जी भाईसाहब जी
राजनीति भी तो तभी चमकेगी जब केंद्र खुश होगा। यही कारण है कि विधानसभा में केंद्र सरकार की जमकर तारीफ की जा रही है तो बाहर भी बीजेपी नेता केंद्र सरकार की शान में एक सवाल भी पसंद नहीं कर रहे हैं।
बड़ी उम्मीद से रखा है हमने तेरी दुनिया में यह दूसरा कदम... प्रख्यात गाने को जरा घुमा फिरा दिया जाए तो 9 मार्च को प्रस्तुत एमपी के बजट को लेकर यही कहा जाएगा। वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने दूसरी बार बजट प्रस्तुत किया है। कोरोना संकट के बाद और कर्ज से डूबे मध्य प्रदेश में आर्थिक गतिविधियां संचालित करना और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर जहां बजट से उम्मीदें थीं तो चुनाव 2023 का राजनीतिक भार भी इस बजट के कांधों पर था।
जनता को लुभाने के लिए वित्तमंत्री ने 55 हजार करोड़ के घाटे का बजट पेश करते हुए भी कोई टैक्स नहीं लगाया। हां, टैक्स से राहत भी नहीं दी। कर्मचारियों को लुभाने के लिए महंगाई भत्ता यानि डीए 11 फीसदी बढ़ा दिया गया है। मगर, आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश के लिए हमारे वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा केंद्र सरकार पर निर्भर हैं। और, यही कारण है कि उन्होंने अपने बजट भाषण में केंद्र सरकार की उपलिब्धयों का ऐसे गुणगान किया जैसे सेहरा एमपी की सरकार के सिर बंधा हो। वित्त मंत्री ने कोरोना के प्रबंधन, यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए किए गए प्रयासों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की।
अचरज की बात तो यह है कि यूक्रेन से बच्चों को लाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने न तो कोई पहल की है और न आगे भी कोई योजना है। कहते हैं, केंद्र सरकार की तारीफ करना भी वित्तमंत्री देवड़ा की मजबूरी है। केंद्र से पैसा मिलेगा तो ही तो मध्यप्रदेश अपनी योजनाओं को पूरा कर पाएगा। देवड़ा की चिंता मध्यप्रदेश के खर्च को जुटाना है।
प्रदेश पर दो लाख 67 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है। जुलाई 2022 से राज्य को लगभग 15 हजार करोड़ की जीएसटी क्षतिपूर्ति मिलना भी बंद हो जाएगी। मध्य प्रदेश सरकार ने 15वें वित्त आयोग के साथ बैठक में यह मांग रखी थी कि जीएसटी क्षतिपूर्ति की भरपाई भी किसी न किसी माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा की जाए। आर्थिक गतिविधियों को बरकरार रखने के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए केंद्र से पैसा चाहिए और पैसा चाहिए तो तारीफ तो करनी पड़ती है।
वित्तमंत्री ने जहां बजट भाषण में केंद्र सरकार के कसीदे पढ़े वहीं बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने करीब 17 मिनट के अपने अभिभाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुणगान किया। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत और अंत प्रधानमंत्री के नाम से ही किया। इस तरह उन्होंने कुल 9 बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए केंद्र की 18 योजनाओं का उल्लेख किया।
बात केवल धन पाने की नहीं है। राजनीति भी तो तभी चमकेगी जब केंद्र खुश होगा। यही कारण है कि विधानसभा में केंद्र सरकार की जमकर तारीफ की जा रही है तो बाहर भी बीजेपी नेता केंद्र सरकार की शान में एक सवाल भी पसंद नहीं कर रहे हैं। सदन में जहां वित्तमंत्री ने केंद्र की तारीफों के पुल बांधें तो बाहर कृषि मंत्री कमल पटेल यूक्रेन संकट के सवाल पर पत्रकारों पर ही भड़क गए। कमल पटेल ने यूक्रेन संकट पर सवाल पूछे जाने के जवाब में उल्टा पत्रकारों पर भड़कते हुए कहा कि मोदी नहीं लाए तो कौन लेकर आया? आप लेकर आए यूक्रेन से?
तो साहब सदन के अंदर और बाहर केंद्र सरकार की तारीफ खूब हो गई मगर प्रदेश में विपक्ष भी तो है और उसके सवालों के जवाब भी तो देने है। विधानसभा सत्र में सरकार को घेरने की कांग्रेस की रणनीति का खुलासा करते हुए नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने गाय का मुद्दा उछाला तो पार्टी उसका उपाय खोजने में जुट गई थी। अब बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री जगदीश देवड़ा ने गो-संवर्धन के लिए नई योजना शुरू करने की घोषणा कर दी है।
वित्तमंत्री की घोषणा पर प्रतिक्रिया में कमलनाथ ने कहा है कि प्रदेश में जब से शिवराज सरकार आयी है, प्रदेश में गौ माताओं की मौतें रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। गाय भूखों मर रही हैं। उनके संरक्षण की ठोस योजना बताने की जगह केवल इतना कहा गया है कि नई योजना लाएंगे। सवाल है क्या एक योजना से गायों के मौत के मामले में बीजेपी सरकार बेकसूर साबित हो जाएगी।
भोपाल के पास बैरसिया में गायों के कंकाल मिलने के बाद प्रदेश में कई जगहों से गायों की मौत और गौशालाओं में अव्यवस्था के मामले सामने आ चुके हैं। बैरसिया में तो गौशाला संचालिका भाजपा नेत्री हैं। भाजपा हमेशा गाय को लेकर सड़क पर आक्रामक रही है। अब इस मुद्दे पर उसे सदन में घेरने की कांग्रेस की रणनीति के मायने तलाशे जा रहे हैं। कमलनाथ की इस रणनीति को एक बेहतर कवर ड्राइव कहा जा रहा है जिसके सहारे में भाजपा को उसी के मुद्दे पर घेरेंगे और भाजपा नेताओं को लाजवाब कर देंगे। बीजेपी सरकार अब गो संवर्धन के लिए एक नई योजना का जिक्र कर कांग्रेस के मुद्दे को खत्म करने की कोशिश करेगी।
विधानसभा में कांग्रेस के हमलों का जवाब तो दे दिया जाएगा और केंद्र के सहारे प्रदेश को तो आत्मनिर्भर बनाने की जुगत भी हो गई मगर अपनी राजनीति भी तो है। उसे भी तो चमकाना है न? मध्य प्रदेश में तमाम राजनीतिक गतिविधियां विधानसभा चुनाव 2023 को ध्यान में रख कर रची और गढ़ी जा रही है। बयानों से राजनीति चमकाई जा रही है तो कांग्रेस में राजसी छवि के साथ जीने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ‘महाराज’ का चोला उतारकर अपनी पहचान का कार्यकर्ता सा साधारणीकरण करने में जुटे हैं। उन्हें श्रीमंत नहीं, भाई साहब कहलाना रास आ रहा है। उनका यूं साधारण होना, भाजपा के दिग्गज नेताओं की विशिष्टता को खतरे में डाल रहा है। यही कारण है जहां पूरा प्रदेश संगठन में सिंधिया और उनके समर्थकों को अपनाने की होड़ है वहीं ग्वालियर चंबल क्षेत्र के दिग्गज नसीहतों का पाठ पढ़ा रहे हैं।
कभी सिंधिया के धुर विरोधी रहे पूर्व मंत्री जयभाव सिंह पवैया ने कहा था कि सिंधिया के समर्थकों को केवल अपने नेता ही नहीं बल्कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करना भी सीखना चाहिए। असल में पवैया स्वयं सहित बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी और सिंधिया समर्थकों के अवहेलनापूर्ण व्यवहार से नाराज थे। अब पूर्व मंत्री और अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा ने जगह दिखाने का काम किया है।
अनूप मिश्रा ने साफ कहा कि वे विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारी में हैं। बातों बातों में जब सिंधिया के बढ़ते वर्चस्व का जिक्र हुआ तो अनूप मिश्रा ने कह दिया कि घर में नया बच्चा आ जाने से शुरुआत के दिनों में तो लगता है कि मां का ध्यान उसकी तरफ नहीं है। लेकिन समय बीतने पर पता चलता है कि नन्हें बच्चे का पालन-पोषण बेहतर ढंग से हो, इसलिए मां का ध्यान छोटे बच्चे पर था। वही काम भाजपा कर रही है। अभी उन्हें बीजेपी की रीति नीति समझाने का काम कर रही है।
मिश्रा यह संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं कि बीजेपी संगठन में सिंधिया समर्थकों का हर व्यवहार दर्ज हो रहा है और मौका मिलने पर मां बच्चे को अनुशासन का पाठ पढ़ा देगी। वैसे, अनूप मिश्रा ने सिंधिया पर निशाना साध कर अपने पाले को मजबूत करने का प्रयास किया है। उनका लक्ष्य 2023 में टिकट पाना है। और वे यह जानते हैं कि जब समर्थक के सामने अनूप मिश्रा का नाम आएगा तो सिंधिया अपने समर्थक का नाम ही आगे बढ़ाएंगे। वे अनूप मिश्रा के पक्ष में जो होंगे नहीं। सो सिंधिया विरोधी खेमे को ही साधा जाए। अपनी राजनीति को धार देते हुए अनूप मिश्रा का यह बयान बीजेपी के उस वर्ग को भी राहत दे गया जो सिंधिया समर्थकों को पार्टी में मिल रही तवज्जो से नाराज हैं।
ऐसा नहीं है कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ही बीजेपी नेताओं में अंदरूनी खींचतान है। वर्चस्व की लड़ाई का गवाह तो बुंदेलखंड भी है। बुंदलेखंड में बीजेपी के दो कद्दावर नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई का नया चेहरा बनी बसपा विधायक रामबाई। कभी कांग्रेस खेमे में तो कभी बीजेपी नेताओं के आसपास दिखाई देनी वाली रामबाई ने इस बार बुंदलेखंड की राजनीति के दिग्गज नेता लोक निर्माण विभाग मंत्री गोपाल भार्गव की जमीन हिलाने की कोशिश की है। दमोह के पथरिया से विधायक रामबाई ने यह कह कर राजनीतिक सनसनी फैला दी कि वे भार्गव के गढ़ रहली से चुनाव लड़ना चाहती हैं।
प्रदेश में सबसे ज्यादा विधानसभा चुनाव जीतने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के बाद गोपाल भार्गव ही ऐसे नेता है जो लगातार आठ चुनाव जीत चुके हैं। फिर क्या वजह है कि रामबाई को रहली जैसी सख्त जमीन पसंद आई है? लोग तलाशने लगे कि रामबाई का निशाना तो गोपाल भार्गव हैं मगर उनकी बयान की बंदूक में कारतूस किसका था? रामबाई के सहारे गोपाल भार्गव अपने की घर में कमजोर होंगे तो फायदा किसका होगा?
उन्होंने क्रिकेट टूर्नामेंट के अवसर पर यह बात कही है और माना जा रहा है कि वास्तव में यह बयान गुगली बॉल की तरह था। कहा रामबाई ने है मगर सूत्रधार कोई ओर है। बीजेपी के ही वरिष्ठ मंत्री भूपेंद्र सिंह बुंदलेखंड में गोपाल भार्गव के समानांतर राजनीति के लिए जाने जाते हैं। दोनों के बीच राजनीतिक शहमात का खेल बरसों से जारी है। यहां तक कि कोरोना काल में हुए विवाह घोटाले में भार्गव के साढ़ू पर कार्रवाई के पीछे भी भूपेंद्र सिंह खेमे का जोर माना जाता है। हर तरह की घेराबंदी के क्रम में रामबाई का यह बयान भी आया है। हालांकि, रामबाई की खुद कई मामलों में गंभीर नहीं रहती है। इसलिए उनके कहे की हकीकत तो वे जाने मगर भाजपा का एक मंत्री का खेमा इसलिए खुश है कि उनके भाई साहब के प्रतिद्वंदी नेता का राजनीतिक संकट बढ़ सकता है।
अलग-अलग अंचलों में ही नहीं बल्कि शीर्ष स्तर पर भी ऐसा ही गुरिल्ला युद्ध जब तब दिखाई देता है। खासकर तब जब मुख्यमंत्री बदलने की बात आती है। अब राजनीतिक गलियारों में यह अनुमान पर लगा कर उड़ रहा है कि 10 मार्च को विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काम की समीक्षा होगी। ऐसे अनुमान प्रचलित होते ही मुख्यमंत्री के दावेदारों के चेहरे खिल जाते हैं।
मगर बीते डेढ़ दशक से प्रदेश के मुखिया की बागडोर संभाल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक सफलता यह भी है कि संगठन केन्द्रित पार्टी भाजपा में व्यक्ति सत्ता को स्थापित किया है। सार्वजनिक रूप से सौम्य चेहरा शिवराज की राजनीतिक मार विरोधियों को पानी तक नहीं मांगने देती हैं। अतीत के सफहे पलटेंगे तो ऐसे कई उदाहरण दिखाई दे जाएंगे। मगर इस बार राजनीतिक प्रेक्षक चौंक गए जब भाजपा ने वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा के 75 वे जन्मदिन को उत्सव के रूप में मनाने की घोषणा की। जहां भाजपा की राजनीति के नए ककहरे में मैदानी और आजीवन समर्पित रहे कार्यकर्ता स्वयं को उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं वहां रघुनंदन शर्मा का सम्मान चर्चा में आ गया।
रघुनंदन शर्मा अपने बेबाक बयानों के कारण कई बार पार्टी नेताओं को संकट में डाल चुके है। खासकर तब जब उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घोषणावीर कहा था। तीखे आलोचक नेता के अमृत महोत्सव में मुख्यमंत्री का बतौर अतिथि जाना आकर्षण का केंद्र रहा। जिज्ञासा थी कि दोनों एक दूसरे के बारे में क्या कहेंगे। आयोजन में दोनों ही नेताओं ने अतीत को याद किया। खुलासा भी किया गया कि युवा मोर्चा के कार्यकर्ता रहे शिवराज सिंह को रघुनंदन शर्मा ने घी पिलाया है। ताकत के लिए पहले घी और फिर आलोचना की कड़वी गोली देने वाले रघुनंदन शर्मा के सम्मान से पार्टी को भला क्या हासिल हुआ?
सतह पर तो यह संदेश देने की कोशिश की गई कि पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज नहीं कर रही है। दूसरा, पार्टी नेता उम्मीद कर रहे हैं कि कम से कम अब उन पर आलोचनाओं के तीर कम मारक होंगे। आखिर, 2023 के चुनाव करीब हैं और अपने ही नेता मुश्किल खड़ी करेंगे तो मीडिया का सामना कैसे होगा भला?