नई दिल्ली। ओलंपिक में पदक जीतने वाली देश की पहली महिला पहलवान साक्षी मलिक को बड़ा झटका लगा है। साक्षी को हराकर 18 साल की युवा पहलवान सोनम मलिक नई नेशनल चैंपियन बन गई हैं। हरियाणा की सोनम मलिक ने अपने उसी हाथ से दांव लगाकर बाज़ी जीती, जिसमें एक बार लकवा हो चुका है। तमाम बाधाओं को पारकर करते हुए गोल्ड मेडल जीतने वाली सोनम ने साबित कर दिया है कि मेहनत और लगन के बल पर बड़े से बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। 

सोनम ने आगरा में आयोजित सीनियर वीमेन्स नेशनल रेसलिंग चैंपियनशिप के दौरान दिग्गज पहलवान और रियो ओलंपिक की मेडलिस्ट 27 वर्षीय साक्षी को 62 किग्रा कैटेगरी में 7-5 से हराकर गोल्ड मेडल जीता। सोनम की साक्षी पर ये लगातार तीसरी जीत है। उन्होंने 2020 में एशियन चैम्पियनशिप और एशियन ओलिंपिक क्वॉलिफायर में भी साक्षी को पटखनी दी थी। उन्होंने साक्षी को अपने राइट आर्म लॉक के दम पर हराया। सोनम का दायां हाथ ही दो साल पहले लकवाग्रस्त हुआ था जिसके वजह से उनका करियर शुरू होने से पहले ही दांव पर लग गया था।

लकवे की वजह से छोड़ना पड़ा था टूर्नामेंट

भारतीय रेसलिंग की दुनिया में सबसे चमकता सितारा बनकर उभरी सोनम के पिता राज बताते हैं कि साल 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने के बाद सोनम के दाएं हाथ में परेशानी हुई। सोनम के कोच ने सोचा कि यह रुटीन चोट है और उन्होंने सारे देशी नुस्खे आजमाए। दर्द के बावजूद सोनम ने घरेलू टूर्नामेंट में हिस्सा लेना जारी रखा। लेकिन 2018 में स्टेट चैम्पियनशिप के दौरान उन्हें हाथ में लकवा हो गया, जिसके बाद उन्हें टूर्नामेंट बीच में ही छोड़ना पड़ा।

डॉक्टरों ने कही मैदान छोड़ने की बात

लकवा होने के बाद सोनम 6 महीनों तक बिस्तर पर रहीं। इस दौरान वे अपना हाथ उठा भी नहीं पाती थीं। डॉक्टरों ने सोनम की स्थिति देखकर कहा था कि रेसलिंग के मैदान में उतरने का सपना अब उन्हें छोड़ना होगा। लेकिन सोनम और उनके पिता ने हार नहीं मानी। सोनम के घरवालों के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह महंगा इलाज़ करा पाते। ऐसे में उनके पास कम खर्च में इलाज कराने के लिए आयुर्वेद ही एक मात्र सहारा था।

आखिरकार सोनम अपने कठोर प्रयासों और दृढ़ निश्चय के बदौलत रेसलिंग के मैदान में वापस आईं। सोनम ने वापसी के साथ ही साल 2019 में दूसरी बार वर्ल्ड कैडेट रेसलिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इसी के साथ वे यह खिताब दो बार जीतने वाली पहली महिला रेसलर बन गईं। यह खिताब पुरुषों में भी केवल सुशील कुमार ही दो बार जीतने में सफल हुए हैं।