सतना। मध्यप्रदेश में कोरोना का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है। सतना में जिला एवं सत्र न्यायालय जज जगदीश अग्रवाल की मौत कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई। बुधवार शाम हुई मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को किया गया। बताया जा रहा है कि डिस्ट्रिक जज 5 अप्रैल को कोरोना संक्रमित मिले थे। जिसके बाद वे डाक्टरों की सलाह पर होम क्वारंटाइन थे। बुधवार दोपहर उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई। उन्हें लगातार खून की उल्टियां हो रही थीं। तब उन्होंने CMHO को फोन करके एंबुलेंस बुलवाई। बावजूद इसके उन्हें वक्त पर इलाज नहीं मिला। और अस्पताल की लापरवाही के चलते 52 वर्षीय जज की मौत हो गई।

डिस्ट्रिक जज के परिजनों ने जिला अस्पताल प्रबंधन और नगर निगम पर कई संगीन आरोप लगाए हैं। गंभीर हालत में एंबुलेंस बुलाने पर भी वह देर से आई फिऱ कोविड पेशेंट को ट्रामा यूनिट में ले जाया गया। यहां से इंफेक्सियम डिसीज कंट्रोल वार्ड तक ले जाने के लिए ना तो स्ट्रेचर मिला औऱ ना ही कोई अस्पताल का स्टाफ।  और तो और किसी ने व्हील चेयर तक उपलब्ध नहीं करवाई। रही सही कसर वार्ड में पूरी हो गई। वहां कोई डाक्टर नहीं मिला। नर्स ने भर्ती करने की बजाय ओपीडी पर्ची कटवाने भेज दिया।

बड़ी मशक्कत के बाद जज को वार्ड में भर्ती किया गया, इस दौरान उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी। दिसके बाद उन्होंने दम तोड़ दिया। जज के परिजनों और जिला अधिवक्ताओं ने इलाज में देरी के लिए डाक्टरों को दोषी ठहराया है। उनका कहना है कि जब एक डिस्ट्रिक जज के केस में लापरवाही का यह आलम है तो गरीब और आम जनता का इलाज कैसे होता होगा। वहीं गुरुवार को अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी तक के लिए मोहताज होना पड़ा। नगर निगम की ओर से लकड़ियां नहीं दी गई कहा गया कि केवल लावारिस लोगों के अंतिम संस्कार के लिए ही यह सेवा उपलब्ध है।

 वहीं इस घटना के बारे में सतना जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉक्टर सुनील कारखुर ने इलाज मे देरी से इनकार किया है। उनका कहना है कि जज को खून की उल्टियां हो रही थीं। जब वे अस्पताल लाए गए तब उनकी सांसें बंद हो चुकी थीं। अस्पताल प्रबंधन की तरफ से इलाज में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं हुई है।

मध्यप्रदेश में बीते 24 घंटे में 4324 मरीज मिले हैं। मध्यप्रदेश के सतना में इलाज में देरी की वजह से जज की मौत से यहां की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवालिया निशान लगने लगे हैं। एक तरफ तो सरकार बड़े-बड़े दावे और वादे करती है, लेकिन उसकी असलियत कुछ और ही है। शायद यही वजह है कि जब सरकार के माननीय मंत्री विधायक औऱ तो और खुद मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बीमार होते हैं तो सरकारी की बजाय निजी अस्पतालों पर ज्यादा भरोसा करते हैं।