शहडोल। मध्य प्रदेश के शहडोल में 2 दिनों के अंदर 6 नवजात शिशुओं की मौत होने की खबर ने सबको हैरान कर दिया है। जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत के लिए कुछ लोग डॉक्टरों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मामले पर शहर के लोग काफी आक्रोशित हैं वहीं विपक्ष ने मुद्दे पर जमकर हंगामा किया है। बवाल बढ़ता देख प्रदेश की शिवराज सरकार हरकत में आई और आनन-फानन में आपात बैठक बुलाई है।

जानकारी के मुताबिक शनिवार को जिले के कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय के पीआईसीयू (PICU) और एसएनसीयू (SNCU) में चार नवजात शिशुओं की मौत हो गई। इनमें से एक बच्चा एसएनसीयू में और तीन बच्चे पीआईसीयू में भर्ती थे। संदिग्ध परिस्थितियों में दम तोड़ने वाले बच्चों की उम्र तीन दिन से लेकर चार महीने तक थी। इनमें 3 दिन की निशा, तीन महीने का राज कोल, दो महीने का प्रियांश और चार महीने के पुष्पराज शामिल थे।

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हैरान करने वाली बात यह है कि जिला और अस्पताल प्रशासन एक दिन में चार बच्चों की मौत के बाद भी सावधान नहीं हुए, जिससे सोमवार की सुबह भी एक बच्चे की मौत हो गई। इससे पहले रविवार को भी एक नवजात ने दम तोड़ दिया था। कांग्रेस का आरोप है कि अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार बच्चों को भी फौरन इलाज़ नहीं मिल रहा है। इतना ही नहीं, मौत के बाद फाइलों को दबाने की कोशिश भी की जाती है।

हालांकि स्वास्थ्य विभाग किसी तरह की लापरवाही की आशंका से इनकार कर रहा है। जिला अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि सभी बच्चों की मौत अति गंभीर स्थिति में हुई है। उनकी हालत इतनी खराब थी कि उन्हें नहीं बचाया जा सका। प्रबंधन का कहना है कि अलग-अलग डॉक्टर इन इकाइयों में ड्यूटी कर रहे हैं, लापरवाही का कोई सवाल ही नहीं उठता। 

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बहरहाल, शिशुओं की मौत का मसला बढ़ता देखकर शिवराज सरकार हरकत में आई है और आनन-फानन में आपात बैठक बुलाई गई है। माना जा रहा है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ होने वाली इस आपात बैठक के बाद कई अधिकारियों पर गाज गिर सकती है। शहडोल के जिला अस्पताल में पहले भी इस तरह की स्थिति देखने को मिल चुकी है। पिछले साल भी इसी अस्पताल में एक दिन में 6 बच्चों ने दम तोड़ा था। हालांकि, तत्कालीन कमलनाथ सरकार में तत्काल एक्शन लेते हुए सिविल सर्जन और सीएमओ को उनके पद से हटा दिया था, वहीं स्वास्थ्य मंत्री को खुद जाकर स्थिति का जायजा लेने का निर्देश दिया था।