जी भाई साहब जी: ग्वालियर बीजेपी में सिर फुटव्वल, इन आंसुओं का दोषी कौन

बीजेपी की अंदरूनी राजनीति फिर सतह पर आ गई जब पूर्व मंत्री और अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा का अपमान कर दिया गया। उन्‍हें मनाने के क्रम में महापौर प्रत्‍याशी सुमन शर्मा के आंसू बन निकले। इन आंसुुओं के पीछे की राजनीति इन दिनों चर्चा में है।

Updated: Jul 05, 2022, 08:33 AM IST

नाराज अनूप मिश्रा को मनाती हुई महापौर प्रत्‍याशी सुमन शर्मा।
नाराज अनूप मिश्रा को मनाती हुई महापौर प्रत्‍याशी सुमन शर्मा।

मध्‍य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव जारी हैं। 6 जुलाई को पहले चरण का मतदान होना है। ग्‍वालियर क्षेत्र में सबकी निगाहें लगी हुई हैं। इसका कारण भी है। वहां महल बनाम बीजेपी की राजनीति अतीत का हिस्‍सा रही है। अब महल के प्रतिनिधि यानि ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया बीजेपी में आ गए हैं तो ‘महल’ खुद बीजेपी का हिस्‍सा हो गया है। और जो बीजेपी नेता खुल कर महल के खिलाफ मोर्चाबंदी किया करते थे वे अब पार्टी के अंदर मोर्चा खोले हुए हैं। उनके स्‍वर कभी बुलंद होते हैं, कभी वे खामोशी से पार्टी की अंदरूनी राजनीति को गर्माते रहते हैं। 

ग्‍वालियर की महापौर प्रत्‍याशी के चयन में जब केंद्रीय मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की पंसद को प्रत्‍याशी नहीं बनाया गया तो इसे सिंधिया की हार व बीजेपी में गुटबाजी के संघर्ष के रूप में निरूपित किया गया। 

गुजरे सप्‍ताह बीजेपी की अंदरूनी राजनीति फिर सतह पर आ गई जब संकल्प पत्र जारी करने के दौरान पूर्व मंत्री और अटलजी के भांजे अनूप मिश्रा का अपमान कर दिया गया। पत्रकार वार्ता के दौरान जूनियर नेताओं को सम्‍मान सहितमंच पर बुलाया गया और अनूप मिश्रा को नीचे ही बैठाए रखा गया। संकल्‍प पत्र जारी होने तक वे बैठे रहे और जब सब्र टूट गया तो आयोजन स्‍थल से चले गए। 

अनूप मिश्रा की नाराजगी को देख ब्राह्मण संगठनों ने चुनाव के बहिष्‍कार की घोषणा कर दी। मामला बिगड़ता देख महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा भागती हुई अनूप मिश्रा के घर पहुंची। यहां देर तक वे रोती रहीं। अनूप मिश्रा को मनाने के क्रम में वे एक चूक और कर गईं। मंच पर न बुलाने के मामले में सफाई देते हुए महापौर प्रत्याशी ने कह दिया कि भाजपा जिलाध्‍यक्ष कमल माखीजानी उनके पास बैठे थे। उसकी कोई गलती नहीं है, जवाहर प्रजापित मूर्ख है उसके कारण यह हुआ। 

ब्राह्मणों को मनाने के फेर में नाराज हुआ पिछड़ा वर्ग

जब संभागीय मीडिया प्रभारी जवाहर प्रजापति को बुलाया गया तो वह भी अनूप मिश्रा के घर पहुंच गए। वहां उन्होंने अनूप मिश्रा के पैरो में बैठकर माफी मांगी। इसका वीडियो वायरल हुआ है। जिसे देख पिछड़ा वर्ग समाज नाराज हो गया है। ओबीसी महासभा ने कहा कि महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा ने अपनी पार्टी ही पिछड़ा वर्ग के नेता जवाहर प्रजापति के लिए अपशब्द कहकर पिछड़े वर्ग का अपमान किया हैं साथ ही ओबीसी के नेता को पैरों में बैठाकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया है। ओबीसी महासभा ने भी कह दिया कि वह मतदान के दिन सोचने के लिए विवश होगी।

इस तरह ग्‍वालियर में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के चलते घटी घटनाओं में ब्राह्मण व पिछड़ा वर्ग ने अपना अपमान  महसूस तो किया ही महापौर पद की प्रत्‍याशी भी असहाय हालत में रोने को मजबूर हुई। अंदर की खबर है कि‍ केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थन से टिकट हासिल करने वाली सुमन शर्मा की राह में बीजेपी नेता ही कांटें बिछा रहे हैं। इस बात की पीड़ा रह रह कर महापौर प्रत्याशी सुमन शर्मा के आंसुओं में व्‍यक्‍त हो रही है। 

काम आए पुराने संगठन मंत्री, विधानसभा चुनाव में क्या होगा

अंदरूनी सिर फुटव्‍वल का नजारा ग्‍वालियर में ही आम नहीं हुआ बल्कि पूरे प्रदेश में पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी को अपनों के ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। टिकट न मिलने से कई जमीनी नेताओं ने बगावत कर दी है। इन नेताओं का मानना है कि उन्‍होंने पार्टी को खून-पसीने से सींच कर मजबूत किया और आज जब लाभ की बारी आई तो फायदा किसी ओर को मिल रहा है। अपनी थाली का घी कहीं और जाता देख बीजेपी नेताओं ने बगावत कर दी और मैदान में आ डटे। 

नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी की इस बगावत ने संगठन की नींद उड़ा कर रख दी है। पार्टी ने बागियों पर कार्रवाई कर उन्‍हें संगठन से छह वर्षों के लिए बाहर किया है मगर बागियों के तेवर ठंडे नहीं हुए हैं। बागियों की उपस्थिति ने कई जगह बीजेपी के जीत के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्‍यक्ष वीडी शर्मा सहित अन्‍य नेताओं की समझाइश काम नहीं आई तो संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने ‘पुराने चावल’ को मैदान में उतारा। हितानंद शर्मा ने संगठन मंत्री रहे नेताओं को मोर्चा संभालने के लिए कहा।

माना जा रहा है कि संगठन मंत्री रहे नेताओं ने बीजेपी की मुश्किलों को कुछ आसान किया है। गौरतलब है कि बीजेपी ने संगठन के स्‍तर पर बदलाव करते हुए बीते दिनों संगठन मंत्रियों के पद खत्‍म कर दिए हैं। कुछ संगठन मंत्रियों को निगम-मंडलों में एडजस्‍ट किया गया है। जब चुनाव में बागियों पर कोई जोर नहीं चला तो कभी मैदान में ताकतवर रहे इन संगठन मंत्रियों को तैनात किया गया कि वे बागियों को मनाएं।

शैलेंद्र बरुआ, जितेंद्र लटोरिया, केशव भदौरिया आदि ने दी गई जवाबदारी को संभाला। अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच देखना होगा कि इस अनुभव को देखते हुए पार्टी संगठन मंत्री व्‍यवस्‍था फिर से शुरू करेगी या किसी नए फार्मेट पर विचार करेगी। 

आसमान से बरसी बीजेपी की आफत, नेता ढूंढ रहे बहाना

बीजेपी प्रत्‍याशियों की भी अजीब समस्‍या है। तमात प्रयासों के बाद वे टिकट पाने में सफल तो हो गए हैं मगर मतदाताओं के बीच जा कर बात करने में पसीने छूट रहे हैं। रैली, रोड़ शो से अलग जब प्रत्‍याशी व्‍यक्तिगत संपर्क करने पहुंच रहे हैं तो उनके पास जनता के सवालों के जवाब नहीं हैं। लंबे समय से निकाय चुनाव न होने से व्‍यवस्‍था आयुक्‍तों व अफसरों के हाथ में है। अफसरों ने केंद्र की योजनाओं सहित उन योजनाओं पर तो ध्‍यान दिया जिनमें खूब पैसा आ रहा है, मगर जनता की मूलभूत समस्‍याएं नजर अंदाज कर दीं। 

अब जब नेता वोट मांगने जनता के पास पहुंच रहे हैं तो खरी-खोटी सुननी पड़ रही हैं। पहले अफसशाही ने विकास के चक्‍कर में जनता की सुविधाओं को नजरअंदाज किया अब बारिश ने कथित विकास की भी पोल खोल कर रख दी। राजधानी में भी कम बारिश के बाद भी सड़कों पर जल भराव, घंटों बिजली गुल होने बीजेपी प्रत्‍याशियों की मुसीबत बढ़ा दी है। उनके पास जवाब नहीं है कि 15 सालों से बीजपी की सरकार है तो अब तक ये अव्‍यवस्‍थाएं क्‍यों बनी हुई हैं? जनता के सवालों पर बगलें झांक रहे बीजेपी नेता किसी तरह बचाव करने में जुटे हुए हैं। 

क्यों याद आई कमलनाथ को जवानी, कैसे हुए सरकार पर हमले 

विकास की ही बात से बीते दिनों कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ को अपनी जवानी याद आ गई। भोपाल में जिंसी चौराहे कांग्रेस की सभा में विधायक आरिफ मसूद ने कमलनाथ को ‘यंगस्टर’ कह दिया। इसके बाद तो कमलनाथ के भाषण की दिशा ही बदल गई। उन्‍होंने गुजरे दिनों को याद करते हुए कहा कि जब मैं भोपाल में घूमता हूं, तो मुझे अपनी जवानी याद आती है। 1991 में मैं देश का पर्यावरण मंत्री था। तब वीआईपी रोड़ नहीं था। मैंने मंत्रालय में कहा- ये गंदी तलाब जो है, इसे साफ करेंगे। मैंने 300 करोड़ रुपए दिए। ये सड़क बनीं। भोपाल तालाब की सफाई शुरू हुई, इसलिए मुझे वो समय याद आता है।

सरकार पर हमलावर हुए कमलनाथ ने कहा कि जब मैं केंद्र में शहरी विकासमंत्री था। बाबूलाल गौर नगरीय विकास मंत्री थे। शिवराज सिंह मुख्यमंत्री थे। मैंने उनसे कहा था कि कितनी शर्म की बात है कि प्रदेश में मेट्रो नहीं है। इस पर उन्होंने कहा था कि प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने का पैसा नहीं है। मैंने उनसे कहा कि मुझे प्रस्ताव भेजिए, मैं पैसा भेजता हूं। भोपाल-इंदौर की मेट्रो की वो शुरुआत थी। यह इतिहास है। 

उम्र दराज होने के बीजेपी के आरोपों के बीच कमलनाथ ने न केवल अपनी जवानी को याद किया बल्कि इस बहाने केंद्र में मंत्री रहते हुए मध्‍य प्रदेश के लिए अपने योगदान को भी बता दिया। आरिफ मसूद द्वारा दी गई ‘यंगस्टर’ की उपमा और उस बहाने बीजेपी पर कमलनाथ के तंज की चर्चा है। 

संकट के समय याद आए संकटमोचक 

संकट के समय हनुमान को याद करना राजनीति का नया तरीका है। बीजेपी के हिंदुत्‍व का जवाब देने के लिए कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ और अन्‍य नेता भी सॉफ्ट हिंदुत्‍व की राह पर हैं। अपने क्षेत्र में हनुमान की बड़ी मूर्ति लगवाने और मंदिन बनवाने वाले कमलनाथ ने अपनी आस्‍था का ऐसा प्रदर्शन पहले कभी नहीं किया। मगर अब कांग्रेस नेता अपने प्रदेश अध्‍यक्ष कमलनाथ को हुनमान भक्‍त बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि ऐसा करना बीजेपी को उसके तरीके से ही जवाब देना है। 

शायद यही कारण है कि छिंदवाड़ा नगर निगम में चुनाव के बीच कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग ने एक पोस्टर जारी किया। पोस्टर में हनुमान जी की एक बड़ी तस्वीर के साथ कलमनाथ, उनके पुत्र सांसद नकुन नाथ और जिले से पार्टी के मेयर प्रत्याशी विक्रम अहाके की तस्वीर भी है। इस पोस्टर में हनुमान चालीसा की एक चौपाई भी लिखी हुई है। बीजेपी को कांग्रेस का यह पोस्टर रास नहीं आया और निकाय चुनाव में भगवान के नाम पर वोट मांगने की शिकायत कर दी। 

दूसरी तरफ, प्रदेश के अनेक हिस्‍सों में मंदिरों में हनुमान चालीसा पाठ सहित भक्ति आयोजन की संख्‍या बढ़ गई है। बीजेपी नेताओं के समर्थक भक्ति आयोजन कर अपने नेता की जीत के प्रयास कर रहे हैं। संकट के समय हनुमान जी को याद कर रहे बीजेपी नेताओं द्वारा कांग्रेस की शिकायत करना भी राजनीतिक संकट से मुक्ति की कोशिश समझी जा रही है।