नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के 21 दिनों से जारी आंदोलन के मसले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि देश के किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन प्रदर्शन का तरीक़ा क्या हो, इस पर बात की जा सकती है। चीफ़ जस्टिस (CJI) एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि हम किसानों के विरोध-प्रदर्शन के अधिकार को जायज़ मानते हैं, लेकिन विरोध अहिंसक होना चाहिए। CJI ने आगे कहा कि आप इस तरह से शहर को ब्लॉक नहीं कर सकते और न ही हिंसा भड़का सकते हैं।

क्या कानूनों पर अमल रोक सकती है सरकार : सुप्रीम कोर्ट

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वो किसानों के साथ बातचीत का रास्ता निकालने के लिए यह आश्वासन दे सकती है कि जब तक बातचीत जारी है, कृषि कानूनों को लागू नहीं किया जाएगा? इस पर सरकार की नुमाइंदगी कर रहे अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ऐसा करना मुश्किल है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार यह भरोसा दिला सकती है कि वार्ता के दौरान कानूनों को लागू करने के लिए कोई एक्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी नहीं किया जाएगा? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वे इस बारे में सरकार से निर्देश लेने के बाद कुछ कहेंगे। तभी सॉलिसिटर जनरल बोल पड़े कि ऐसा करना भी मुश्किल होगा। इस पर कोर्ट ने उन्हें झिड़कते हुए कहा कि जब अटॉर्नी जनरल सरकार से निर्देश लेकर बताने को कह रहे हैं तो आप पहले से इस संभावना को खारिज क्यों कर रहे हैं।

कानूनों की वैधता का मसला इंतज़ार कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट

इससे पहले खंडपीठ ने गुरुवार को सुनवाई की शुरुआत में ही कहा कि आज वो सिर्फ़ किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के अधिकारों के मसले पर ही विचार करेंगे। तीनों कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अभी बात नहीं करेंगे। क़ानूनों की वैधता का मसला फ़िलहाल इंतज़ार कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर किसान और सरकार आपस में बातचीत करें तो विरोध-प्रदर्शन का उद्देश्य पूरा हो सकता है और हम इसमें मदद करना चाहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि हम कृषि कानूनों पर बने गतिरोध का समाधान करने के लिए कृषि विशेषज्ञों और किसान संघों के निष्पक्ष और स्वतंत्र पैनल के गठन पर विचार कर रहे हैं।

दिल्ली वासियों के जीवन पर असर पड़ रहा है: हरीश साल्वे

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने कहा कि किसानों को प्रदर्शन का हक है, हम प्रदर्शन के अधिकार में कटौती नहीं कर सकते हैं। लेकिन एक चीज जिस पर हम गौर कर सकते हैं, वह यह है कि इससे किसी के जीवन को नुकसान नहीं होना चाहिए। किसानों का प्रदर्शन ख़त्म कराने के लिए दायर याचिका के पक्ष में दलील देते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि किसानों ने राजधानी दिल्ली की तरफ़ आने वाले तमाम रास्ते बंद कर दिए हैं, जिससे दिल्ली के निवासियों का जीवन प्रभावित हो रहा है। प्रदर्शन के अधिकार का मतलब ये नहीं हो सकता कि आप दूसरों के जीवन के अधिकार को सीमित कर दें।

इस तरह के धरने की इजाजत नहीं दी जा सकती : सरकार

सरकार की तरफ़ से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि 22 दिन से जारी ब्लॉकेड (धरने) की वजह से भारी नुक़सान हो रहा है। लोग अपने काम पर नहीं जा पा रहे हैं। एंबुलेंस की आवाजाही नहीं हो पा रही है। कोरोना वायरस के फ़ैलने का ख़तरा भी बहुत बड़ा है। प्रदर्शनकारी जब वापस अपने गांव जाएंगे तो वे वहां महामारी को आग की तरह फैला देंगे। किसान छह महीने तक धरना देने की तैयारी के साथ आए हैं। वे कहते हैं क़ानून वापस लो वरना हम अनिश्चितकाल तक बैठे रहेंगे। इस तरह के धरने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।    

रास्ता पुलिस ने रोका है किसानों ने नहीं : पी चिदंबरम

इस पर पंजाब सरकार की तरफ़ से दलील दे रहे पी चिदंबरम ने कहा कि ये कहना ग़लत है कि किसानों ने सड़क बंद कर दी है। किसान तो दिल्ली आना चाहते हैं। उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिए सड़कें तो पुलिस ने बंद की हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि भीड़ को आने की इजाज़त देनी है  या उन्हें रोकने की ज़रूरत है, इसका फ़ैसला अदालत नहीं कर सकती। ये फ़ैसला तो पुलिस और अधिकारियों पर ही छोड़ देना चाहिए, वही इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के आधार पर सही निर्णय ले सकते हैं।

किसानों को भीड़ कहने पर चिदंबरम ने किया एतराज़ तो CJI ने दी सफाई

चिदंबरम ने भीड़ शब्द के इस्तेमाल पर एतराज़ करते हुए कहा कि प्रदर्शनकारी भीड़ नहीं हैं, बल्कि वे देश के किसानों के समूह हैं। पुलिस ख़ुद उन्हें रोकने के बाद ऐसा आरोप नहीं लगा सकती कि किसानों ने रास्ता बंद कर दिया है। किसी भी किसान संगठन ने ये नहीं कहा कि वे रास्ता बंद करना चाहते हैं। वे तो दिल्ली में आना चाहते हैं। चिदंबरम ने पंजाब सरकार की तरफ़ से दलील रखते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि इस मसले पर विचार के लिए संसद का सत्र बुलाया जाए। चीफ़ जस्टिस बोबड़े ने स्पष्ट किया कि उन्होंने भीड़ शब्द का इस्तेमाल किसी बुरे अर्थ में नहीं किया था।

कल की सुनवाई में क्या-क्या हुआ था

गौरतलब है कि कल दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों को हटाने के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। जिस दौरान कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह एक कमेटी बना सकती है, जिसमें किसान संगठनों के लोग भी होंगे ताकि गतिरोध टूटे और किसानों का धरना समाप्त हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार जो भी बातचीत कर रही है उसके नतीजे सामने नहीं आ रहे हैं। यदि समस्या का जल्द समाधान नहीं किया गया तो यह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा। यदि ऐसा हुआ जो कठिनाई आ सकती है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सभी किसान यूनियन को पक्ष बनाया जाए। यह आदेश देते हुए मामले को आज गुरुवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया था। 

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि सरकार किसानों के हितों के खिलाफ कुछ भी नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों को आदेश दिया जाए कि सरकार के साथ कानूनों के प्रावधानों पर बात करें जिससे खुले दिमाग से बात हो सके और समस्या सुलझे। इस पर कोर्ट ने कहा कि आप जो भी बात कर रहे हैं उससे कुछ नहीं निकल रहा है। मेहता ने कहा कि बातचीत तभी सफल होगी जब दोनों ओर से ऐसे लोग सामने आएं जो बातचीत के लिए तैयार हों। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सरकार ऐसे संगठनों के नाम बताए जो बातचीत के लिए तैयार हों। 

सड़कें सरकार ने नहीं, पुलिस ने बंद की: तुषार मेहता

अदालत ने पूछा कि कितने लोगों ने सड़कें ब्लाक की हैं, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा, कानून व्यवस्था में इस तरह के बंद की कोई नजीर नहीं है। मेहता ने कहा कि सरकार ने सड़के बंद नहीं की हैं, यह सड़के पुलिस ने बंद की हैं क्योंकि किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।