कहा जाता है फिल्में समाज का आइना होती हैं। जो समाज में होता है वह फिल्मों में दिख जाता है, शायद यही वजह कि भारतीय फिल्मों में महिलाओं के प्रति हिंसा के मुद्दे को पुरजोर तरीके समय-समय पर उठाया गया है। बात चाहे हालिया फिल्म थप्पड़ की हो या फिर गुजरे जमाने की फिल्में दामिनी या लज्जा की। दौर चाहे नया हो या पुराना महिलाओं के हालात नहीं बदले है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ गरीब तबके और मिडिल क्लास महिलाओं को ही हिंसा का सामना करना पड़ता है। दुनिया में संपन्न परिवारों की पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है।बॉलीवुड की कई फिल्में महिला हिंसा पर बेस्ड हैं, जिनमें महिलाएं अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ती नजर आती हैं। वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती हैं, खुद पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ ना सिर्फ जंग छेड़ती हैं बल्कि जीतती भी हैं। 25 नवंबर का दिन अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के तौर पर मनाया जाता है, इस मौके पर बालीवुड की चंद फिल्मों का जिक्र लाजमी है, जिनमें दिखाया गया है कि कैसे महिलाओं ने खुद पर घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, यौन हिंसा जैसे दर्द को सहा और दोषियों से डटकर मुकाबला किया।

महिला हिंसा पर बनी नवीनतम फिल्मों में से एक है तापसी पन्नू स्टारर थप्पड़, जिसे अनुभव सिन्हा ने डायरेक्ट किया था। फिल्म में दिखाया है कि पढ़ी लिखी तापसी अपनी मर्जी से हाउस वाइफ बनती है, पूरे परिवार का ख्याल रखती है। पति और ससुराल वालों की खुशी में खुद को बिसरा देती है। लेकिन एक दिन एक पार्टी के दौरान उसका पति सबके सामने उसे थप्पड़ जड़ देता है, जो उसे नागवार गुजरता है, वह उसके खिलाफ आवाज उठाती है और पति से तलाक ले लेती है।

यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं की व्यथा को फिल्म पिंक में दिखाया गया है। डायरेक्टर अनिरुद्ध रॉय चौधरी की यह फिल्म एक कानूनी थ्रिलर थी। जिसमें तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हारी, एंड्रिया तारियांग, अमिताभ बच्चन नजर आए हैं। पिंक की कहानी एक यौन शोषण पीड़िता के दर्द को बयां करती है। जिसमें दिखाया गया है कि कैसे उसे हमलावर की हत्या की कोशिश के लिए अन्यायपूर्ण तरीके से केस में फंसाया गया है। हालांकि उसके बचाव के लिए रिटायर्ट वकील आते हैं और महिला को न्याय मिलता है।

साल 2014 में रिलीज़ रानी मुखर्जी की फिल्म मर्दानी में भी महिला अधिकारों की लड़ाई को बखूबी दिखाया गया है। रानी मुखर्जी एक पुलिस आफिसर के रोल में होती हैं, वे ह्यूमन ट्रेफिकिंग का केस सुलझाती हैं। वे ह्यूमन ट्रैफिकर द्वारा अगवा की गई लड़की का पता लगाती हैं और उसे दरिंदों के चंगुल से छुडवाती हैं। 

 दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक को कैसे भूला जा सकता है, साल 2020 में आई फिल्म एसिड अटैक जैसे ज्वलंत मुद्दे पर बनी है। जिसमें एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी दिखाई गई है। आज भी कई लड़कियों को इस दंश को सहना पड़ रहा है। 

वहीं 2001 में आई फिल्म लज्जा जिसे लीजेंडरी डायरेक्टर राजकुमार संतोषी ने बनाया था, फिल्म में 4 शादीशुदा औरतों की कहानी दिखाई गई है, जिसमें वे पति द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित होती हैं, जब सब्र का बांध टूटता है तो वे चारों अपने हक के लिए लड़ती हैं।

रेखा और राकेश रोशन की फिल्म खून भरी मांग भी महिलाओं के प्रति हिंसा पर आधारित फिल्म थी, इस फिल्म में रेखा का पति उन्हें प्रताड़ित करता है और जान से मारने की कोशिश करता है लेकिन भाग्यवश वह बच जाती है इसके बाद अपना रूप बदलकर पति से बदला लेती है।

वहीं घरेलू हिंसा पर आधारित फिल्म प्रोवोक्ड सच्ची घटना पर आधारित फिल्म थी, जिसमें ऐश्वर्या राय एक पंजाबी गृहिणी और दो बच्चों की मां के रूप में नजर आती हैं। 10 साल तक पति से प्रताड़ित होने के बाद वे पति को जला देती है।

डायरेक्टर राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बनी फिल्म दामिनी अपने दौर की सुपरहिट फिल्म है। जिसमें घर में काम करने वाली एक महिला के साथ हुए यौन शोषण की कहानी पर आधारित है। इस फिल्म में मीनाक्षी शेषाद्रि उसे इंसाफ दिलाने के लिए न सिर्फ समाज बल्कि अपने परिवार के खिलाफ भी जाती हैं।

वहीं 1997 में आई फिल्म राजा की आएगी बारात में एक आदमी को थप्पड़ मारने की वजह रानी मुखर्जी को यौन शोषण का सामना करना पड़ता है, बाद में कोर्ट आरोपी को लड़की से शादी करने का आदेश देता है। फिल्म में दिखाया गया है कि शादी के बाद वही लड़की अपने ही दोषी के साथ एक ही छत के नीचे डटकर मुकाबला करती है।

अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस 25 नवंबर को हर साल मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के पीछे महिलाओं खिलाफ होने वाली हिंसा रोकने की कोशिशों को बल देना है। महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा रोकने की आवश्यकता को रेखांकित करने वाले विभिन्न कार्यक्रम इस दिन आयोजित होते हैं। इस साल की थीम ऑरेंज द वर्ल्ड: अब महिलाओं के खिलाफ हिंसा समाप्त करें! रखी गई है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा UNGA द्वारा 25 नवंबर का दिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतराष्ट्रीय दिवस के रूप में नामित किया है। दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और इस हिंसा का जवाब देना, मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता है। दुनिया का कोई भी देश हो वहां किसी ना किसी तरह से महिलाओं को हिंसा और जबरदस्ती का सामना करना पड़ता, उन्हें हिंसा मुक्त जीवन देने की आवश्यकता है।

क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने 1981 से 25 नवंबर को लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। इतिहास पर नजर डालें तो पैट्रिया मर्सिडीज मिराबैल, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा मिराबैल और एंटोनिया मारिया टेरेसा मिराबैल द्वारा डोमिनिक शासक रैफेल टुजिलो की तानाशाही का कड़ा विरोध करने पर उस शासक के आदेश पर 25 नवंबर 1960 को इन तीनों बहनों की हत्या करवा दी गई थी। आगे चलकर साल 1981 से 25 नवंबर के दिन को महिला अधिकारों के समर्थक और कार्यकर्ता इन तीनों बहनों की डेथ एनीवर्सरी के रूप में मनाने लगे। 17 दिसंबर 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्व सम्मति से 25 नवंबर का महिलाओं के खिलाफ अंतराष्ट्रीय हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में मनाने के लिए सुनिश्चित किया गया।