कोरोना महामारी के बीच शुक्रवार को विश्वभर में पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। इस वर्ष का पर्यावरण दिवस काफी अनोखा है क्योंकि हर बार की तरह लोग नुक्कड़, नाटक, भाषण या अन्य कार्यक्रम व जागरूकता अभियान में शरीक होने के बजाए घरों में बंद हैं इसलिए यह पर्यावरण दिवस असल मायनों में पर्यावरण को समर्पित लग रहा है। कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए दुनियाभर के अधिकतर देशों में जारी लॉकडाउन का पर्यावरण पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे पेड़, पौधे, वनस्पति, जलीय जीव, जंगली जानवर सभी को राहत मिली है। एक ओर जहां विकासोन्मुख मानव जाति घर में बंद है तो दूसरी ओर बाकी सारी प्रजातियां जैसे जानवर, पंछी, पेड़-पौधे अपनी धुन में मस्त हैं। इस बार का पर्यावरण दिवस अपने थीम 'टाइम फ़ॉर नेचर' का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।

दरअसल, कोरोना वायरस ने मनुष्यों के दौड़-भाग वाली जीवन को जो ब्रेक दिया है उससे प्रकृति को अपने जख्म भरने का समय मिला है। इस वायरस ने परोक्ष रूप से हवा, पानी, पृथ्वी सभी को शुद्ध कर दिया है। पिछले 2 महीने से ज्यादा समय से मनुष्य की प्रकृति में दखलअंदाज़ी काफी कम हुई है इस वजह से प्रकृति को भी निखरने का समय मिला और वह खुल कर अपने नैसर्गिक रूप में सामने आई है। यहां तक कि वातावरण को ध्वनि प्रदूषण रहित बना दिया है। चूंकि इस बार के पर्यावरण दिवस का थीम जैव विविधता और टाइम फ़ॉर नेचर है, इसलिए अगर हम इसपर भी नजर डालें तो कोरोना का सकारात्मक प्रभाव ही दिखेगा।

स्वछंद गगन में बेखौफ उड़ रहे हैं पंछी

लॉकडाउन से एयर पॉल्युशन में काफी हद तक कमी आई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 88 प्रमुख शहरों के हवाएं इस दौरान शुद्ध हुई हैं। चूंकि हवा को प्रदूषित करने वाले मुख्य कारक जैसे फैक्ट्री, कारखाने, मोटर गाड़ियां आदी लगभग बंद पड़ी हुई हैं नतीजन पिछले 2 महीनों में हवा शुद्ध होने से पंछियों को राहत मिली है। वे अब स्वछंद गगन में बेखौफ होकर उड़ रहे हैं।

संपन्न हुआ जलीय जीवन

लॉकडाउन ने जलीय जीवों के जीवन में काबिले तारीफ तब्दीली लाई है। देशभर के नदी, नाले, तलाब, पोखर, झील व नहरें शुद्ध हो चली हैं। बताया जा रहा है कि पिछले 2 महीनों में गंगा 50 फीसदी तो यमुना 31 फीसदी शुद्ध हुई है नतीजन जलीय जीव भी अब स्वस्थ्य रहेंगे। कई जगहों पर देखा गया है कि जो जीव किनारे पर नहीं आते थे वे अब आने लगे हैं। इंसानी आवागमन कम होने, फैक्टरियों का कचड़ा न गिरने व नाव वगैरह के कम चलने से अब समुद्री जीवन भी संपन्न हो रहा है।

हरे-भरे हो रहे वनस्पति

इस दौरान निर्माण कार्य आंशिक तौर पर रुके हुए हैं, प्रदूषण में कमी आई है व नदियों के पानी साफ हुए हैं जिस वजह से पेड़, पौधे व वनस्पतियां हरे-भरे हो रहे हैं। इसके कारण जंगली जीवों का बसेरा भी समृद्ध हुआ है और वे भी अब स्वतंत्र रूप से घूमते पाए जा रहे हैं। मनुष्यों के दखलअंदाज़ी में अचानक आई इस कमी के कारण पेड़ पौधों को ऑक्सिजन उत्पादन करने का भी मौका मिल रहा है जिससे वन्य जीवों के स्वास्थ्य पर भी लॉन्ग टर्म में फायदा मिलेगा।

कोरोना के जाते हीं खो जाएगी यह रौनक?

पर्यावरण के इस सकारात्मक पहलू को कोरोना के जाते ही खत्म होने का डर है। आशंका है कि कोरोना पर मनुष्य विजय प्राप्त करते ही आवागमन व प्रकृति का शोषण फिर से शुरू कर देगा जिससे वन्य जीवों, वनस्पतियों, जलीय जीवों के जीवन में आई यह रौनक समाप्त हो जाएगी और सबकुछ पहले जैसा बुरा हो जाएगा।