भोपाल। दुनिया भर में हार्ट और डायबटीज से पीड़ित लाखों मरीज हैं। जिन्हें सलाह दी जाती है कि वे अपने खाने में शुगर कंटेट कम करें। एक हालिया अमेरिकी रिसर्च में दावा किया गया है कि अमेरिका में 7 में से एक व्यक्ति शुगर पेशेंट है। यही वजह है लोगों को समय रहते टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है। अमेरिका जैसे विकसित देशों में ज्यादातर लोग पैक्ड फूड पर ही गुजारा करते हैं। यही वजह है कि वहां पर लोगों को शुगर और हार्ट से जुड़ी बीमारियों से बचाने के लिए अब डिब्बाबंद खाने और ब्रेबरेजस में ही शुगर की मात्रा कम करने की पॉलिसी तैयार की जा रही है। वहीं कंपनियों को भी कम शुगर वाली चीजें तैयार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।

 माना जा रहा है कि पैक्ड खाद्य पदार्थों से चीनी को 20 प्रतिशत तक और पेय पदार्थों से 40 प्रतिशत तक कम करने की इस प्रस्तावित नीति से अमेरिका में 2.48 मिलियन हृदय रोग की घटनाओं को रोका जा सकता है। इससे स्ट्रोक, हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट शामिल हैं। 

अगर पैक्ड फूड पर शुगर कंट्रोल कर ली गई तो इसका सीधा असर लोगों पर पड़ेगा। वह दिन भी दूर नहीं जब खाद्य पदार्थों पर शुगर टैक्स लगाने, और एक्सट्रा शुगर को लेबल करने का काम किया जाएगा। वहीं स्कूलों में मीठे ड्रिंक्स पर रोक लगा दी जाए।  

हाल ही में प्रकाशित जर्नल सर्कुलेशन में कहा गया है कि ये छोटे-छोटे उपाय करके अमेरिका में 7,50,000 डायबटीज के केस रोके जा सकते हैं। साथ ही अगर शुगर में कमी का प्रस्ताव लागू किया जाता है, तो रिसर्चर द्वारा बनाए गए एक मॉडल से अंदाजन अमेरिकी वयस्क आबादी जो कि 35 से 79 वर्ष की उम्र के बीच के कम से कम 4 लाख 90 हजार से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकती है।

अमेरिकी स्वास्थ्य संगठनों और  NSSRI  ने 2018 और 2019 में प्रारंभिक चीनी कैटेगरीज को लेकर ड्राफ्ट तैयार किया था। जिसमें फरवरी 2021 में खाद्य पदार्थों और ड्रिंक्स की 15 कैटेगरी में शुगर में कमी करने का टारगेट तय किया। अब इन कैटेगरी के तहत 2023 और 2026 तक के लिए टार्गेट निर्धारित किया गया है।

इस रिसर्च की अनुशंसाओं में लोगों को अनस्वीटन प्रोडक्ट्स की तरफ स्विच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। वहीं कंपनियों को अपने प्रोडक्ट्स के साइज कम करने की सलाह भी दी जा रही है। जिससे लोगों का शुगर इनटेक कंट्रोल किया जा सके। माना जा रहा है कि यह मॉडल अमेरिका में राष्ट्रीय चीनी सुधार नीति को लागू करने की आवश्यकता पर आम सहमति बना पाने में सफल होगा।

 अगर NSSRI policy लागू होती है तो अगले 10 साल बाद अमेरिका हेल्थ केयर कॉस्ट में 4.28 बिलियन डालर याने इंडियन कंरसी में 3 खरब 14 अरब 78 करोड से ज्यादा की बचत होगी।

 दरअसल इस मॉडल का स्टडी और रिसर्च Massachusetts General Hospital (MGH) के साथ Tufts University और Harvard T.H. Chan School of Public Health ने किया है।  स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने यूएस नेशनल सॉल्ट एंड शुगर रिडक्शन इनिशिएटिव (NSSRI) द्वारा प्रस्तावित चीनी-कटौती नीति के प्रभावों पर विस्तार से काम किया है।

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो भारत में करीब 77 मिलियन लोग शुगर पेशेंट हैं। जिनमे से करीब 80 मिलियन लोग प्री-डायबिटीक हैं। अगले दस सालों में इसके 101 मिलियन तक पहुंचने की आशंका हैं। इसलिए अमेरिका की तर्ज पर भारत में भी चीनी के उपयोग को लेकर जागरुकता की आवश्यकता है।