सुप्रीम कोर्ट की अवमानना मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने अपने नए बयान में अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बयान पर दोबारा विचार करने के लिए दो दिन का समय दिया था लेकिन अपने आदेश में कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि अपने ट्वीट के लिए माफी मांगना उनके विवेक और जिस सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को ऊंचा उठाने के लिए काम किया, उसकी अवमानना होगी। भूषण ने कहा कि उनके द्वारा किए गए ट्वीट उनके विश्वास को दर्शाते हैं और कोर्ट की बेहतरी के लिए सकारात्मक आलोचना के उद्देश्य से किए गए थे, उन्होंने किसी भी तरह से ना तो कोर्ट की अवमानना की है और ना ही चीफ जस्टिस का अपमान किया है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले 25 अगस्त को फैसला सुनाएगा। इससे पहले प्रशांत भूषण का यह बयान आया है। इससे पहले 20 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने प्रशांत भूषण से अपने बयान पर दोबारा विचार करने के लिए कहा था। प्रशांत भूषण ने उस समय कहा था कि ऐसा करने से कोर्ट के समय की बर्बादी होगी। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के एक बयान को उद्धृत करते हुए कहा था कि वे अपने ट्वीट के लिए, जो उनके विश्वास को दर्शाते हैं ना तो माफी मांगने वाले हैं और ना ही कोर्ट से कोई दया की उम्मीद रखते हैं। 

केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से प्रशांत भूषण को सजा ना देने की अपील की थी। कोर्ट ने अपने आदेश की कॉपी में अटॉर्नी जनरल की उपस्थिति को दर्ज नहीं किया था। हालांकि, बाद में हुई आलोचना के बाद कोर्ट ने आदेश की संशोधित कॉपी में उनकी उपस्थिति को दर्ज किया। 

प्रशांत भूषण ने अपने नए बयान में कहा कि यह उनका सौभाग्य रहा है कि उन्होंने इतने लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट की सेवा की और जनहित के बहुत से जरूरी मुद्दों को उठाया। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात का संज्ञान है कि कोर्ट ने जितना मुझे दिया है उतना मैंने उसके लिए नहीं किया। मैं सुप्रीम कोर्ट का बहुत सम्मान करता हूं। 

उन्होंने मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट को आशा की अंतिम किरण बताते हुए कहा कि इसे भारतीय लोकतंत्र का सबसे शक्तिशाली कोर्ट उचित ही कहा जाता है और यह दुनिया के दूसरे कोर्ट के लिए मिसाल है। 

उन्होंने कहा कि इस मुश्किल समय में सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना है कि देश संविधान और कानून के शासन से चले ना कि सत्ताधारियों की मर्जी से। भूषण ने कहा कि इस कोर्ट के एक अधिकारी के रूप में यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे कोर्ट को बताएं कि वह अपने रास्ते से भटक रहा है और ट्वीट करके उन्होंने जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।