भोपाल। पिछले सात महीने से देश में किसान आंदोलन जारी है। देश के किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। 26 जून को आंदोलन के सात महीने पूरे होने पर शनिवार को देशभर के किसान अपने-अपने राज्यों के राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंप रहे हैं।



भोपाल में भी विभिन्न जिलों से किसान नेता और संगठन राज्यपाल से मिलने पहुंचे, जिन्हें पुलिस ने रोक दिया। समाजसेवा और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर समेत बड़ी संख्या में किसान संगठन पहुंचे। इस दौरान मेधा पाटकर और पूर्व विधायक डॉक्टर सुनीलम को पुलिस ने गांधी भवन के पास रोक लिया। पुलिस ने करीब आधा सैकड़ा किसानों को हिरासत में ले लिया।



 





 मेधा पाटकर ने गांधी भवन पर धरना दिया। वहीं शिवकुमार कक्काजी ने राजभवन पहुंचकर किसानों की मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा। इस मौके पर उन्होंने केंद्र के कृषि कानून को काला कानून बताया। उनका कहना है कि गृहमंत्री अमित शाह भी अपनी गलती मान चुके हैं, लेकिन 12 बैठकों के बाद भी सरकार कदम पीछे लेने को तैयार नहीं है।



किसान नेता कृषि कानूनों के खिलाफ राज्यपाल से मिलने की मांग कर रहे हैं। लेकिन उन्हें मिलने नहीं दिया जा रहा था। पुलिस का कहना था कि कोविड महामारी की वजह से शहर में धारा 144 लागू है। ऐसे में लोगों को एक साथ नहीं जाने दिया जाएगा। कुछ किसान नेताओं के नीलम पार्क में रोक लिया गया।  



वहीं रायपुर में भी शनिवार को किसानों ने खेती बचाओ और लोकतंत्र बचाओ का नारा दिया और राज्यपाल अनुसुइया उइको को ज्ञापन देने की कोशिश की। रायपुर के मोतीबाग में सुबह से ही कई किसान संगठनों के प्रतिनिधि जमा हुए। किसानों ने ‘खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ’ देश व्यापी अभियान के तहत तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों का विरोध किया। इस दौरान किसानों ने पैदल मार्च निकालकर राज्यपाल अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान पूरे इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया।





रायपुर में प्रगतिशील किसान संगठन, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन, छत्तीसगढ़ मजदूर महासंघ जैसे कई संगठनों के नेतृत्व में किसान इकट्टा हुए हैं। मोती बाग से उन्होंने पैदल मार्च निकालने की कोशिश की। जब किसानों को पुलिस ने रोका तो वे बीच सड़क में ही धरना देने बैठ गए। पूरे रास्ते में पुलिस ने बैरीकेडिंग कर रखी है। पुलिस किसानों को राजभवन जाने से रोकने का प्रयास करती नजर आई। कुछ जगहों पर किसानों और पुलिस बल के बीच विवाद की स्थिति भी बन गई। 



किसानों का कहना है कि देश उन्हें अन्नदाता का दर्जा देता है, पिछले 74 साल में हमने अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। किसानों का कहना है कि कोरोना जैसी महामारी के दौरान भी अपनी जान की परवाह किए बिना रिकॉर्ड उत्पादन किया। देश का खाद्यान्न के भंडार खाली नहीं होने दिया जाएगा।