लेह। एक साल पहले 5 अगस्त को लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की तारीफ करने वाले बौद्ध अब अपने भविष्य और पहचान को लेकर चिंतित हैं। लद्दाख को बहुत पहले से ही अलग राज्य बनाने की मांग उठ रही थी, लेकिन अब अनुच्छेद 370 हट जाने के बाद यहां के लोगों को अपनी नौकरियों, जमीन और पहचान के खत्म हो जाने की चिंता होने लगी है। लद्दाख में दो जिलों में बौद्ध, हिंदू और मुस्लिम रहते हैं। एक तरफ जहां लेह बौद्ध बहुसंख्या वाला इलाका है, वहीं कारगिल में ज्यादातर मुस्लिम रहते हैं। 

दरअसल, अनुच्छेद 35 (ए) जम्मू और कश्मीर की ही तरह लद्दाख में भी बाहरियों के जमीन खरीदने और नौकरी हासिल करने पर रोक लगाता था। इस अनुच्छेद को समाप्त करने के लिए लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग तेसरिंग नामंग्याल ने केंद्र सरकार की तारीफ की थी।  बीजेपी सांसद जामयांग तेसरिंग नामंग्याल ने तब Article 370 को लद्दाख के विकास में बाधा बताया था। हालांकि, अब एक साल से अधिक समय बीतने के बाद बीजेपी के नेता ही केंद्र सरकार के इस कदम से नाराज हैं। 

लद्दाख बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष शेरिंग दोर्गे ने मीडिया संस्थान अलजजीरा को बताया कि "जम्मू और कश्मीर के लोगों की ही तरह अनुच्छेद 35 (ए) हमारी भी हिफाजत करता था। अब क्योंकि ये खत्म हो गया है और राज्य को अलग केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया है, तब हमें बाहरी लोगों से खतरा लग रहा है जो यहां आकर जमीन खरीदेंगे और हमारी नौकरियां छीन लेंगे।"

केंद्र सरकार के विरोध में लद्दाख बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष शेरिंग दोर्गे ने इस साल मई में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा कि लद्दाख की हिल डेवलपमेंट काउंसिल अब बस एक मजाक बनकर रह गई है। पहले क्षेत्र की जमीन से जुड़े फैसले यह परिषद लेती थी, अब सारा नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथों में है। हमें डर है कि बिना हमारी मंजूरी के हमारी जमीन उद्योगपतियों और सेना को दी जा सकती है। 

इन चिंताओं से घिरे हुए लद्दाख के लोग दूसरी तरफ संरक्षण की मांग कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि या तो हमें संविधान की छठवीं अनुसूचि में डाला जाए या फिर लद्दाख को अनुच्छेद 371 के तहत सुरक्षा प्रदान की जाए। संविधान की छठवीं अनुसूचि देश के आदिवासियों को विशेष अधिकार देती है और वहीं अनुच्छेद 371 देश के उत्तरपूर्वी राज्यों को संरक्षण प्रदान करता है। एक सर्वे के मुताबिक लद्दाख की 97 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जनजाति से है।