नई दिल्ली। डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने कृषि कानूनों और किसान आंदोलन के मसले पर मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की है। एनसीपी प्रमुख पवार ने कहा है कि किसान मोदी सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर किसान और खेती सरकार की प्राथमिकता होती तो आज जैसे हालात पैदा ही नहीं होते। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान वे और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी कृषि के क्षेत्र में कुछ सुधार करना चाहते थे, लेकिन वो जो सुधार करना चाहते थे और जिस ढंग से करना चाहते थे, वो मौजूदा सरकार से बिलकुल अलग है।

ऐसे बीजेपी नेता किसानों से बात करें जो कृषि क्षेत्र को समझते हैं: पवार 

शरद पवार ने किसानों के साथ वार्ता में शामिल मौजूदा केंद्रीय मंत्रियों की समझदारी पर भी यह कहते हुए सवाल उठाया कि सरकार अगर मसले को सुलझाना चाहती है, तो उसे बातचीत में बीजेपी के ही उन नेताओं को आगे करना चाहिए जो खेती-किसानी के मुद्दे को गहराई से समझते हैं। उन्होंने इस बारे में और पूछे जाने पर कहा कि “मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता….लेकिन ऐसे लोग ज़रूर हैं जो कृषि के क्षेत्र को उतनी अच्छी तरह नहीं जानते-समझते।”

किसान आंदोलन के पीछे राजनीतिक दलों का हाथ होने का मोदी का आरोप गलत : पवार 

देश के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी राजनेताओें में शामिल शरद पवार ने ये तमाम बातें समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कही हैं। शरद पवार ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के इस आरोप में कोई सच्चाई नहीं है कि किसानों के आंदोलन के पीछे राजनीतिक दलों का हाथ है। किसान अपने आंदोलन से राजनीतिक दलों को दूर ही रखना चाहते हैं और वे यह बात बार-बार साफ़ कर चुके हैं। इसके बाद भी प्रधानमंत्री का इस तरह विपक्ष पर आरोप लगाना पूरी तरह ग़लत है। पवार ने कहा कि सरकार का यह दावा भी ग़लत है कि कृषि क़ानूनों का विरोध सिर्फ़ देश के कुछ ही किसान कर रहे हैं। सच तो यह है कि देश के किसानों बहुत बड़ा हिस्सा आंदोलित है और सरकार को चाहिए कि उनकी बातों को गंभीरता से ले।

मैं और मनमोहन सिंह भी कृषि में सुधार चाहते थे लेकिन ऐसे बदलाव नहीं : पवार 

यह पूछे जाने पर कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया है कि मनमोहन सिंह अगुआई में यूपीए सरकार में तत्कालीन कृषि मंत्री के रूप में पवार कृषि सुधार चाहते थे लेकिन राजनीतिक दबाव में ऐसा नहीं कर सके, एनसीपी नेता ने कहा कि वे निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में कुछ सुधार चाहते थे लेकिन ऐसे नहीं जिस तरह से भाजपा सरकार ने किया है।

पवार ने कहा कि खेतीबाड़ी का विषय गाँवों से जुड़ा है और इस बारे में कोई भी नीति राज्यों के साथ सलाह-मशविरा करके ही बनाई जा सकती है। कृषि के क्षेत्र को दिल्ली से हांककर नहीं चलाया जा सकता। इसका सरोकार गाँवों में रहने वाले मेहनतकश किसानों से है और इस विषय में राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी ज़्यादा बड़ी है। पवार ने कहा कि इसीलिए मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जब उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार लाने की सोची तो उसके लिए पहले तमाम राज्यों के कृषि मंत्रियों और कृषि विशेषज्ञों के साथ सलाह-मशविरे की प्रक्रिया शुरू की गई। जब अधिकांश राज्यों के कृषि मंत्रियों के मन में कुछ शंकाएँ नज़र आईं तो ये मेरी और केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी थी कि आगे बढ़ने से पहले उन शंकाओं का समाधान किया जाए, उन्हें साथ लिया जाए।

बिना सलाह मशविरे के थोपे गए कृषि कानून : पवार 

पवार ने आरोप लगाया कि उनके दौर में किए गए ऐसे प्रयासों से अलग इस सरकार ने इन बिलों को तैयार करने से पहले न तो राज्यों से सलाह-मशविरा किया और न ही उनके कृषि मंत्रियों की कोई बैठक बुलाई। पवार ने कहा कि सरकार को किसानों से बातचीत करके उनकी चिंताओं को दूर करने का काम कृषि क़ानून लाने से पहले करना चाहिए था। पूर्व कृषि मंत्री ने मोदी सरकार के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोकतंत्र में कोई सरकार ये कैसे कह सकती है कि वो अपनी लाइन नहीं बदलेगी या किसी की नहीं सुनेगी? उन्होंने आरोप लगाया कि एक तरह से सरकार ने इन कृषि क़ानूनों को जबरन थोपने का काम किया है। अगर सरकार सबके साथ सलाह-मशविरा किया होता और राज्य सरकारों को भरोसे में लिया होता आज जैसी नौबत ही नहीं आती।

बुधवार की बातचीत के नतीजों का इंतज़ार : पवार 

किसान आंदोलन के सिलसिले में विपक्ष की भविष्य की सोच के बारे में पूछे जाने पर पवार ने  कहा कि हम बुधवार को किसानों और सरकार के बीच होने वाली वार्ता के नतीजों का इंतज़ार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस वक़्त तो मैं सरकार को सिर्फ़ यही सलाह दे सकता हूँ कि उसे भयानक ठंड में सड़क पर बैठे किसानों के साथ सचमुच में गंभीरता के साथ बातचीत करनी चाहिए।