाइन फिट बैठतीं है भोपाल स्थित माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान पर जिसके संस्थापक विजयदत्त श्रीधर हैं। सप्रे संग्रहालय देश में अपनी तरह का एकमात्र संग्रहालय है। यहां भारत के पहले अखबार से लेकर अब तक की सभी मुख्य पत्र-पत्रिकाओं को पूरी शिद्दत के साथ फाइलों में दर्ज किया गया है। यहां बीस हजार पत्र-पत्रिकाओं की फाइलों सहित गजेटियरों, जांच प्रतिवेदनों, हस्तलिखित पांडुलिपियों और कई दस्तावेजों को मिलाकर अब तक 27 लाख पन्नों की संदर्भ सामग्री तैयार की जा चुकी है।

हर साल विश्व संग्रहालय दिवस पर शहर में कई आयोजन होते थे, लेकिन इस साल कोरोना लॉकडाउन के कारण आय़ोजन नहीं हो पा रहे हैं। दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संग्रहालय की सहायक निदेशक संगीता राजुरकर का कहना है कि संग्रहालय दिवस पर कार्यक्रमों का आयोजन नहीं हो पा रहा है जिसका मलाल जनता के साथ-साथ उन्हें भी है।