पुरुषों के मुकाबले जिन देशों को महिला नेताओं ने नेतृत्व दिया, वहां कोरोना वायरस को लेकर स्थितियां बेहतर तरीके से संभाली गईं। सेंटर फॉर इकॉनमिक पॉलिसी रिसर्च एंड वर्ल्ड इकॉनिमक फोरम की रिसर्च में सामने आया है कि महिला राष्ट्राध्यक्षों ने अपने देश में कोरोना वायरस लॉकडाउन को जल्दी लागू किया और कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को पुरुष राष्ट्राध्यक्षों के मुकाबले कर दिया। इन महिला राष्ट्राध्यक्षों में न्यूजीलैंड की जेसिंडा आर्डर्न, फिनलैंड की सना मरीन, डेनमार्क की मेट्टे फ्रेडिरेकसेन, जर्मनी की एंजेला मर्केल, ताइवान की साइ इंग वेन और बांग्लादेश की शेख हसीना का नाम प्रमुख है।

इस रिसर्च में 194 देशों का विश्लेषण किया गया है। रिसर्च के मानकों में देश की जीडीपी, कुल जनसंख्या, जनसंख्या घनत्व, उम्रदराज व्यक्तियों का अनुपात, अंतरराष्ट्रीय यात्रा संबंधी पहलू, समाज में लैंगिक समानता के स्तर और वार्षिक स्वास्थ्य खर्च को शामिल किया गया है। रिसर्च में पाया गया कि महिला और पुरुष राष्ट्राध्यक्षों के नेतृत्व वाले देशों में कोरोना वायरस को लेकर अंतर साफ दिखता है।

उदाहरण के तौर पर न्यूजीलैंड और आयरलैंड की जनसंख्या पचास लाख से कम है लेकिन जहां न्यूजीलैंड में कोरोना वायरस से अब तक 22 लोगों की मौत हुई है, वहीं आयरलैंड में मरने वालों की संख्या दो हजार के करीब पहुंच गई है।

इसी तरह जर्मनी और यूके की तुलना की गई है। जर्मनी में चांसलर एंजेला मर्केल के नेतृत्व में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या 10 हजार से कम है, वहीं बोरिस जॉनसन के नेतृत्व में यूके में अब तक 40 हजार से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

बांग्लादेश और पाकिस्तान की तुलना करने पर सामने आया है कि जहां शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश में तकरीबन चार हजार लोगों ने कोरोना वायरस से अपनी जान गंवा दी है, वहीं इमरान खान के नेतृत्व में कोरोना वायरस से पाकिस्तान में छह हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

इस रिसर्च की सह लेखिका सुप्रिया गरीकपती ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान द गार्जियन को बताया, “हमारे परिणामों में यह साफ है कि महिला नेताओं ने आशंकित मौत के खतरे देखते हुए ना केवल जल्द बल्कि निर्णायक कदम उठाए। लगभग सभी तुलनाओं में यह सामने आया है कि पुरुष नेताओं के मुकाबले महिला नेताओं ने जल्दी लॉकडाउन किया और इससे बहुत सारे लोगों की जान बची।”

रिसर्च की खास बात यह है कि इसमें उन देशों की ही तुलना की गई है जो जनसंख्या से लेकर दूसरे पहलुओं में लगभग एक समान हैं। फिर चाहे बात जीडीपी की हो या फिर स्वास्थ्य व्यवस्था और जनसंख्य घनत्व की।

रिसर्च में सामने आया है कि पुरुषों के मुकाबले महिला नेताओं ने लोगों की जान बचाने के लिए जल्दी लॉकडाउन किया और ऐसा करके वे आर्थिक रिस्क उठाने से नहीं हिचकिचाईं।

सुप्रिया ने कहा कि पुरुषों के मुकाबले महिला नेताओं के नेतृत्व का अंतर ना केवल सार्थक है बल्कि व्यवस्था में झलकता भी है। उन्होंने कहा कि इस संकट में महिलाओं के नेतृत्व वाले देश बेहतर स्थिति में हैं और उनके द्वारा उठाए गए कदमों से दूसरे देशों को सबक लेना चाहिए।