भोपाल। मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा नदी में मशीनों के जरिए रेत खनन पर रोक लगाई हुई है। नर्मदा में सिर्फ मैन्युअल तरीके से ही रेत खोदी जा सकती है। लेकिन सीहोर और रायसेन जिलों के रेत ठेकेदारों ने मानसून आने से पहले नर्मदा की 12 खदानों से महज डेढ़ महीने में 7 लाख 52 हजार 572 घनमीटर रेत खोद डाली। यानी 45 दिन के भीतर लगभग 42 हजार डंपर रेत।

बिना मशीनों के इतनी भारी मात्रा के हुई रेत खनन को लेकर सभी हैरान हैं। बिना मशीनों के यह कैसे संभव हो पाया यह किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा। प्रतिदिन का औसत देखा जाए तो करीब एक हजार डंपर रेत की खुदाई हुई है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने विदिशा निवासी रूपेश नेमा की याचिका पर संज्ञान लेते हुए बुधवार को सीहोर और रायसेन कलेक्टर को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ इसकी जांच कराने के आदेश दिए हैं। एनजीटी ने दोनों कलेक्टर से दो माह के भीतर जांच रिपोर्ट तलब की है।

एक डंपर में वैध रूप से 14 घनमीटर और ओवरलोडिंग कर 18 घनमीटर रेत भरी जाती है। इतने कम समय में भारी मात्रा में फावड़े-तगाड़ी से रेत खनन संभव ही नहीं है। जिससे यह सवाल होना स्वाभाविक है कि कहीं बिना इजाजत के ही चोरी-छिपे मशीनों से रेत खनन तो नहीं किया गया है? 

दरअसल, मध्य प्रदेश माइनिंग काॅर्पोरेशन ने 31 मार्च को सीहोर और रायसेन जिलों के रेत ठेकेदारों के साथ खनन एग्रीमेंट किया था। लेकिन इस बीच लॉकडाउन और कोर्ट विवाद के कारण खनन शुरू नहीं हो सका। 31 मई के बाद प्रदेश में खनन गतिविधि शुरू की गई। मानसून शुरू होते ही खनन पर रोक लग जाती है। बारिश देर से होने के कारण 17 जुलाई तक प्रदेश में खनन जारी रहना बताया गया है। सीहोर का ठेका हैदराबाद की पावरमैक कंपनी और रायसेन का ठेका भोपाल के राजेंद्र रघुवंशी के पास है।