नई दिल्ली। एक बार फिर केंद्र के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है। विदेशों से करीब 200 लोगों ने एक बयान जारी किया है, जिसमें साझा तौर पर हस्ताक्षर कर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की गई है। कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करने वालों में से शिक्षाविद्, कनाडा के सामाजिक कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन नेता शामिल हैं। उन्होंने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग की है। 

हस्ताक्षरकर्ताओं ने तत्काल ही कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है। ताकि कोरोना के संकट काल में भी दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान अपने घरों की ओर लौट सकें। बयान में कहा गया है कि पिछले 6 महीने से किसान कंपकपाती ठंड और अब भीषण गर्मी में पुलिस के आंसू गैस के गोले और मार झेलते हुए भी कानूनों के विरोध में डटे हुए हैं। इनमें महिलाएं और बच्चे भी बड़ी संख्या में हैं। 

बयान में कहा गया है कि कोरोना की दूसरी लहर की आड़ में मोदी सरकार पब्लिक हेल्थ एक्ट को लागू कर इस आंदोलन को समाप्त कर देगी, जैसा उसने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों के साथ किया था। बयान में मोदी सरकार को कोरोना नियंत्रित न कर पाने का भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है। बयान में कहा गया है कि मोदी सरकार ने कोरोना के संकट को देखते हुए भी तमाम विशेषज्ञों के सुझावों को नजरअंदाज करते हुए अपने राजनीतिक एजेंडे की पूर्ति की। बयान में आंदोलन कर रहे किसानों के मुफ्त में टीकाकरण करने की भी मांग की गई है। 

उधर संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है। जिसमें मोर्चा ने मोदी सरकार से दोबारा वार्ता शुरू करने की मांग की है। संयुक्त मोर्चा ने प्रधानमंत्री मोदी को इस पूरे मसले में दखल देने की मांग करते हुए तीनों कानूनों को रद्द करने के लिए सरकार और किसानों के बीच वार्ता शुरू करने की मांग की है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि जिन कानूनों को किसानों के लिए बनाया गया, वो कानून अगर किसानों द्वारा ही नकार दिया गया हो, ऐसी स्थिति में किसी भी लोकतांत्रिक सरकार ने इन कानूनों को रद्द कर दिया होता। मोर्चा ने प्रधानमंत्री से कहा है कि दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की सरकार के मुखिया होने के नाते आपको वार्ता शुरू करनी चाहिए। ताकि तीनों कानूनों को रद्द किया जा सके और एमएसपी की गारंटी का कानून भी लागू किया जा सके।