केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में बीजेपी कमजोर हो रही है। यह आरोप कांग्रेस ने नहीं लगाया है बल्कि इसका खुलासा सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक रघुराज सिंह कंसाना ने किया है। बीजेपी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में सिंधिया के कट्टर समर्थक रघुराज सिंह कंसाना ने कहा कि हमारे लिए ना प्रभारी मंत्री के पास समय है, ना ही सरकार के अन्य मंत्रियों के पास। जब कभी बात करते हैं तो सिर्फ हालचाल पूछते हैं।
अपनी ही सरकार और मंत्रियों के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ठीक नहीं। चुनाव आते ही उन्हें हमारी याद कैसे आ जाती है? जब हमारे सहयोग और परिश्रम से सरकार बनती है, तो फिर सत्ता में आने के बाद हमें क्यों नजरअंदाज किया जाता है? स्थानीय कार्यकर्ताओं और नेताओं की अनदेखी के चलते जमीनी स्तर पर पार्टी कमजोर हो रही है।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में गए तत्कालीन विधायक रघुराज सिंह कंसाना के बयान ने मुरैना जिले में बीजेपी के अंदरूनी मतभेद को उजागर कर दिया है। ऐसा ही एक बयान कुछ माह पूर्व बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने दिया था। सिंधिया समर्थक मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने एक कार्यक्रम में मंत्री सिंधिया के आगे ये मांग रखी थी कि वे सीएम डॉ. मोहन यादव से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक ग्वालियर के औद्योगिक विकास की मांग रखें। मंत्री तोमर ने कहा था कि हमने सिंधिया जी से कहा कि वे हमें भी साथ लेकर जाएं। हमने सिंधिया जी के सामने अपनी बात रखी है। आगे अगर जरुरत पड़ेगी तो मैं उनके दरवाजे पर भी बैठ जाऊंगा।
एक मंत्री का सार्वजनिक रूप से यह कहना आलोचना का केंद्र बना। सवाल उठे कि क्या मंत्री के रूप में उनकी इतनी हैसियत नहीं है कि वे अपनी की सरकार में विकास कार्य करवा सकें? यह बीजेपी में सिंधिया खेमे के घटते प्रभाव के उदाहरण माने गए तो शिवपुरी में बीते दो माह से चल रहा राजनीतिक घमासान भी का भी सिंधिया की कमजोर पड़ती राजनीतिक पकड़ माना गया। शिवपुरी नगर पंचायत की अध्यक्ष गायत्री शर्मा की कार्यप्रणाली से नाराज बीजेपी पार्षदों ने मोर्चा खोल दिया। खासबात यह है कि नगर पंचायत अध्यक्ष गायत्री शर्मा को सिंधिया समर्थक माना जाता है। आरोप है कि इसी वजह से वे साथी पार्षदों के विरोध को नजरअंदाज कर रही हैं।
दो माह से जारी इस विवाद में माना जा रहा था कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया स्थिति संभाल लेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं और विरोध मुखर करते हुए 18 पार्षदों ने सामूहिक इस्तीफे दे दिए। इन पार्षदों में 12 बीजेपी, 5 कांग्रेस और 1 निर्दलीय पार्षद हैं। बीजेपी के अभी 12 पार्षदों ने कोई फैसला नहीं किया है। अब बीजेपी संगठन पर निर्भर है कि वह सिंधिया समर्थक नगर पंचायत अध्यक्ष को हटाता है या 18 पार्षदों के इस्तीफे स्वीकार करता है। बीच का रास्ता भी निकाला जा सकता है। मगर, बयान और इस्तीफे की राजनीति ने सिंधिया के राजनीतिक किले में सेंध के कयासों को पुख्ता किया है।
संकेतों की राजनीति से कितना बदल पाएंगे मोहन यादव
एक चैनल के कार्यक्रम में जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से सवाल हुआ कि उन्हें कब पता चला कि वे मुख्यमंत्री बनने वाले हैं तो डॉ. यादव ने जवाब दिया, ‘‘मुझे 2013 में भी टिकट देने में राजनीतिक झंझटें आई हैं। मुझे पहले से मालूम था कि मैं कहां तक का खिलाड़ी हूं...।’’ अपनी राजनीतिक पारी पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री डॉ. यादव का यह जवाब उतना ही वायरल है जितना उनके कार्य।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव बीते कुछ समय से सांस्कृतिक संकेतों के परिवर्तन में जुटे हैं। गोपाल, गीता और गाय की बात करते हुए उन्होंने उज्जैन के बाद भोपाल में वैदिक घड़ी लगाई गई है। मंत्री विश्वास सारंग कह रहे हैं कि यह घड़ी सभी विधायकों को दी जानी चाहिए ताकि वे वैदिक समय का महत्व समझें। इसी तरह, कृष्ण की लीलाओं के महत्वपूर्ण अंश माखनचोरी पर आपत्ति जताते हुए सीएम ने कहा है, भगवान को चोर कहना गलत है। मुख्यमंत्री के इस संदेश को दूर तक पहुंचाने के लिए किताबों से माखनचोर शब्द हटाने की तैयारी है।
मुद्दा यह है कि इन सांस्कृतिक संकेतकों बदल देने से बतौर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की छवि में कितना निखार आएगा क्योंकि अंग्रेजी कैलेंडर के समानांतर ही विक्रम संवत सहित अन्य कई कैलेंडर हैं लेकिन उनका महत्व अंग्रेजी कैलेंडर के आगे कमतर ही है। इसीतरह कृष्ण पाथेय, गीत भवन जैसे कार्यों का अपना सांस्कृतिक महत्व है लेकिन माना जाता है कि ये कार्य एक मुख्यमंत्री की सर्वोच्च प्राथमिकता में नहीं हो सकते।
स्वयं को खिलाड़ी निरूपित कर रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सांस्कृतिक संकेतों को बदल देने के तरीकों से राजनीतिक कितनी चमक पाएगी और ये कदम कितने स्थाई साबित हो पाएंगे, यह भी बड़ा सवाल है। अन्यथा तो अंदेशा यही है कि ये कवायद तात्कालिक बदलाव साबित हो और समय के साथ भूला दिए जाएं जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों के नवाचार उनके जाते ही नजरअंदाज हो गए।
गाली का जवाब गाली, अनुशासन की बातें खाली
सीहोर से बीजेपी विधायक सुदेश राय का एक वीडियो वायरल हुआ है। मामला बीजेपी कार्यकर्ताओं के कांग्रेस कार्यालय पर प्रदर्शन के दौरान का है। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का पुतला जलाया तो कांग्रेस कार्यकर्ता भड़क गए। उन्होंने भी बीजेपी के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। दोनों दलों के कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए। इसी दौरान बीजेपी विधायक सुदेश राय ने गाली दे दी। कांग्रेस ने इस वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कांग्रेस ने पूछा है कि बीजेपी अपने विधायक पर कब कार्रवाई करेगी?
विधायक के व्यवहार और कार्रवाई के सवाल पर तो खुद बीजेपी संगठन आरोपों के घेरे में हैं। बीजेपी ने जून 2025 में पचमढी में शिविर आयोजित कर विधायकों और नेताओं को संयम से बोलने का पाठ पढ़ाया था। फिर जुलाई में प्रदेश अध्यक्ष बनते ही हेमंत खंडेलवाल ने भी अनुशासन को सबसे ऊपर रखा। उन्होंने कुछ सख्त कार्रवाइयां भी कि लेकिन उनके न्याय पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बीजेपी संगठन पर आरोप लग रहे हैं कि वह रसूख देख कर कार्रवाई कर रहा है। जैसे विधायक पुत्र, विधायक का भतीजा, खुद विधायक भी अनुशासन तोड़ रहे हैं तो पार्टी या तो इसे नजरअंदाज कर रही है या उन पर सख्ती कार्रवाई के नाम पर केवल हिदायतें दी जा रही है। खुद बीजेपी नेताओं में आक्रोश है कि इंदौर विधायक गोलू शुक्ला के बेटे द्वारा देवास और महाकाल मंदिर में किया गया विवाद हो या देवास नाके पर हाटपिपलिया से बीजेपी विधायक मनोज चौधरी के भतीजे द्वारा की गई तोड़फोड़ या पूर्व में हुए ऐसे ही मामलों पर संगठन की कार्रवाई खानापूर्ति जैसी ही होती है कि जबकि मंडल अध्यक्ष जैसे मैदानी पदाधिकारी का पद छिन लिया जाता है।
जीतू पटवारी: बदलाव, बयान और बवाल
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी हमेशा चर्चा में रहते हैं। बीते कुछ समय से वे फिर चर्चा में है। इसबार केवल सत्ता पक्ष पर हमले के कारण ही नहीं बल्कि कांग्रेस में हो रहे बदलाव तथा अपने बयान और उससे उपजे बवाल से वे सुर्खियों में हैं। कांग्रेस ने संगठन सृजन अभियान के तहत मैदानी स्तर तक काम किया और सर्वे, संवाद और आकलन के आधार पर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की गई। कई जिलों की बागडोर नए चेहरों को सौंप दी गई।
जिलाध्यक्षों में हुआ बदलाव अप्रत्याशित था। कहा गया कि यह बदलाव उनकी जानकारी के बिना ही केंद्रीय स्तर पर हुआ। जबकि खुद पटवारी पर आरोप लगे कि उन्होंने राजनीतिक पेंच फसाए। इन आरोपों पर उन्होंने पत्रकार वार्ता कर स्पष्टीकरण भी दिया। लेकिन यह तो आरोप लगा ही कि बतौर प्रदेशाध्यक्ष वे संगठन के निर्णय को स्थापित नहीं कर सके और नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति पर विवाद दिल्ली तक पहुंचा।
अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने शराब और महिलाओं को लेकर बयान दे दिया। बयान के तथ्य को लेकर वे घिर गए और बीजेपी महिला मोर्चा ने उनके बयान को महिला विरोधी बता कर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसबीच, ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ यात्रा पर निकले जीतू पटवरी की कार पर रतलाम में पत्थर फेंका गया तो नीमच में कंकर, बोतल और काली स्याही। कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाते हुए प्रदेशाध्यक्ष की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है।
इसतरह, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी बीते कुछ समय से राजनीतिक मोर्च पर सक्रिय हैं तो विवादों से भी घिरे रहे हैं। देखना होगा, उनका यह रवैया बदनामी भर होगा या पार्टी का इससे कुछ फायदा भी होने वाला है।