हर साल एक जुलाई को देश में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जाता है। इस साल भी मनाया जा रहा है लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। दुनिया के कई देशों के तरह ही हमारा देश भी कोविड 19 वैश्विक महामारी से जूझ रहा है औह हमारे डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी बिना अपनी जान की चिंता किए हुए इस महामारी से सबसे आगे की पंक्ति में लड़ रहे हैं। अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून के मुताबिक इस महामारी का सामना करते हुए भारत में अब तक 70 डॉक्टर और बहुत से स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान गंवा चुके हैं। इस साल का थीम ‘कोविड 19 की मृत्यु दर कम करो’ है।

भारत में कोविड 19 का पहला मामला 30 जनवरी को आया था। तब से लेकर अब तक कोरोना वायरस संक्रमण देश में विकराल रूप ले चुका है। अब हर रोज लगभग 18 से 20 हजार नए मामले सामने आ रहे हैं, वहीं पिछले 24 घंटों में 507 लोगों की जान गई है। पहला मामला सामने आने से लेकर अब तक हमारे डॉक्टरों और स्वास्थ्कर्मियों ने चैन की सांस नहीं ली है। वे अनवरत अपने काम में लगे हुए हैं। इस दौरान उनमें से कइयों की सैलरी कटी, कुछ पर लोगों ने हमले किए, कुछ को उनके सोसाइटी वालों ने घर नहीं आने दिया, कईयों ने बिना पलक झपकाए और भीषण गर्मी में पीपीई किट पहने हुए 14-14 घंटे ड्यूटी की और कई महीनों से अपने परिवार से नहीं मिल पाए। लेकिन इन सबके बाद भी वे अपने काम में लगे रहे।

दिल्ली के एक अस्पताल में कोविड 19 वार्ड में तैनात डॉक्टर जैसमीन कौर न्यूज 18 को बताती हैं, “मुझे और मेरे सहकर्मियों को हर दिन 12 घंटे की ड्यूटी करनी होती है। एक सप्ताह दिन में और एक सप्ताह रात में। 14 दिन बाद हमें दो हफ्तों तक आराम मिलता है। इस दौरान एक सप्ताह हमें एक होटल के कमरे में बिताना होता है और एक सप्ताह के लिए हमें घर जाने की छूट होती है। लेकिन मैं घर नहीं जाती क्योंकि मेरे मां बाप बूढ़े हैं और मैं उन्हें खतरे में नहीं डाल सकती।”

डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों पर पड़ रहे दबाव के बारे में नई दिल्ली के एक अस्पताल में कार्यरत डॉ. गौरी अग्रवाल अंग्रेजी अखबार द हिंदू को बताती हैं, “लगातार बढ़ते जा रहे मामलों की वजह से डॉक्टरों और स्वास्थकर्मियों पर दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। हमें केवल गर्मियों में पीपीई किट पहनकर काम नहीं करना होता है, बल्कि अस्पताल में काम करने की वजह से सोसाइटी वालों का बुरा व्यवहार भी झेलना पड़ता है। हम इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे की पंक्ति में हैं और यही चीज हमें प्रेरित करती है।”

इसी तरह फोर्टिस एस्कॉर्ट फरीदाबाद में काम करने वाले डॉक्टर रवि शंकर झा इंडिया टुडे को बताते हैं, “अस्पताल के कोविड वार्ड में काम करना बहुत ज्यादा तनाव देने वाला होता है। कई बार काम करते-करते इतनी थकान हो जाती है कि शरीर सुन्न सा पड़ जाता है। लेकिन फिर जब आप रोगियों के हंसते हुए चेहरे देखते हैं, खासकर युवा रोगियों के जिनके सामने अभी एक लंबी जिंदगी पड़ी है, तब आपका सारा तनाव और थकान दूर हो जाते हैं।”

एक तरफ डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी अपना सर्वस्व लगाकर इस वैश्विक महामारी का सामना कर रहे हैं, दूसरी तरफ अस्पतालों में आधारभूत सुविधाओं की कमी है। इसकी वजह से कहीं ना कहीं कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ती है। भारत में इस बीमारी की शुरुआत से ही डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के पास पर्याप्त सुरक्षा उपकरण ना होने की खबरें आती रही है हैं। वहीं दूसरी तरफ आधारभूत सुविधाओं की कमी का खामियाजा मरीजों को भी भुगतना पड़ा है। अस्पतालों में पर्याप्त बेड नहीं हैं, एंबुलेंस नहीं है। इन सबकी वजह से कई गंभीर मरीज अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।

आधारभूत सुविधाओं की कमी को लेकर डॉक्टर मनोज कुरियाकोज द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं, “इस तरह की महामारी का सामना करने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं हमारे पास नहीं हैं। इन्हें विकसित करने में अभी लंबा वक्त लगेगा। विकसित देशों के पास भी ये नहीं हैं। हमारे सरकारी अस्पताल तो कोरोना से पहले ही बुरी हालत में थे, कोरोना ने उनकी हालत और बिगाड़ दी है। सभी डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी अतिरिक्ट ड्यूटी कर रहे हैं लेकिन फिर भी हमें और सहायकों की जरूरत है क्योंकि हमें कोरोना के अलावा दूसरे मरीजों का भी इलाज करना है।”

इसी तरह हैदराबाद के गांधी मेडिकल कॉलेज में काम कर रही डॉक्टर दीप्ती ने बताया, “हमारे पास पीपीई किट और मास्क की सप्लाई नियमित नहीं है। भारतीय वायु सेना ने हमारे ऊपर फूलों क बारिश की थी लेकिन मैं इसमें शामिल नहीं हुई। इस तरह के सांकेतिक कार्यक्रम हमारा कुछ भला नहीं करते। हमें आधारभूत चीजों की जरूरत है।”