MP Farmers : दो बीघा ज़मीन और दो बेटियों से खेती

Aagar Malwa : मथुराखेड़ी गांव में कुमेर सिंह के पास बैल नहीं, बेटियां है- जो पढ़ाई छोड़ पिता के लिए खेत जोतने का काम कर रही हैं

Publish: Jul 14, 2020, 01:13 AM IST

मध्यप्रदेश के आगर-मालवा से बेरोजगारी और आर्थिक तंगी को बयां करती हुई दिल को झकझोर देनेवाली तस्वीरें सामने आई हैं। गरीबी का आलम ऐसा है कि जिले में बैलों की जगह बेटियां खेतों में डोर जोत रही हैं। जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम मथुराखेड़ी में दो बेटियों ने गरीब किसान पिता का हाथ बटाने के लिए पहले पढ़ाई छोड़ी उसके बाद पिता जब बैल नहीं खरीद पाए तो डोर चलाने के लिए बेटियों को हीं बैलों की जगह लेनी पड़ी। बता दें कि पिछले हफ्ते रतलाम जिले से भी एक ऐसी ही खबर आई थी जिसमें बेटी ने पिता का हाथ बटाने के लिए बैलों का जगह लिया था। 

दरअसल, आगर मालवा के मथुराखेड़ी गांव के रहने वाले किसान कुमेर सिंह के पास कुल 2 बीघा जमीन है जिसके पैदावार से उनके घर में दो वक्त की रोटियां भी नहीं बन पाती है। ऐसे में बेटियों की पढ़ाई व अन्य जरूरतों को पूरा करना असंभव है। इस स्थिति में कुमेर सिंह की दोनों बेटियों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर पिता को काम में हाथ बटाने का निश्चय किया। उन्होंने बुआई से लेकर अन्य सारे कार्यों में पिता का साथ दिया लेकिन जब बुआई के बाद खर पतवार को नष्ट करने के लिए डोर चलाने के लिए बैलों की आवश्यकता पड़ी तो कुमेर सिंह के पास इतने रुपए नहीं थे कि वह बैल खरीद सकें। ऐसे में उनकी दोनों बेटियां, 16 वर्षीय मधु और 18 वर्षीय जमना, बैलों की तरह खेतों में डोर चलाने लगी। 

तीन महीने पहले टूटा था घर

कुमेर सिंह चारों तरफ से परेशानियों से घिरे हुए हैं। तीन महीने पहले ही आंधी-तूफान में उनका घर ढह गया था। नया घर बनाने के लिए उनके पास एक रुपया भी नहीं था। बिना छत के घर मे दो जवान बेटियों व पत्नी के साथ रहना उनके लिए काफी मुश्किल भरा था। इस दौरान उन्होंने पंचायत से मदद मांगी ताकि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुछ सहयोग मिल जाए। लेकिन पंचायत के किसी भी जिम्मेदार ने उनकी एक नहीं सुनी। ऐसे में गांववालों ने उनकी हालत देख उनकी मदद करने की ठानी। गांव के सारे लोगों ने मिलकर चंदा किया और कुमेर सिंह के टूटे हुए मकान की मरम्मत का कार्य शुरू करवाया।

पढ़ेंगे तो कैसे चलेगा घर 

कुमेर सिंह की बड़ी बेटी जमना बताती हैं कि उन्हें पढ़ने का बहुत शौक है लेकिन वह पढ़ेगी तो घर कैसे चलेगा। उन्होंने कहा, 'पढ़ने की इच्छा थी, गांव में ही 8वीं तक पढ़ाई भी की लेकिन उसके बाद पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में बाहर जाकर पढ़ाई के लिए न तो वो आर्थिक रूप से मजबूत थी और न ही पिता को इस हालत में छोड़कर जा सकती है। इसलिए हमने पढ़ाई छोड़कर पिता का हाथ बटाना ही उचित समझा। खेत मे खरपतवार निकालने के लिए डोर में हम बहनों को जुतना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता लेकिन हमारी भी मजबूरी है। बता दें जमना की छोटी बहन मधु महज 16 साल की है उसने भी पिता की मदद के लिए पढ़ना छोड़ दिया।

किसान कुमेर सिंह ने बताया कि उन्होंने सरपंच और सचिव से मदद मांगी पर कोई मदद करने आगे नहीं आया। उन्होंने कहा, 'बैल खरीदने के पैसे नही हैं कर्ज लेकर खरीद भी लें तो उन्हें रखने के लिए जगह नहीं है साथ ही बैल के रखरखाव में होने वाले खर्च को वहन करना भी हमारे लिए संभव नहीं है। जब हम खुद का पेट मुश्किल से भर पा रहे हैं तो बैलों को कहां से चारा खिलाएंगे। 

रतलाम में भी यही कहानी

बता दें कि पिछले हफ्ते रतलाम से भी कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई थी। कर्ज में डूबे किसान जगदीश धाकड़ के पास किराए पर ट्रैक्टर लेने या बैल खरीदने के पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने अपने 20 वर्षीय बेटी राधा कुमारी की मदद से खेत की जुताई की। जगदीश ने इस बारे में कहा, "न तो मेरे पास बैल खरीदने के लिए पैसे हैं और न ही ट्रैक्टर चलाने के लिए। आम तौर पर, एक एकड़ की जुताई के लिए 300 से 400 रुपये के आसपास ईंधन की जरूरत होती है, लेकिन मेरे पास इतना पैसा भी नहीं है।