फैसले की घडी

काले धन के मुद्दे पर घिर रही मोदी सरकार, स्विस बैंकों में भारतीयों का जमा धन बढ़कर अब तक 3200 करोड़ रुपए हो चुका है! साल 2017 में 3 फ़ीसदी बढ़कर क़रीब 100 लाख करोड़ रुपए हो गया।

Updated: Jul 30, 2020, 10:13 PM IST

स्विस बैंकों में भारतीयों का जो पैसा है, उनमें व्यक्तिगत रूप से जमा धन बढ़कर अब तक 3200 करोड़ रुपए हो चुका है, इसमें दूसरे बैंकों के ज़रिए जमा रकम 1050 करोड़ रुपए और प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) के रूप में 2640 करोड़ रुपए शामिल है। ये आंकड़े स्विस नेशनल बैंक ने जारी किए हैं, इसलिए शक की गुंजाइश न के बराबर है। स्विट्ज़रलैंड के सेंट्रल बैंक ने जो आंकड़े सामने रखे हैं, उनके मुताबिक स्विस बैंकों में सभी विदेशी ग्राहकों का पैसा साल 2017 में 3 फ़ीसदी बढ़कर 1.46 लाख करोड़ स्विस फ़्रैंक या क़रीब 100 लाख करोड़ रुपए हो गया। प्रश्न यह उठता है कि आखिर काला धन जमा करने को लेकर ज़्यादातर लोग स्विट्ज़रलैंड और वहां के बैंकों को ही क्यों चुनते हैं। स्विट्ज़रलैंड में क़रीब 400 बैंक हैं, जिनमें यूबीएस और क्रेडिस सुइस ग्रुप सबसे बड़े हैं और इन दोनों के पास सभी बैंकों की बैलेंस शीट का आधे से ज़्यादा बड़ा हिस्सा है। जिन खातों को सबसे ज़्यादा गोपनीयता मिलती है उन्हें ‘नंबर्ड एकाउंट’ कहते हैं. इस खाते से जुड़ी सारी बातें एकाउंट नंबर के आधार पर होती हैं, कोई नाम नहीं लिए जाते। स्विस बैंक में अकाउंट 68 लाख रुपये से खुलता है। इसमें ट्रांसजैक्शन के वक्त कस्टमर के नाम के बजाय सिर्फ उसे दी गई नंबर आईडी का इस्तेमाल होता है। इसके लिए स्विट्जरलैंड के बैंक में फिजिकल तौर पर जाना जरूरी हो जाता है। 20,000 रुपये हर साल इस अकाउंट की मेंटनेंस के लिए जाते हैं। बैंक में कुछ ही लोग होते हैं जो ये जानते हैं कि बैंक खाता किसका है। इसीलिए काला धन रखने वाले यहां अकाउंट खुलवाना पसंद करते हैं। इसमें सबसे अहम होता है बैंक का सिलेक्शन। जिन्हें अपनी प्राइवेसी बरकरार रखती होती है, वे ऐसे स्विस बैंक का चुनाव करते हैं, जिसकी ब्रांच उनके अपने देश में न हो। क्योंकि अगर ब्रांच स्विट्जरलैंड से बाहर होगी तो वहां पर उसी देश के नियम कायदे लागू होते हैं। बैंक रिकॉर्ड के लिए कई तरह के डॉक्युमेंट्स मांगते हैं। इनमें पासपोर्ट की ऑथेन्टिक कॉपी, कंपनी के डॉक्युमेंट, प्रफेशनल लाइसेंस जरूरी होता है। लेकिन ये एकाउंट आसानी से नहीं मिलते।

ऐसा कहा जाता है कि जो लोग पकड़े नहीं जाना चाहते, वो बैंक के क्रेडिट या डेबिट कार्ड या चेक सुविधा नहीं लेते. इसके अलावा इन बैंकों में अगर आपका खाता है और आप बंद करना चाहते हैं तो वो कभी भी किया जा सकता है, वो भी बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के। स्विट्ज़रलैंड के बैंक अपने ग्राहकों और उनकी जमा राशि को लेकर गज़ब की गोपनीयता बरतते हैं, जिस वजह से कालेधन वालों की वो उनकी पहली पसंद हैं। जेम्स बॉन्ड या हॉलीवुड की दूसरी फ़िल्मों में स्विस बैंक या उसके कर्मचारी दिखते हैं तो एक ख़ास गोपनीयता के साथ। वो काले सूट और ब्रीफ़केस में छिपी कंप्यूटर डिवाइस से सारा काम करते हैं। असल ज़िंदगी में स्विस बैंक नियमित बैंकों की तरह काम करते हों, साथ ही उनके मामले में आने वाली गोपनीयता उन्हें ख़ास बनाती है। स्विस बैंकों के लिए गोपनीयता के कड़े नियम कोई नई बात नहीं है। और इन बैंकों ने पिछले तीन सौ साल से ये सीक्रेट छिपाए हुए हैं। साल 1713 में ग्रेट काउंसिल ऑफ़ जिनेवा ने नियम बनाए थे जिनके तहत बैंकों को अपने क्लाइंट के रजिस्टर या जानकारी रखने को कहा गया था। लेकिन इसी नियम में ये भी कहा गया कि ग्राहकों से जानकारी सिटी काउंसिल के अलावा दूसरे किसी के साथ साझा नहीं की जाएगी। स्विट्ज़रलैंड में अगर बैंकर अपने ग्राहक से जुड़ी जानकारी किसी को देता है, तो ये अपराध है। गोपनीयता के यही नियम स्विट्ज़रलैंड को काला धन रखने के लिए सुरक्षित ठिकाना बनाते हैं. ज़्यादा पुरानी बात नहीं जब पैसा, सोना, ज्वेलरी, पेंटिंग या दूसरा कोई क़ीमती सामान जमा कराने पर ये बैंक कोई सवाल नहीं करते थे। हालांकि आतंकवाद, भ्रष्टाचार और टैक्स चोरी के बढ़ते मामलों की वजह से स्विट्ज़रलैंड अब उन खातों के आग्रह ठुकराने लगा है, जिनकी जड़े गैर-कानूनी होने का संदेह है। इसके अलावा वो भारत या दूसरे देशों के जानकारी साझा करने के आग्रहों पर भी गौर करने लगा है जो इस बात के सबूत मुहैया कराते हैं कि फ़लां व्यक्ति ने जो पैसा जमा कराया है, वो ग़ैर-कानूनी है। इसके अलावा जो लोग स्विस बैंकों में पैसा रखने वालों के बारे में कोई भी जानकारी देते हैं, सरकार उन्हें भी फ़ायदा पहुंचाने की बात कहती रही है। स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का पैसा तीन साल से गिर रहा था लेकिन साल 2017 में कहानी पलट गई है। मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही काले धन पर निशाना साधती रही है। साल दर साल आधार पर तुलना करें तो पिछले साल स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा 50 फ़ीसदी बढ़कर 1.01 अरब स्विस फ़्रैंक (क़रीब सात हज़ार करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है। स्व‍िस बैंकों में भारतीयों का पैसा पिछले चार साल में 50 फीसदी बढ़ जाने को लेकर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने दावा किया कि इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि स्व‍िस बैंकों में भारतीयों का जो पैसा है, उसमें ज्यादातर भारतीय मूल के उन लोगों का है, जो अब विदेशों में बस गए हैं। यह पूरा पैसा काला धन नहीं है। अरुण जेटली ने उन रिपोर्ट्स का भी खंडन किया, जिनमें कहा जा रहा है कि काले धन के ख‍िलाफ मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए कदम फेल हो गए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टों की वजह से भ्रामक जानकारी फैल रही है। उन्होंने फेसबुक पर अपने ब्लॉग में लिखा, ” स्व‍िट्जरलैंड स्व‍िस बैंकों में रखे पैसे की डिटेल साझा करने के लिए पहले तैयार नहीं था लेकिन बाद में वैश्विक दबाव की वजह से वह इसके लिए तैयार हुआ है। अब उसने उससे जानकारी मांगने वाले देशों को डिटेल देने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है।” उन्होंने बताया कि जनवरी, 2019 से भारत को भी इसकी जानकारी मिलनी शुरू हो जाएगी। ध्यान देने की बात यह है कि विगत वर्षों में स्विस बैंक से जो जानकारी भारत सरकार को मिली वह न सार्वजनिक की गई न उसपर कोई उचित कार्यवाही ही हुई। तब यह कैसे मान लिया जाए कि जेटली जो कह रहे हैं सरकार वह करेगी। दूसरी बात जेटली को यह कैसे पता चला कि यह पैसा उन भारतीयों का है जो अब विदेशों में बस गए हैं। और यह पूरा पैसा काला धन नहीं है। 2017 में यह पैसा अचानक उनके पास कैसे पहुंच गया या यह पैसा अगर काला धन नहीं है तो यह स्व‍िस बैंकों में ही क्यों जमा हुआ। भारतीय जो विदेशों में बस गए हैं उन देशों के बैंकों में क्यों नहीं। 2019 में चुनावों के मद्देनजर यह सफाई कारगर साबित होगी इसमें संदेह है। हाँ इस मुद्दे से ध्यान भटकाने की कवायद अवश्य जाएगी।