पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के दस लाख नौकरियों के वादे को पूरी तरह बोगस बताया है। नीतीश कुमार ने कहा कि यह वादा सिर्फ जनता को भ्रमित करने के लिए दिया जा रहा है, लेकिन बीजेपी के 4 लाख नौकरियों और 15 लाख रोज़गार के अवसर के वादे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। नीतीश कुमार ने अपने भाषण में रोज़गार और नौकरियों की चर्चा सिर्फ खारिज करने वाले अंदाज़ में की, मानो वो इसे कोई मुद्दा ही नहीं मानते।

नीतीश कुमार ने खगड़िया के अंतर्गत आने वाली परबत्ता विधानसभा सीट पर प्रचार के दौरान दिए भाषण में ये बताने पर तो काफी ज़ोर लगाया कि अब से 15 साल पहले आरजेडी के राज में क्या-क्या नहीं हुआ। लेकिन नीतीश ये नहीं बता पाए कि अगर उसके बाद उनका 15 साल का राज बहुत शानदार रहा और बिहार का ज़बरदस्त विकास हुआ, तो प्रदेश में बेरोज़गारी अब भी इतना बड़ा मुद्दा कैसे बना हुआ है। बिहार के लोगों को पढ़ाई, कमाई और दवाई, तीनों के लिए दूसरे राज्यों का रुख क्यों करना पड़ता है?

बिहार चुनाव में इस समय रोज़गार सबसे बड़ा मुद्दा बनता नज़र आ रहा है। बीजेपी ने इसकी काट करने के लिए मुफ्त कोरोना वैक्सीन का वादा किया, लेकिन कुछ ही दिनों में बीजेपी का यह मास्टरस्ट्रोक सेल्फ गोल नज़र आने लगा। कुल मिलाकर पूरा चुनाव फिलहाल नौकरियों के मुद्दे पर ही शिफ्ट हो चुका है। ऐसे में विश्लेषकों का मानना है कि नौकरियों के वादे को बोगस बताकर खारिज करने वाला नीतीश कुमार का बयान के बाद राज्य के युवाओं में नीतीश कुमार के प्रति आक्रोश को और बढ़ा सकता है।

नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के दस लाख नौकरियों के वादे को तो बोगस बताकर खारिज कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री का यह बयान चुनाव में उनकी सहयोगी पार्टी बीजेपी पर भी लागू होता है ? क्योंकि इस चुनाव में बीजेपी तेजस्वी यादव के वादे के मुकाबले में चार लाख नौकरियां और 15 लाख रोज़गार के अवसर प्रदान करने का वादा कर रही है। उधर, नीतीश की सहयोगी पार्टी बीजेपी ने भी ये साफ नहीं किया है कि जिन 15 लाख रोज़गार के अवसरों की बात वो कर रही है, उसमें प्रधानमंत्री मोदी की परिभाषा के मुताबिक चाय-पकौड़े और पान-पंक्चर की दुकानें शामिल हैं या नहीं।