दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आज मराठा आरक्षण से जुड़े मामले पर फैसला सुनाते हुए असंवैधानिक ठहरा दिया है।  सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा है कि अब से किसी नए मराठी कैंडिडेट को शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र आरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट ने कहा है कि पहले से जो भी नियुक्तियां हो चुकी हैं, उनमें किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। वो पहले जैसी ही रहेंगी, लेकिन नई नियुक्तियों को अब आरक्षण नहीं मिलेगा।


इसी के साथ कोर्ट ने साथ ही कहा कि मराठा समुदाय कोई पिछड़ा समुदाय नहीं है इसलिए इसे सामाजिक, शैक्षणिक रूप से पिछड़ा नही माना जा सकता। मराठा समुदाय को पिछड़ा मानना महाराष्ट्र राज्य कानून में समानता के अधिकार का उल्लंघन करने जैसा है। जानकारी के मुताबिक कोर्ट में फैसला लेते समय जजों के विचार मेल नहीं खा रहे थे लेकिन अंत में पांचों जजों ने मराठा आरक्षण को गलत बताया है, क्योंकि आरक्षण पिछड़े वर्गों को दिया जाता है जबकि मराठा पिछड़े वर्ग में शामिल नहीं है।


कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 इंदिरा साहनी फैसले को नकार दिया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति या मामला पेश नहीं किया है।

इस फैसले में कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि राज्यों को यह अधिकार नहीं कि वे किसी जाति को सामाजिक-आर्थिक पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लें। कोर्ट ने कहा कि राज्य सिर्फ ऐसी जातियों की पहचान कर केंद्र से सिफारिश कर सकते हैं। सिर्फ राष्ट्रपति उस जाति को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के निर्देशों के मुताबिक सामाजिक आर्थिक पिछड़ा वर्ग की लिस्ट में जोड़ सकते हैं।