इनदिनों हॉप शूट्स नाम की सब्जी के खूब चर्चे हो रहे हैं, इस सब्जी के चर्चा में होने की खास वजह है इसकी कीमत। इंटरनेशन मार्केट में इस सब्जी की कीमत लाखों में हैं। भारत में इसकी खेती की शुरुआत बिहार के औरंगाबाद जिले करमडी निवासी अमरेश सिंह ने की है। फिलहाल वे ट्रायल के तौर पर इसकी खेती कर रहे हैं। यह एंटी आक्सीडेंट्स से भरपूर है, इसके उपयोग से त्वचा चमकदार होती है, यह टीबी, कैंसर और अनिद्रा जैसे रोगों में कारगर है।

 

करीब 6 साल से इस हॉप शूट्स की कीमत एक लाख रुपये प्रति किलो चली आ रही है। 38 साल के किसान अमरेश सिंह इसकी खेती भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर लाल की निगरानी में कर रहे हैं। उन्होंने इसकी ट्रायल खेती 5 कट्ठा जमीन पर शुरू की है, जो की 1350 स्क्वायर फिट का क्षेत्रफल है।

अमरेश ने करीब दो महीने पहले हॉप शूट्स के पौधे लगाए थे। अब ये पौधे बड़े हो रह हैं। इसका उपयोग एंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण में होता है। जोकि टीबी और कैंसर के इलाज में कारगर होती हैं। हॉप शूट्स के फूलों से बियर भी बनाई जाती है। इसे हर्बल दवा भी बनाई जाती है। सब्जी तौर पर भी इसे उपयोग किया जाता है। हॉप शूट्स में ह्यूमलोन और ल्यूपुलोन नामक के एसिड होते हैं जो कि कैंसर के इलाज में कारगर हैं। यह कैंसर सेल्स को खत्म करने का काम करता है। इससे बनी हर्बल दवा अनिद्रा और अपच, मानसिक तनाव, अवसाद की समस्या को भी ठीक करती है।

 

हॉप शूट्स को ऑर्डर पर उगाया जाता है, अमरेश का कहना है कि केंद्र सरकार इन दिनों इसकी खेती पर वैज्ञानिक रिसर्च करवा रही है। जिसके लिए वैज्ञानिकों से उन्हें लगातार मार्गदर्शन मिल रहा है। अमरेश ने हिमाचल प्रदेश से इसकी खेती की ट्रेनिंग ली थी। अभी वे इसे ट्रायल के तौर पर उगा रहे हैं। उनका मानना है कि हॉप शूट्स की खेती कामयाब होने पर किसानों के लिए नए रास्ते खुलेंगे। इसकी खेती के लाभ जानकर किसान अपनी पारंपरिक खेती छोड़कर इसकी खेती करके लाभ कमा सकेंगे।

अमरेश का कहना है कि अगर अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हॉप शूट्स की खेती को प्रोमोट करते हुए किसानों को जागरूक कर रहे हैं तो किसान चंद वर्षों में खेती का 10 गुना से ज्यादा लाभ कमा सकते हैं।

 मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 11वीं शताब्दी में हॉप शूट्स के खेती की शुरुआत हुई थी। पहले इसका उपयोग बीयर का टेस्ट स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट के तौर पर होता था। इसकी खेती यूरोपीय देशों जैसे ब्रिटेन, जर्मनी में की जाती है। भारत में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश इसकी खेती की गई थी। अब इसे अन्य स्थानों पर प्रयोग के तौर पर प्रमोट किया जा रहा है। 

दरअसल अमरेश इससे पहले भी कई औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती करते रहे हैं। वे जोखिम लेने से नहीं डरते। उनका कहना है कि आज जोखिम लेने से ही सफलता हाथ लगेगी। कामयाबी मिलेगी तो देश के लाखों किसानों के लिए रोल मॉडल साबित होगा। उन्हें उम्मीद है कि इसकी खेती एक माइल स्टोन का काम करेगी।