नई दिल्ली। भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों ने राज्यों को केंद्र से जीएसटी राजस्व में कमी की भरपाई के लिए तीन विकल्प सुझाए हैं। एसबीआई इकॉनमिस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक द्वारा राज्यों के बॉन्ड्स का मौद्रिकरण कर जीएसटी क्षतिपूर्ति की भरपाई की जा सकती है। दूसरा विकल्प है खर्च पूर्ति के लिए अधिक अग्रिम (डब्ल्यूएमए) उन्हें दिया जाये। तीसरा विकल्प में राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) का सहारा लिया जा सकता है।

केंद्र सरकार ने 27 अगस्त को राज्यों को चालू वित्त वर्ष के दौरान 2.35 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित जीएसटी कमी की भरपाई के लिये राज्यों को दो विकल्प दिए हैं। केंद्र सरकार ने राज्यों के समक्ष रिजर्व बैंक के साथ विचार विमर्श के बाद एक विशेष खिड़की से उचित दर पर कर्ज उपलब्ध कराने का प्रस्ताव रखा है। एसबीआई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केंद्र ने हालांकि राज्यों को 2.35 लाख करोड़ रुपये तक का कर्ज लेने का विकल्प दिया है, लेकिन संविधान का अनुच्छेद 293 (3) राज्य सरकारों के कर्ज लेने पर कुछ अंकुश लगाता है।

रिपोर्ट में सुझाए गए विकल्पों पर कहा गया है कि रिजर्व बैंक राज्यों द्वारा जारी किए जाने वाले बॉन्ड अथवा ऋणपत्रों को खरीदकर उन्हें नकदी उपलब्ध कराए क्योंकि केंद्रीय बैंक सभी राज्य सरकारों का बैंकर भी है। हालांकि, इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थितियों में राज्यों के ऋण का मौद्रिकरण संभव नहीं है। ऐसे में यह बेहतर होगा कि केंद्र इस तरह के ऋणपत्रों का मौद्रिकरण करे और राज्यों को दे।

डब्ल्यूएमए के विस्तार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि यह लघु अवधि का उपाय है। इस सुविधा के तहत और राज्य दोनों रिजर्व बैंक से कर्ज ले सकते हैं। हालांकि, डब्ल्यूएमए का 90 दिन की अवधि में परिसमापन जरूरी है, इसलिए यह लघु अवधि का उपाय ही है।

एसबीआई इकॉनमिस्ट ने कहा कि एनएसएसएफ तीसरा विकल्प है। यह एक विशेष इकाई (एसपीवी) शुरू करने की तरह है जिसके जरिए सरकारों को वित्त का स्वायत्त स्रोत उपलब्ध कराया जा सकता है। राज्यों को एक बार फिर एनएसएसएफ से रियायती दर पर नकदी उपलब्ध कराई जा सकती है ताकि खुले बाजार पर उनकी निर्भरता कम की जा सके।