मुरैना। जगजीत सिंह की गजल की कुछ पंक्तियां हैं "ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन"। तो इस गाने को चरितार्थ करते हुए एक अनोखा मामला मध्य प्रदेश में सामने आया है। जहां एक बुजुर्ग महिला ने अपने से लगभग 40 से छोटे युवक के साथ बिना शादी किए लिव इन संबंध में रहने का फैसला किया है।

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के कैलारस की रहने वाली रामकली बाई की उम्र 67 है। रामकली बाई को 28 साल के भोलू से प्यार हो गया है। अब दोनों बिना शादी किये लिव-इन में रहना चाहते हैं। लेकिन सामाजिक संस्कारों के खिलाफ इस संबंध को स्वीकार्यता नहीं मिल रही है, सो विवाद से बचने के लिए दोनों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

रामकली कैलारस के एक गांव कन्हार की रहनेवाली हैं, जिनके पति जीवनलाल की मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व हो गई थी। रामकली और कन्हार गांव के ही 28 वर्षीय भोलू आदिवासी पुत्र राम सिंह आदिवासी के बीच प्रेम हो गया। रामकली और भोलू दो साल से एक दूसरे को जानते हैं, लेकिन उन्हें शादी नहीं करनी है बल्कि जीवन साथ बिताना है। इसलिए वे बिना शादी किए लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहने की कोर्ट से इजाज़त चाहते हैं।

दोनों ने इस मामले में 500 रुपए के ई-स्टांप पर दस्तखत कर, स्टांप की नोटरी करवाई है। स्टांप पर दर्ज वक्तव्य में उल्लेखित किया गया है कि दोनों बालिग होकर पूर्व रूप से अपना भला बुरा सोच सकते हैं। दोनों एक दूसरे को पिछले दो वर्ष से जानते और पहचानते हैं और भविष्य में अपना जीवन एक दूसरे के साथ व्यतीत करना चाहते हैं। भविष्य में किसी भी प्रकार का कोई विवाद उत्पन्न न हो, इसलिए यह लिखतम तैयार किया जा रहा है।

जब रामकली बाई से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनके जीवन का कोई सहारा नहीं है। भोलू उनके जीवन का सहारा बन गए हैं। भोलू उनकी भविष्य में पूरी मदद करेंगे। इसी प्रकार भोलू ने भी रामकली बाई को अपना पार्टनर स्वीकार किया है। भोलू ने स्पष्ट रूप से बात सामने नहीं रखी। जब दोनों के बीच उम्र के अंतर को लेकर बात की गई तो वो कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए।

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हालांकि एक कहावत है 'यद्यपि शुद्धं लोक विरुद्धं, न करणीयम्-न करणीयम्।" अर्थात् कोई काम भले ही शुद्ध मानसिकता के साथ किया जाने वाला हो, लेकिन लोकाचार के विरुद्ध हो तो उसे नहीं करना चाहिए।

लेकिन इसके विपरीत, वायु पुराण में उल्लेख है कि मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पय:, जातौ जातौ नवाचारा: नवा वाणी मुखे मुखे.। इसका अर्थ है कि जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं, एक ही स्थान के अलग अलग कुंओं के पानी का स्वाद अलग अलग होता है. एक ही संस्कार के लिए अलग अलग जातियों में अलग अलग रिवाज होता है तथा एक ही घटना का वर्णन हर व्यक्ति अपने ढंग से अलग अलग करता है.अर्थात् वैभिन्न प्रकृति का नियम है।