स्ट्रोक ऐसी खतरनाक कंडीशन है, जो जानलेवा बन सकती है। लाइफस्टाइल और खानपान असंतुलित होने की वजह से आजकल स्ट्रोक का खतरा बढ़ता जा रहा है। हालांकि, इसके कई और कारण भी हो सकते हैं। हाल ही में आई एक स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। जिसमें बताया गया है कि कुछ नॉन ट्रेडिशनल फैक्टर्स भी स्ट्रोक की वजह बन सकते हैं। इनमें माइग्रेन भी शामिल है। आइए जानते हैं स्टडी क्या कहती है।
कार्डियोवैस्कुलर क्वॉलिटी एंड आउटकम्स में छपी स्टडी में बताया गया है कि युवाओं में नॉन ट्रेडिशनल फैक्टर्स के कारण स्ट्रोक का रिस्क ज्यादा रहता है। इस स्टडी में 55 साल से कम उम्र के 2,600 स्ट्रोक और 7,800 कंट्रोल्ड मामलों का एनालिसिस किया गया। इसमें पता चला कि पुरुषों में स्ट्रोक के नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स में माइग्रेन, किडनी फेलियर, थ्रॉम्बोफिलिया और महिलाओं में माइग्रेन, थ्रॉम्बोफिलिया और मैलिग्नेंसी स्ट्रोक शामिल है। वहीं, स्ट्रोक के ट्रेडिशनल रिस्क फैकटर्स में कोलेस्ट्रॉल-फैट ज्यादा होना, हाई ब्लड प्रेशर और तंबाकू का सेवन शामिल है।
नॉन ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स उन फैक्टर्स को माना जाता है, जिसकी वजह से रिस्क काफी कम होता है। लेकिन स्टडी के मुताबिक, इन फैक्टर्स की वजह से 18-34 साल के युवाओं में स्ट्रोक ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। हालांकि, उम्र बढ़ने के साथ यह रिस्क कम भी होने लगता है, हालांकि, 44 साल के बाद ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर्स को स्ट्रोक के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार पाया गया है।
क्लीवलैंड क्लीनिक के अनुसार, स्ट्रोक में दिमाग के किसी एक हिस्से तक खून सही तरह नहीं पहुंच पाता है. इसकी वजह से उस हिस्से में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. वहां के सेल्स डेड होने लगते हैं और दिमाग को काम करने में दिक्कतें आने लगती हैं. इसकी वजह से ब्रेन डैमेज होने लगता है। स्ट्रोक आर्टरी में ब्लॉकेज या दिमाग में ब्लीडिंग होने के चलते होता है. कई बार कोलेस्ट्रॉल या फैट बढ़ने से आर्टरी में ब्लॉकेज होती है. जिससे दिमाग तक ब्लड फ्लो में रुकावट होती है। इससे आने वाले स्ट्रोक को इस्केमिक स्ट्रोक भी कहते हैं। स्ट्रोक का दूसरा कारण हाई ब्लड प्रेशर या किसी चोट से दिमाग में ब्लीडिंग होना है. इस स्ट्रोक को हीमोरेजिक स्ट्रोक कहते हैं. स्ट्रोक से ब्रेन डैमेज या मौत का खतरा भी रहता है।