दीपावली का पर्व है और हर ओर उत्सव छाया हुआ है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं हैं। वहां फूट रहे पटाखों से ज्यादा चर्चा उनसे उपजी कालिख की है। इस दिवाली पर राजनीति और पत्रकारिता के गठजोड़ और इससे भ्रष्ट आचरण के धमाकों की गूंज है तो दूसरी तरफ राजनीतिक संन्यास जी रही पूर्व उमा भारती को लेकर एक वीडियो वायरल हो गया। दोनों मामलों के कर्ताधर्ता और उनके मंतव्य संदेह के घेरे में हैं। शिकायत थाने तक पहुंच चुकी है। पुलिस आरोपी को खोज सकती है मगर इस काम का उद्देश्य बदनाम करना था और यह काम तो हो गया है।
बीते कुछ दिनों से मध्य प्रदेश के पत्रकार अपनी पत्रकारिता नहीं भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण चर्चा में हैं। करीब 100 पत्रकारों के नामों की सूची सोशल मीडिया पर वायरल हुई इसमें पत्रकारों के नाम, उनके संस्थान का नाम और फोन नंबर के साथ एक आंकड़ा लिखा हुआ इै। सूची वायरल होते ही सवाल उठे कि ये क्या है और क्यों हैं। आरोप लगे और बड़े पत्रकारों का नाम भ्रष्टाचार से जोड़ दिया गया। सूची के वायरल होते ही मध्य प्रदेश के पत्रकारों की ईमानदारी, नैतिकता और उनके कामकाज का उद्देश्य कठघरे में खड़ा कर दिया गया।
इसकी गूंज पूरे प्रदेश और दिल्ली तक सुनाई दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा सोशल साइट पर लिखा कि मध्य प्रदेश तो अजब और गजब है। प्रदेश के पत्रकारों की 4 पन्नों की सूची वायरल है। कहा जा रहा है कि यह ट्रांसपोर्ट विभाग की मंथली पेमेंट लिस्ट है। 1996 की राजनीतिक ‘हवाला कांड’ सूची की तरह इसमें छोटे और बड़े सब नाम हैं। मुझे इसकी सत्यता पर भरोसा नहीं।
राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने लिखा है, ‘कहते हैं यह बीजेपी के आंतरिक विरोधाभास का परिणाम है। मुख्यमंत्री मोहन यादव जी के विरोधियों का खेल है। इसका परिणाम बहुत घातक है। यह पत्रकार बंधुओं के सम्मान और प्रतिष्ठा पर सीधा आक्रमण है। लोग बहुत आहत होंगे। मध्य प्रदेश के डीजीपी और पुलिस विभाग इसका संज्ञान लें और इस कलंकित आरोप की सचाई सामने लाए।’
जबकि इस पोस्ट पर प्रतिक्रिया पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने लिखा, ‘यह आपका और कांग्रेस का दृष्टिकोण है जो मध्य प्रदेश का मजाक उड़ा रहा है और पत्रकारों का अपमान करने पर आमादा है। विपक्ष के लिए इतना नीचे गिरना ठीक नहीं है।’
सांसद विवेक तन्खा की तरह ही कई लोग हैं जिन्होंने इसके पीछे के उद्देश्यों और कारणों की पड़ताल जरूरी बताई। इस मामले में सूची में नाम वाले पत्रकारों ने दु:खी मन से क्राइम ब्रांच में शिकायत की है। एफआईआर के अनुसार, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि पत्रकारों के नाम वाली एक सूची ‘सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जिसमें परिवहन विभाग के साथ अवैध वसूली और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं।’
पुलिस जांच करेंगी और उन लोगों से भी पूछताछ करेगी जिन्होंने सूची वायरल की। बात पत्रकारिता और पत्रकारों की है और इस मुद्दे पर और राजनीति चरम पर है। राजनेता एक दूसरे पर पत्रकारों को बदनाम करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि पत्रकार भी कई खेमों में बंटे हुए हैं।
एक तरफ पत्रकार हैं तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती। उमा भारती पर भ्रष्टाचार को लेकर एक यूट्यूब पर रील वायरल हुई। उसमें कहा गया कि 2000 बैच की आईपीएस दीपा दिवाकर मौदगिल उर्फ डी रूपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के घर नौकरानी बनकर पहुंच गई थी और जैसे ही आईपीएस ने भ्रष्ट आचरण देखा मुख्यमंत्री को उनके ही घर से गिरफ्तार कर लिया।
इस वीडियो पर उमा भारती के निज सचिव उमेश गर्ग ने एफआईआर करवाते हुए कहा है कि यह वीडियो जानबूझकर उमा भारती और बीजेपी की छवि खराब करने के इरादे से बनाया गया है। मुद्दा यह है कि जब उमा भारती अभी सक्रिय राजनीति में नहीं हैं तो कौन है जो उन्हें निशाना बना रहा है? उमा भारती और मध्य प्रदेश के पत्रकार किसकी राजनीतिक दांवपेंच का शिकार बन गए है।
पचौरी के हाल बुरे फिर भी निर्मला सप्रे न माने
राजनीति के मंच पर कुछ निर्णय मजबूरी में लिए जाते हैं तो कुछ निर्णय महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। मध्यप्रदेश में इनदिनों ऐसे ही दो राजनीतिक निर्णयों की चर्चा है। कांग्रेस सरकार और संगठन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी और बीना से विधायक निर्मला सप्रे के निर्णयों को जोड़ कर राजनीतिक निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गए थे। वे कांग्रेस में अपनी उपेक्षा से नाराज बताए जा रहे थे। अब बीजेपी में उनके महत्व को लेकर तंज कसे जा रहा है।
इस तंज का कारण बीजेपी द्वारा उन्हें लगातार नजरअंदाज करना है। पार्टी ने बुधनी और विजयपुर विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए अपने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। इस सूची में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित बड़े-छोटे नेताओं के नाम है लेकिन सुरेश पचौरी का नाम गायब है। जबकि सुरेश पचौरी का प्रभाव क्षेत्र भोजपुर तो बुधनी के करीब है। बीजेपी के इस निर्णय पर कांग्रेस के उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि जो सुरेश पचौरी कांग्रेस में रहते हुए टिकट दिलाने की क्षमता रखते थे, वे बीजेपी में जाकर लुप्त हो गए हैं। बीजेपी में उनका नाम तक स्टार प्रचारकों में शामिल नहीं किया गया, जबकि उनके जूनियर नेताओं का नाम है। बीजेपी में जाना चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात जैसा है।
कई लोगों को लगता है कि कटारे की बात सही है और सुरेश पचौरी के साथ बीजेपी में न्याय नहीं हो रहा है।
एक तरफ तो उपेक्षा की यह स्थिति है और दूसरी तरफ सागर के बीना से विधायक निर्मला सप्रे तय नहीं कर पाई हैं कि कांग्रेस में रहे या बीजेपी में जाएं। कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने निर्मला सप्रे पर दलबदल का आरोप लगा कर उनकी सदस्यता निरस्त करने की मांग की तो विधानसभा ने सवाल पूछा। इसके जवाब में निर्मला सप्रे ने यह जरूर कहा कि उन्होंने बीजेपी की सदस्यता नहीं ली है लेकिन वे लगातार बीजपी के कार्यक्रमों में दिखाई दे रही हैं। उन्होंने कहा कि मेरे लिए प्राथमिकता बीना का विकास है।
विकास की बात है तो सरकार ने अब तक बीना को जिला बनाने सहित निर्मला सप्रे की अन्य मांगों पर कोई निर्णय नहीं लिया है। अब तो ऐसा कोई आश्वासन भी नहीं है। असल में यह उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा ही है जिसके लिए वे हर हाल में बीजेपी से जुड़ना चाहती हैं। इसीलिए कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे बीजेपी में जाने को आमादा हैं भले ही उनके सामने वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी जैसा उदाहरण भी है।
अफसरों का राजनीतिक चश्मा
राजनेताओं के गुण-भाग अपनी जगह लेकिन मध्यप्रदेश में अफसरों ने भी राजनीतिक चश्मा लगा लिया है। कायदे से उनके लिए सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधि समान होने चाहिए लेकिन वे बीजेपी–कांग्रेस के जन प्रतिनिधियों में अंतर कर रहे हैं। मामला राजगढ़ और नीमच जिले का है।
मंगलवार को धनवंतरी जयंती के अवसर पर राजगढ़ जिला अस्पताल में नर्सिंग महाविद्यालय का भूमि पूजन किया जाना था। इस कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष चंदर सिंह सौंधिया जब मंच पर पहुंचे तो उन्हें शिलापट्ट पर अपना नाम नहीं मिला। इस बात से वे बेहद नाराज हो गए और उन्होंने अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई। जिला पंचायत अध्यक्ष की नाराजगी सही भी है। वे नाराज हो कर मंच से नीचे जमीन पर बैठ गए। हालांकि, बाद मछुआ कल्याण एवं मत्सय विभाग राज्यमंत्री नारायण सिंह पंवार और राजगढ़ कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा उन्हें मना कर मंच पर ले गए।
कार्यक्रम में प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया। जबकि यह अफसरों का प्राथमकि दायित्व है। दूसरी तरफ, नीमच में आयोजित मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में घूस लेने के आरोपी जावद जनपद अध्यक्ष गोपाल चारण को मंच पर बैठाया गया। जावद जनपद अध्यक्ष गोपाल चारण पर आरोप है कि डेढ़ साल पहले उन्होंने सरपंच से पचास हजार रिश्वत की मांग की थी। इसके बाद उज्जैन लोकायुक्त ने उन्हें रिश्वत लेते पकड़ा था।
इतना ही नहीं अक्टूबर की शुरुआत में नीमच की प्रभारी मंत्री महिला एवं बाल विकास विकास मंत्री निर्मला भूरिया के साथ बैठक में भी जावद जनपद पंचायत अध्यक्ष गोपाल चारण के होने पर सवाल उठे थे। तब मंत्री ने इस सवाल पर चुप्पी साध ली थी लेकिन खबरें थीं कि कलेक्टर के मना करने के बाद भी जनपद अध्यक्ष बैठक में शामिल हुए। अब वे मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में भी मंच पर पहुंच गए।
इससे यह आरोप तो पुख्ता होता है कि भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी की नीति में खोट है। जबकि ब्यूरोक्रेसी का ढंग भी ऐसा है कि वह सत्ताधारी दल के नेताओं को अधिकार से ज्यादा तवज्जो देती है और विपक्ष के नेताओं के प्रोटोकाल को भी भूला देती है।
कहां है कैलाश विजयवर्गीय सभी पूछते हैं...
नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कहां हैं? इनदिनों वे दिखाई नहीं दे रहे हैं। यूं तो इस सवाल के जवाब में बताया जा सकता है कि उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में नागपुर जैसे क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है। वे वहां व्यस्त हैं। दूसरा इंदौर में उनकी सक्रियता गिनाई जा सकती है। जैसे कि इस दीपावली पर अपने परिवार की परंपरा को निभाते हुए वे धनतेरस पर नंदा नगर स्थित अपनी पुश्तैनी किराना दुकान पर बैठे और ग्राहकों का किराना सामान तौला। यह सक्रियता अपनी जगह लेकिन सवाल तो यह है कि इंदौर और महाराष्ट्र में सक्रिय कैलाश विजयवर्गीय भोपाल की राजनीति से गायब क्यों हैं?
इंदौर में आयोजित कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समक्ष नशे के कारोबार पर अफसरों की कार्यप्रणाली को ही निशाने पर लिया था। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इंदौर के प्रभारी मंत्री भी हैं और वे ही गृहमंत्री भी हैं। ऐसे में सार्वजनिक मंच से कैलाश विजयवर्गीय की खरी-खरी कहना अचरज का विषय बनी। राज्य सरकार ने वीरांगना रानी दुर्गावती की पहली राजधानी सिंग्रामपुर में विशेष कैबिनेट बैठक की इसमें कैलाश विजयवर्गीय नहीं थे।
एक तरफ अपने क्षेत्र में बीजेपी के सदस्यता अभियान में सबसे ज्यादा सदस्य बनाने, नागपुर में सक्रिय चुनाव अभियान संचालित करने और इंदौर की हर छोटी-बड़ी गतिविधि में उपस्थित रहने वाले कैलाश विजयवर्गीय का सरकार के कामकाज और राजधानी से दूरी कई तरह के कयासों को जन्म तो दे ही रही है।