रायपुर। छत्तीसगढ़ के महुए की खुशबू अब विदेशों तक पहुंच चुकी है। प्रदेश से 20 क्विंटल महुए की पहली खेप इंग्लैंड भेजी जा चुकी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और वनमंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में प्रदेश के वनवासियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से यह संभव हुआ है। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर वनमंडल से 20 क्विंटल महुआ इंग्लैंड के स्काटलैंड यार्ड में दोगुने दाम पर बेचा गया है।

महुए के इस नए बाजार को लेकर संग्राहकों के साथ साथ पूरा वन विभाग काफी उत्साहित है और अब अगले साल और ज्यादा महुआ विदेशों में भेजने की तैयारी की जा रही है।

वन मंडलाधिकारी बलरामपुर लक्ष्मण सिंह से मिली जानकारी के अनुसार इंग्लैंड भेजने के लिए रघुनाथ नगर, धमनी और वाड्रफ नगर वन परिक्षेत्र के कई गांवों से महुआ संग्रहण किया गया था। 24 सितंबर को मुंबई बंदरगाह से इंग्लैड के स्काटलैंड यार्ड के लिए रवाना किया गया है। इंग्लैंड में इसकी बिक्री के लिए वहां के बर्किघम सायर की कंपनी की पीएटई से संपर्क कर पहले चरण में 100 किलोग्राम महुए का सैंपल भेजा गया।

कंपनी ने महुए का परीक्षण किया और इसकी क्वालिटी की तारीफ की। जिसके बाद कंपनी ने 2000 किलोग्राम महुआ फूल का आर्डर किया। इस महुए का संग्रहण मां महामाया स्व-सहायता समूह केसारी ने वन विभाग की निगरानी में किया है।

आपको बता दें कि महुआ संग्रहण के लिए जमीन से तीन फीट ऊपर ग्रीननेट बिछाकर हवा में ही फूलों को जमा किया जाता है। इस प्रक्रिया से महुआ फूलों में धूल-मिट्टी और गंदगी नहीं लग पाती, इसकी क्वालिटी अच्छी बनी रहती है। आपको बता दें कि वर्तमान में छत्तीसगढ़ में महुए का न्यूनतम समर्थन मूल्य 30 रूपए निर्धारित है, वहीं इस महुए को दोगुने दाम 60 रूपए प्रति किलो की दर से इंग्लैंड भेजा गया है।

वनोपज में महुआ एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, यह तरह का फूल होता है। छत्तीसगढ़ के उत्तरी भाग में महुआ के पेड़ प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। गर्मी के मौसम में इसके फूल पेड़ों से झड़ते हैं। राज्य में महुआ 30 से 32 रुपये प्रति किलो में बेचा जाता है। वन विभाग से जुड़ी स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा जमा किया गया महुआ विदेशों में दोगुने दाम पर बिकने से लाभ हो रहा है।

महुआ आदिवासी संस्कृति से भी जुड़ा है। आदिवासी महुआ फूलों को उबालकर इसका सेवन करते हैं। वहीं सूखे महुआ से देसी शराब बनती है। महुआ फूल के फल को डोरी कहते हैं इससे वनस्पति तेल बनता है। इंग्लैंड की कम्पनी द्वारा महुआ खरीदन से राज्य को लाभ हो रहा है। वहीं ग्रामीण भी सशक्त हो रहे हैं।

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ देश में सबसे ज्यादा लघु वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर करता है। इस बात का खुलासा इसी साल अप्रेल में 'द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया' (ट्राईफेड) द्वारा जारी आंकड़ों में किया गया था। अब इसी महुए को विदेशों में बेचकर राज्य को लाभ मिल रहा है।   

इस साल छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य में वृद्धि से आदिवासी अंचल में वनोपज संग्रहणकर्ताओं की आर्थिकी को काफी मजबूती भी मिल रही है, राज्य में वनोपज बेचने के लिए कोचिया या मिडिल मैन प्रथा भी खत्म की गई है। इस साल छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के आदिवासियों से सीधे 225 करोड़ रुपये की योजना लघु वनोपज यानि माइनर फॉरेस्ट प्रोड्यूस (एमएफपी) राज्य के आदिवासियों से खरीद रही है।