सूर्य और अग्निदेव के प्रति आभार जताने का पर्व लोहड़ी, आस्था और लोक परंपरा का अनूठा मेल

लोहड़ी पारंपरिक तौर पर फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा त्योहार है, इस दिन पंजाब में दुल्ला भट्टी की कथा सुनी जाती है, अलाव जलाकर उसके इर्द गिर्द होता है भांगड़ा और गिद्दा

Updated: Jan 13, 2022, 03:38 PM IST

Photo Courtesy: twitter
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13 जनवरी गुरुवार को देशभर में लोहड़ी का उत्सव मनाया जा रहा है। इसकी धूम समूचे उत्तर भारत में देखने को मिलती है। खासकर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में यह पर्व खासतौर पर मनाया जाता है। कुछ जगहों  पर लोहड़ी को लाल लोई और तिलोड़ी भी कहा जाता है। यह लोक आस्था से जुड़ा पर्व है। वहीं इससे कई धार्मिक रीतिरिवाज और आस्था भी जुड़ी हैं। यह ऋतु परिवर्तन, कृषि उत्पादन, सामाजिक औचित्य भी जुड़ा हुआ है। लोहड़ी शीत ऋतु के बाद बंसत के आगमन याने मौसम परिवर्तन का सूचक कहा जाता है। इस दिन लोग आपस में मिल कर उत्सव मनाते हैं, जिससे आपसी सौहार्द्र बढ़ता है।

ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है लोहड़ी

लोहड़ी का पर्व शीत ऋतु की समाप्ति और बसंत के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन गांवों में लोग खेतों-खलिहानों में एकत्रित होते हैं। अलाव जलाते हैं, उसके चारों ओर नाचते गाते हैं। मक्का, मूंगफली, रेवड़ी, खील अग्नि में डाला जाता हैं। लोहड़ी पर तिल और गुड़ खाने और बांटने की परंपरा है। इस दिन रात में लोग मिलजुल कर लोक गीत गाते हैं। ढोल ताशों की धुन पर नाचते हैं।

माता सती ने इसी दिन किया था आत्मदाह

पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष प्रजापति के बेटी के रुप में माता सती ने इसी दिन देह त्याग किया था। उनके त्याग की याद के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। एक बार सती के पिता ने विशाल यज्ञ किया जिसमें भगवान शिव को छोड़ सभी देवताओं को बुलाया गया, शिवजी को न्योता नहीं देने से नाराज माता सती ने उसी यज्ञवेदी की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। तभी से इसदिन लोहड़ी का पर्व मनाने की शुरुआत हुई। लोहड़ी के बाद माघी का त्योहार मानाया जाता है। इसे मकर संक्रांति और उत्तरायण भी कहा जाता है। लोहड़ी जहां एक तरफ दुल्ला भट्टी की लोक कथा से जुड़ी है 

विवाहित बेटियों के यहां भेजा जाता है शगुन

लोहड़ी के मौके पर शादीशुदा बेटियों के यहां तोहफे भेजने की परंपरा है। जिनमें कपड़े, मिठाई, रेवड़ी, सूखे मेवे, फल शामिल होते हैं। जिन घरों में नई-नई शादी या फिर बच्चे का जन्म हुआ हो, उन घरों में खासतौर पर खूब धूमधाम से लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। 

 धार्मिक के साथ लोहड़ी का है वैज्ञानिक महत्व

लोहड़ी का धार्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी होता है। कहा जाता है कि जब अग्नि में तिल और गुड़ डाला जाता है, तो उस धुएं से निकलने वाली खुशबू वातावरण को शुद्ध करती है। वातावरण से प्रदूषण और हर तरह का संक्रमण खत्म हो जाता है। वहीं ठंड में अग्नि की परिक्रमा करने से शरीर को गर्मी मिलती है। लोहड़ी पर सरसों का साग, मक्के की रोटी,तिल गुड़ खाने और खिलाने की परंपरा है।

लोहड़ी के मौके पर होती है दुल्ला भट्टी का कथा

लोहड़ी की रात अलाव के इर्दी गिर्द घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी कही जाती है। इनकी कथा सुनने का खास महत्व होता है। लोक मान्यता के अनुसार मुगल काल में अकबर के शासन काल में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था। तब कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। तभी से हर साल लोहड़ी के मौके पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कथी कहने की रीत जारी है।